view all

गीता-उपनिषद पढ़कर कहीं 'ये' सबक न सीख लें राहुल गांधी

कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्राचीन भारतीय ग्रंथों उपनिषद और भगवद् गीता के पन्ने पलट रहे हैं और इसके दर्शन को आत्मसात करने में लगे हैं

Sanjay Singh

राहुल गांधी इन दिनों पढ़ाई में लगे हैं. कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्राचीन भारतीय ग्रंथों उपनिषद और भगवद् गीता के पन्ने पलट रहे हैं और इसके दर्शन को आत्मसात करने में लगे हैं. मकसद है- आरएसएस और बीजेपी से लड़ना.

युगों-युगों से ये ग्रंथ और अलग-अलग रूप-रंग की आध्यात्मिकता, धार्मिकता और कर्मकांड न जाने कितने भारतीयों के लिए दुख के निजी क्षणों में शांति के शरणस्थल साबित हुए हैं.


लेकिन ऐसे लोगों का मकसद अमूमन खुद तक सीमित रहा है. एक हद तक उसे सांसारिक भी कहा जा सकता है यानि कि जो बातें परेशान कर रही हैं उनकी तरफ से मन को कुछ देर के लिए हटा लिया जाए, जीने और मन को संतुलन में रखने के लिए कुछ सकारात्मक ऊर्जा जुटाई जाए.

लेकिन राहुल का मामला इसके उलट है. वे उपनिषद और गीता निजी ज्ञान के लिए नहीं पढ़ रहे. उनका मकसद यह नहीं कि इन ग्रंथों की पढ़ाई से हिंदुओं की धार्मिकता के बारे में उनकी समझ गहरी बने ताकि भारतीय आध्यात्मिकता इसकी उत्पत्ति और विकास को लेकर उनकी पकड़ मजबूत हो.

ये भी पढ़ें: केरल में हिंसा से बीजेपी को आगे बढ़ने से रोका नहीं जा सकता

दरअसल, राहुल इन ग्रंथों की पढ़ाई अपने मन को पल भर विश्राम देने के लिए नहीं बल्कि सामने आन खड़ी समस्या से पूरी तन्मयता से लड़ने के मकसद से कर रहे हैं.

मजेदार बात यह है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष बीजेपी और आरएसएस से राजनीतिक लड़ाई लड़ने के लिए अपना समय और ऊर्जा गीता और कई खंडों के उपलब्ध उपनिषदों के पन्ने पलटने में लगा रहे हैं.

जो लोग अब भी कांग्रेस के समर्थक हैं या कांग्रेस के प्रति सहानुभूति रखते हैं या फिर जिन्हें अब भी यकीन है कि गांधी-नेहरू परिवार में करिश्मा कर दिखाने की कूव्वत बाकी है, उनके लिए यह बड़े राहत की बात हो सकती है कि कम से कम अभी तक राहुल गांधी अध्यात्म की राह पर नहीं लगे हैं.

राहुल गांधी ने कहा कि वे आरएसएस से लड़ने के लिए गीता के संदेश को समझ रहे हैं

गीता-उपनिषद का पाठ

खबरों के मुताबिक चेन्नई में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि, 'इन दिनों मैं गीता और उपनिषद पढ़ रहा हूं क्योंकि मैं आरएसएस और बीजेपी से लड़ रहा हूं. मैं उन (आरएसएस के लोगों) से पूछता हूं कि मेरे दोस्त- आपलोग तो यह सब कर रहे हैं, लोगों को सता रहे हैं लेकिन उपनिषद में तो लिखा है कि सभी लोग एक बराबर हैं तो फिर आप अपने ही धर्म में कही गई बात को कैसे झुठला रहे हैं.'

इसके बाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष अपने मनपसंद विषय की ओड़ मुड़े गये कि आरएसएस, बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी दरअसल 'भारत को समझ नहीं पाए हैं.'

कई जगह छपी खबरों में राहुल को यह कहते हुए दिखाया गया है कि, 'आप (बीजेपी) अपने ही धर्म के कहे को कैसे झुठला सकते हैं.' राहुल के इस बोल से यह भी संकेत मिलता है कि वे सत्ताधारी पार्टी को राजनीतिक दल नहीं बल्कि हिन्दू संगठन मानकर चल रहे हैं. जाहिर है, बीजेपी इस बात को हलके में नहीं लेगी.

ये भी पढ़ें: संघ से लड़ने के लिए नहीं, कांग्रेस को बचाने के लिए गीता पढ़ें राहुल गांधी

भारत के प्राचीन ग्रंथों से सीख लेने की राहुल की तमन्ना का वक्त भी सवाल पैदा करता है कि क्या उपनिषद और गीता पढ़ने का होश उन्हें उत्तरप्रदेश और देवभूमि उत्तराखंड में हुई सबसे अपमानजनक हार और एक भगवाधारी योगी आदित्यनाथ को देश के सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में मुख्यमंत्री बनते देखकर आया?

