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NRIs की नब्ज टटोलने अब सिंगापुर और मलेशिया पहुंचे राहुल गांधी

2019 के चुनाव से पहले करीब 2.5 करोड़ अप्रवासी भारतीयों को वोटिंग का अधिकार मिल सकता है. इसीलिए नरेंद्र मोदी की तरह राहुल गांधी भी ये मौका गंवाना नहीं चाहते

Debobrat Ghose

ऐसा लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने कट्टर सियासी प्रतिद्वंदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक बात तो जरूर सीख ली है. वो भी पूरी शिद्दत से विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को लुभाने में जुट गए हैं. बार-बार उन देशों का दौरा कर रहे हैं, जहां बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं.

राहुल गांधी ने जनवरी में पश्चिमी एशिया के देश बहरीन का दौरा किया था. अब वो 8 और 9 मार्च को सिंगापुर में रहेंगे और 10 मार्च को मलेशिया के दौरे पर हैं.


गुरुवार को सिंगापुर में राहुल गांधी आजाद हिंद फौज के स्मारक तो जाएंगे ही. इसके अलावा वो सिंगापुर में भारतीय उच्चायुक्त जावेद अशरफ और सिंगापुर के विदेशी मामलों के मंत्री विवियन बालाकृष्णन से भी मिलेंगे. सितंबर 2017 में अमेरिका के बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में अपने लेक्चर की ही तरह राहुल गांधी, सिंगापुर के ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में वो छात्रों को संबोधित भी करेंगे. सिंगापुर में कांग्रेस अध्यक्ष भारतीय उद्यमियों और निवेशकों से भी मुलाकात करेंगे.

2014 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में कद्दावर होकर उभरने के बाद से ही विदेशी मूल के लोगों को राजनेता बहुत अहमियत देने लगे हैं. पहले जहां वो भारतीय मूल के लोगों के छोटे-मोटे कार्यक्रमों का ही हिस्सा हुआ करते थे. मगर अब एनआरआई, राष्ट्रीय राजनीति में बड़े अहम हो गए हैं. प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी ने कई ऐसे देशों का दौरा किया है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं. मोदी ने कई एनआरआई मंचों का अच्छे से इस्तेमाल करते हुए अपने ब्रांड की सियासत को चमकाया है.

इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी, जनवरी में बहरीन के दौरे पर गए. वहां पर उन्होंने ग्लोबल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पर्सन्स ऑफ इंडियन ओरिजिन (GOPIO) की हर दूसरे साल होने वाली बैठक में हिस्सा लिया था.

पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले राहुल गांधी ने सितंबर 2017 में दो हफ्ते का अमेरिका दौरा किया था. 2015 से 2017 के बीच राहुल गांधी ब्रिटेन, अमेरिका, तुर्की और इटली के दौरे पर भी गए थे. हालांकि उनके अमेरिका दौरे ने ही सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं और उनके नेतृत्व को चमकाया. बहरीन के दौरे पर जाने के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि हो सकता है कि वो जल्द ही कनाडा के दौरे पर जाएं.

एक कांग्रेस नेता ने कहा कि, 'राहुल गांधी का जोर अप्रवासी भारतीयों पर है. उनके अगले विदेश दौरे कनाडा, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया हो सकते हैं, जहां बड़ी तादाद में अप्रवासी भारतीय रहते हैं. हमें महसूस हुआ है कि ये लोग एनडीए सरकार में मौजूदा भारतीय सियासी माहौल से खुश नहीं हैं. उन्हें कट्टर लोगों के मुख्यधारा की राजनीति को हड़प लेने से ऐतराज है. इसकी सबसे बड़ी मिसाल हाल ही में त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति को गिराया जाना है'.

कांग्रेस का जोर अप्रवासी भारतीयों पर क्यों है?

पहली बात तो ये है कि पिछले दस सालों में, खास तौर से मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग देश की राजनीति में दिलचस्पी ले रहे हैं. उनका भारत की सियासत में दखल बढ़ रहा है. अप्रवासी भारतीय, चुनावों के दौरान अपने मूल गांवों और कस्बों के दौरे पर आ रहे हैं. वो अलग-अलग सियासी दलों के लिए प्रचार कर रहे हैं. स्थानीय निवासियों को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. राजनेताओं के लिए ये बदलाव बड़ी उम्मीदों वाला है.

