राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ महागठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में ही विपक्षी दलों को एक साथ लाने में पूरी तरह असफल रहे हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी के बाद अब समाजवादी पार्टी ने भी कांग्रेस से मध्यप्रदेश में चुनावी गठबंधन से किनारा कर लिया है.
समान विचारधारा वाले दलों से चुनावी गठबंधन करने में असफल रहने के बाद कांग्रेस के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी विरोधी वोटों का विभाजन रोकने की है.
पिछले दो चुनावों में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच वोटों का अंतर लगातार बढ़ा है. एसपी और बीएसपी के अलावा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई है. इस चुनाव में भी एसपी और बीएसपी के अलग चुनाव लड़ने से कांग्रेस को पचास से अधिक सीटों पर सीधा नुकसान होता दिखाई दे रहा है.
कांग्रेस को पसंद नहीं आया अखिलेश का माया फार्मूला
समाजवादी पार्टी ने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. मायावती ने किसी दल से कोई चुनावी गठबंधन नहीं किया था. इससे न मायावती को लाभ हुआ और न ही एसपी-कांग्रेस का गठबंधन काम आया. भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का प्रयोग मध्यप्रदेश में भी करने के पक्ष में थे. लेकिन, राज्य के नेता समझौते के पक्ष में नहीं थे.
इस कारण समझौते की बात गंभीरता से आगे नहीं बढ़ पाई थी. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने यह तय कर लिया था कि समझौते में तीस से ज्यादा सीटें किसी भी स्थिति में नहीं दी जाएंगी. कांग्रेस तीन दलों से अलग-अलग स्तर पर समझौता वार्ता होने का दावा लगातार करती रही है. एसपी और बीएसपी के अलावा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी कांग्रेस के सहारे अपनी स्थिति
मजबूत होने की संभावनाएं देख रही थी.
कांग्रेस से सकारात्मक संकेत न मिलते देख एसपी प्रमुख अखिलेश यादव ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से हाथ मिला लिया. शहडोल में यादव के मंच पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रमुख हीरा सिंह मरकम भी नजर आए. इसके बाद कांग्रेस ने दोनों ही दलों से बातचीत के रास्ते बंद कर दिए. अखिलेश यादव को कहना पड़ा कि कांग्रेस ने समझौते के लिए काफी इंतजार करा दिया, अब और
इंतजार नहीं किया जा सकता.
एसपी प्रमुख ने इसके साथ ही मध्यप्रदेश की छह विधानसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए. एसपी ने जिन सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं वहां कांग्रेस पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर थी. उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे हुए विधानसभा क्षेत्र निवाड़ी में मीरा दीपक यादव को उम्मीदवार बनाया है. मीरा दीपक यादव को वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में लगभग सत्ताइस प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप अहीर की जमानत जब्त हो गई थी. उन्हें सिर्फ चार प्रतिशत वोट मिले थे. इस सीट पर बीएसपी तीसरे नंबर पर रही थी.
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में एसपी ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसका लाभ कांग्रेस को हुआ था. बहुजन समाज पार्टी की मौजूदगी से भी कोई फर्क नहीं आया था. एसपी और कांग्रेस के गठबंधन की संभावनाओं को ध्यान में रखकर ही इस सीट को बचाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निवाड़ी को जिला बना दिया. इसका असर पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर भी पड़ेगा. निवाड़ी जिले का गठन टीकमगढ़ जिलों को तोड़कर किया गया है.
शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ भी उतारा उम्मीदवार
कांग्रेस के रवैए को लेकर एसपी प्रमुख की नाराजगी का अंदाजा उनके द्वारा घोषित की गई उम्मीदवारों की सूची से भी लगाया जा सकता है. सपा प्रमुख ने बुधनी में अनुसूचित जाति वर्ग के अशोक आर्य को उम्मीदवार बनाया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधनी से ही चुनाव लड़ते हैं. कांग्रेस इस कोशिश में थी कि चौहान के खिलाफ अनुसूचित जाति वर्ग के किसी चेहरे को उतारा जाएगा तो मुकाबला कड़़ा हो जाएगा.