राहुल ने यह नहीं बताया है कि वे कौन सा उपनिषद पढ़ रहे हैं. उपनिषदों की संख्या दो सौ से ज्यादा है. उपनिषद पहले श्रुति परंपरा का हिस्सा थे फिर सदियों के बीतने के क्रम में उनका संहिताबद्ध रूप सामने आया. यह ईसा के जन्म के पहले से शुरू हुई घटना है और ईसा के जन्म के बाद के समय तक चली.

आम भारतीय को राहुल की पढ़ने की काबिलियत के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता. ऐसे में यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि आरएसएस के साथ राजनीतिक दर्शन और अध्यात्म पर बहस करने के लिए वे दरअसल उपनिषदों के कितने पन्ने पढ़ और आत्मसात कर पायेंगे.

यूपी के चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना पहले 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के शाहरुख खान और फिर 'शोले' के गब्बर सिंह से की तो उनकी यह बात ना कांग्रेस के कार्यकर्ता समझ पाए और न ही सभा में उनको सुनने के लिए जुटे हुए लोगों को ही यह बात समझ में आई.

राहुल ने जब अपनी मनपसंद चुनिंदा बातों को सुनाना शुरू किया तो दरअसल कुछ लोग सभा से उठकर जाने लगे थे.

ठीक इसी तरह लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने 'एस्केप वेलोसिटी' की बात कही थी. राहुल के इस नवेले राजनीतिक विचार का न तो किसी को सिर समझ में आया और न ही पूंछ.

भारतीय सनातन समाज वेद और उपनिषद में दिए गए आख्यानों पर आधारित है

गीता का दर्शन यानि संन्यास

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और इन चुनावों के लिए साल के अंत में राहुल गांधी जब प्रचार के लिए उतरेंगे तो उनके पास लोगों को सुनाने के लिए गीता और उपनिषद पर आधारित शायद ऐसे ही पकाऊ और सिर-खपाऊ तर्क होंगे.

राहुल गांधी गीता और उपनिषद का अपना पाठ पूरा कर लें तो शायद कांग्रेस को वह मोहनी-मंत्र मिल जाए जिसके सहारे वह संघ परिवार के 'जय श्रीराम' जैसे युद्धनाद का मुकाबला कर सके.

कांग्रेसियों के लिए डर की एक और बात है. अगर राहुल गांधी ने युद्धभूमि कुरूक्षेत्र में कृष्ण से मिले अर्जुन को उपदेश यानी गीता के दर्शन को पूरी गंभीरता से आत्मसात कर लिया तो यह भी हो सकता है कि वे संन्यास की मनोदशा मे चले जायें.

ये भी पढ़ें: जब जेपी के जुलूस पर पटना में इंदिरा ब्रिगेड ने चलाई थी गोलियां

ऐसे वक्त में वो यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत अच्छे के लिए है और बाकी राज्यों में बीजेपी जीतती है तो यह भी अच्छे के लिए ही होगा. मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती और इस कारण कांग्रेस का खोया सौभाग्य लौटाने के लिए मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कांग्रेस कभी मेरी नहीं थी और ना ही आगे कभी मुझसे जुड़ी रहेगी.'

मिसाल के लिए आप यहां गीता के उपदेश पर गौर कीजिए. बहुत संभव है राहुल गांधी अभी इसे ही पढ़ रहे हों. गीता में कहा गया है कि: 'जो हुआ अच्छे के लिए हुआ. जो कुछ हो रहा है वह अच्छे के लिए हो रहा है. आगे जो होगा वह भी अच्छे ही के लिए होगा. तुम्हें अतीत का अफसोस करने की जरुरत नहीं. भविष्य की चिंता मत करो. सिर्फ वर्तमान में रहो. तुम्हारा ऐसा क्या चला गया जिसके लिए तुम रोते हो? तुम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाओगे. जो आज तुम्हारा है वह कल किसी और का होगा. वे सारी चीजें तो तुम्हें सुख देती हैं दरअसल वो दुख का कारण हैं. तुम ऐसा क्या लाये थे जो खो गया? तुमने ऐसा क्या बनाया था जो आज बिगड़ गया?जो कुछ तुमने लिया, यहीं से लिया. जो कुछ दिया गया सो यही से दिया गया. आज जो तुम्हारा है कल किसी और का था और आगे किसी और का हो जायेगा. बदलाव प्रकृति का नियम है.'