यूपीए के राज में मनमोहन सिंह के करीबी रहे एक कांग्रेसी नेता ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि, 'यूपीए सरकार के दौरान और उससे पहले भी कांग्रेस ने अप्रवासी भारतीयों पर इतना ध्यान नहीं दिया, जितना दिया जाना चाहिए था. अब हम अप्रवासी भारतीयों को काफी तवज्जो दे रहे हैं. छात्रों, पढ़ने-लिखने वालों, कारोबारियों और नेताओं से मिलकर राहुल गांधी भारतीय राजनीति पर चर्चा कर रहे हैं.'

इस कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, 'पहले के मुकाबले आज भारतीय मूल के लोग देश की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं. मोदी इन लोगों को लगातार लुभाने में जुटे हैं, ताकि बीजेपी को फायदा हो. ऐसे में कांग्रेस को भी इस रेस में पीछे नहीं रहना चाहिए क्योंकि विदेश में बड़ी तादाद में भारतीय मूल के ऐसे लोग रहते हैं, जो कांग्रेस की विचारधारा को पसंद करते हैं. वो चाहते हैं कि कांग्रेस दोबारा सत्ता में आए.'

दूसरी बात ये भी है कि अप्रवासी भारतीय सरकार के लिए संभावित निवेशक भी हैं, जो राष्ट्र निर्माण के काम में मददगार हो सकते हैं. राहुल गांधी ने बहरीन में कहा था कि, 'मैं चाहता हूं कि अप्रवासी भारतीय कांग्रेस के साथ जुड़ें. आप भले ही देश में नही हैं, मगर आप को राष्ट्र निर्माण में भागीदार होना चाहिए'.

सिंगापुर की कंपनियों के भारतीय मूल के CEOs से मुलाकात करते राहुल गांधी. (पीटीआई)

तीसरी बात ये है कि अप्रवासी भारतीयों को वोट देने के अधिकार का बिल जल्द ही संसद में पेश किया जाने वाला है. प्रधानमंत्री मोदी पूरी लगन से इस अंतरराष्ट्रीय वोटर को लुभाने में जुटे हैं. ऐसे में कांग्रेस इस रेस में पिछड़ना नहीं चाहती.

2019 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए जनवरी महीने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 23 देशों से आए भारतीय मूल के लोगों की एक कांफ्रेंस आयोजित की थी. इसमें भारतीय मूल के वो सांसद भी बुलाए गए थे, जो दूसरे देशों में सांसद हैं.

सैम पित्रोदा हैं पूरी रणनीति के पीछे

एक आंकड़े के मुताबिक, 2019 के चुनाव से पहले करीब 2.5 करोड़ अप्रवासी भारतीयों को वोटिंग का अधिकार मिल सकता है. इसीलिए नरेंद्र मोदी की तरह राहुल गांधी भी ये मौका गंवाना नहीं चाहते. राहुल गांधी के विदेश दौरों और अप्रवासी भारतीयों से मुलाकात के पीछे सैम पित्रोदा का दिमाग काम कर रहा है. वो राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं और राजीव गांधी के बेहद करीबी रहे थे. पित्रोदा के अलावा शशि थरूर और मिलिंद देवड़ा जैसे कांग्रेस नेता भी इस मुहिम में शामिल हैं.

पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका और बहरीन की ही तरह, राहुल गांधी मलेशिया में उद्यमियों, कारोबारियों और युवाओं के कॉनक्लेव को संबोधित करेंगे. इसका आयोजन सैम पित्रोदा ही कर रहे हैं.

विदेश दौरों में अपने कई संबोधनों में राहुल गांधी ने बिना किसी लाग-लपेट के मोदी सरकार की आलोचना की थी. दूसरी तरफ उन्होंने मोदी की अच्छी बातों और काम की तारीफ भी की थी.

2017 में राहुल गांधी ने कहा था कि, 'प्रधानमंत्री मोदी बहुत अच्छे वक्ता हैं. मुझसे बेहतर तरीके से लोगों से जुड़ते हैं. अगर मेक इन इंडिया को अच्छे से लागू किया जा सके, तो ये शानदार आइडिया है. इस योजना से छोटे और मंझोले कारोबारियों को जोड़ना चाहिए.'

बर्कले मे छात्रों से बातचीत में राहुल गांधी ने ईमानदारी से कहा था कि, 'यूपीए 2 के कार्यकाल के बीच में कांग्रेस में अहंकार आ गया था. उसने लोगों से संवाद करना बंद कर दिया था'.

हाल ही में बीजेपी के हाथों उत्तर पूर्वी राज्य गंवाने वाली कांग्रेस में फिर से जान फूंकने के लिए राहुल गांधी पूरी ताकत लगा रहे हैं. ऐसे में ये देखना होगा कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस किस हद तक भारतीय मूल के लोगों को अपने पाले में ला पाने में कामयाब होती है.