लेकिन, एसपी ने कांग्रेस की योजना की हवा निकाल दी है. एसपी का उम्मीदवार अनुसूचित जाति वर्ग का होने के कारण कांग्रेस को बुधनी के लिए नई रणनीति बनाना होगी. इसी तरह बालाघाट जिले की दो सीटों पर भी एसपी ने कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है. पार्टी ने बालाघाट से अनुभा मुजारे को टिकट दी है. अनुभा मुंजारे पिछला चुनाव सिर्फ ढाई हजार वोटों से हार गईं थीं. उनके मुकाबले में राज्य के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन थे. अनुभा मुंजारे के पति कंकर मुंजारे को परसवाड़ा से टिकट दिया गया है.
मुजारे समाजवादी पृष्ठभूमि के हैं. उनका अपना जनाधार है. बालाघाट राज्य का नक्सल प्रभावित आदिवासी जिला है. इस जिले पर ज्यादा असर महाराष्ट्र की राजनीति का देखा जाता है. एसपी ग्वालियर-चंबल,विंध्य एवं बुंदेलखड के क्षेत्र की कुछ विधानसभा सीटों के लिए नामों की घोषणा अंतिम क्षणों में करेगी. एसपी नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस में टिकट के बंटवारे को लेकर कलह होगी. इस कलह के कारण कई दावेदार बागी हो जाएंगे. एसपी के साथ बीएसपी भी इसी ताक में बैठी हुई है कि कांग्रेसी लड़े और वे बागियों को टिकट देकर खेल बिगाड़ दें?
जहां बीजेपी को थी नुकसान की संभावना वहां अब मुश्किल में कांग्रेस
एट्रोसिटी एक्ट का सबसे ज्यादा विरोध ग्वालियर एवं चंबल संभाग में हो रहा है. इस विरोध के कारण चुनावी माहौल भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ देखा जा रहा है. बीएसपी का असर इस इलाके में ज्यादा है. जबकि समाजवादी पार्टी का असर बुंदेलखंड के साथ-साथ विंध्य क्षेत्र में है. कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं. जबकि प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह का असर विंध्य क्षेत्र में हैं.
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि सिंधिया और अजय सिंह दोनों ही किसी भी तरह के समझौते के पक्ष में नहीं थे. इस कारण बात टलती गई. कांग्रेस की ओर से बातचीत प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ कर रहे थे. कमलनाथ के क्षेत्र में बीएसपी-एसपी का ज्यादा असर नहीं है. यहां नुकसान गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कारण होता है. अखिलेश यादव ने जब गोंडवाना से समझौता किया तो कमलनाथ
ने एसपी से समझौता करने का मन भी बदल लिया.
पिछले विधानसभा चुनाव में एसपी ने 164 उम्मीदवार उतारे थे. इनमें 161 की जमानत जब्त हो गई थी. राज्य में एसपी का कोई मजबूत संगठन अथवा नेता भी नहीं है. उसे एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे. जबकि बीएसपी को छह प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे. पिछले चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच हार-जीत का अंतर आठ प्रतिशत से अधिक वोटों का था.
कांग्रेस के अकेले मैदान में उतरने के फैसले के बाद बीजेपी विरोधी वोटों का विभाजन एक बार फिर होगा. इसका लाभ बीजेपी को मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. जबकि कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि सपाक्स के मैदान में होने के कारण बीजेपी को सवर्ण वोटों का नुकसान इससे कहीं ज्यादा होगा. कांग्रेस यह भी मान रही है कि एट्रोसिटी एक्ट के बाद बने हालात में अनुसूचित जाति वर्ग उसी दल का समर्थन करेगा,जो सरकार बनाने की स्थिति में हो?