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राहुल का पीएम मोदी पर भ्रष्टाचार को लेकर हमला

भाजपा नेता अगर इन आरोपों के जवाब में आरोप ही लगाएंगे तो यही माना जाएगा कि दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है.

Mridul Vaibhav

कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों का कारवां उस रास्ते पर चल निकला है, जहां रास्ते ही खो जाते हैं. कोई चिराग जलाने की कोशिश करे तो भी अंधेरा दूर नहीं होता.

पाटीदारों के आंदोलन के गढ़ मेहसाणा और उसके बाद उत्तर प्रदेश के बहराइच में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर जो आरोप लगाए हैं, वे बहुत गंभीर और चिंताजनक हैं. लेकिन यह भी सच है कि ये आरोप बहुत कुछ हवाला घोटाला की जैन डायरी जैसे हैं. इन्हें साबित करना बहुत मुश्किल है.


राहुल गांधी का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात का सीएम रहने के दौरान सहारा और बिड़ला कंपनी से करोड़ों रुपये लिए थे.

क्या था हवाला घोटाला?

आप इस मामले की तुलना जरा 1991 के जैन डायरियों वाले हवाला घोटाला से करें. अब हवाला इनकम टैक्स की डायरियों का दिया गया है, लेकिन उस समय दिल्ली के साकेत में स्थित जैन बंधुओं के आवास पर सीबीआई ने रेड मारी थी. इसमें दो डायरियां, दो नोटबुक,दो फाइलें और कुछ दस्तावेज मिले थे.

इन दस्तावेजों के अनुसार, देश के 115 राजनेताओं को 53.5 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था. इन नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी, देवीलाल, वीसी शुक्ल, शिवशंकर, शरद यादव, बलराम जाखड़, मदनलाल खुराना जैसे कितने ही नाम थे.

भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी पर महज 25 लाख रुपए सांसद रहते और 35 लाख रुपए सांसद नहीं रहते हुए पर लेने का आरोप लगा था. लेकिन इस आरोप के लगते ही आडवाणी ने नैतिक मानदंडों का पालन करते हुए संसद से इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि जब तक वे इस मामले से बरी नहीं हो जाएंगे, संसद में कदम नहीं रखेंगे. उन्होंने ऐसा किया भी.

सुप्रीम कोर्ट में कमजोर था केस

जैन डायरियों के मामले को भ्रष्टाचार से जूझने वाले एक पत्रकार विनीत नारायण सुप्रीम कोर्ट में ले गए थे और मौजूदा मामले को वकील प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में ले जा चुके हैं. कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने आयकर विभाग के दस्तावेजों को सबूत के तौर पर नाकाफी बताया है.

सीधे तौर पर राहुल गांधी के आरोपों को सही भी मान लिया जाए तो यह प्रकरण निजी भ्रष्टाचार का नहीं, राजनैतिक और चुनावी भ्रष्टाचार का है.

हवाला घोटाले को ही याद करें तो एक हैरानीजनक तथ्य यह सामने आता है कि उसमें जैन बंधुओं के वकील कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल थे और उनके उस समय के सुप्रीम कोर्ट में दिए गए तर्क आज नरेंद्र मोदी के समर्थन में तत्पर नजर आते हैं.

उस समय कपिल सिब्बल और अन्य वकीलों ने अपने तर्कों से हवाला घाेटाले की हवा निकाल दी थी और आज राहुल उन्हीं तर्काें को भुलाकर नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करना चाहते हैं.

गंभीर हैं राहुल के आरोप

मेहसाणा में राहुल ने नोटबंदी को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले किए. उसके बाद करीब-करीब वही सब बातें बहराइच में भी कही. उन्होंने कहा कि देश में सिर्फ एक फीसदी बेईमान लोग हैं, जिनके लिए प्रधानमंत्री ने 99 प्रतिशत ईमानदार लोगों को भारी परेशानी में डाल दिया है. नोटबंदी के पीछे सरकार का मकसद सिर्फ अमीर लोगों के बैंक लोन माफ करना है.

मोदी जी की सरकार ने विजय माल्या को 1200 करोड़ की टॉफी दी. उनका 1200 करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया. मोदी जी बताइए, आपने इस चोर का पैसा क्यों माफ किया? आप किसानों का कर्ज माफ करना क्यों भूल गए?

राहुल ने दोहराया कि देश का 99 प्रतिशत कालाधन 50 अमीर परिवारों के पास है, लेकिन मोदी इन पर कोई कार्रवाई नहीं करते. ये वे अमीर हैं, जो मोदी के साथ आस्ट्रेलिया, फ्रांस, अमेरिका और अन्य देशों में जहाज पर बैठकर साथ जाते हैं.

PTI

लेकिन भाजपा कितनी सीरियस?

भाजपा ने प्रधानमंत्री पर लगाए गए कांग्रेस उपाध्यक्ष के आरोपों को शर्मनाक और बेबुनियाद करार दिया है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार शाम ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि राहुल गांधी हताशा और खीझ में गंगा के समान पवित्र प्रधानमंत्री पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं.

भाजपा के नेताओं ने मामले को कोर्ट में लंबित बताया है और कहा है कि बेबुनियाद आरोप लगाना राहुल गांधी की फितरत है. लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा है कि अब गंगा मैली हो गई है. नेशनल हेरल्ड केस को अदालत ले जाने वाले बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि सुप्रीम कोर्ट इन आरोपों को बकवास बता चुका है.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, आप राहुल गांधी की बातों को क्यों गंभीरता से लेते हैं? कांग्रेस वाले भी उनकी बातों को सीरियस नहीं लेते. केंद्रीय एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने भी ऐसी ही चुटकी लेते हुए कहा, 'हम तो चाहते हैं कि राहुल गांधी बोलें. वे जितना बोलेंगे, बेनकाब होते जाएंगे.'

लेकिन राहुल गांधी के आरोपों को भाजपा नेताअों में से किसी ने भी मानहानि वाला नहीं बताया है, जबकि प्रथम दृष्टया ये प्रकरण ऐसा ही है. भाजपा नेता अगर इन आरोपों के जवाब में आरोप ही लगाएंगे तो यही माना जाएगा कि दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है.

अलबत्ता, इससे कौन इनकार करेगा कि राजनीतिक दलों के पास जो सुविधाएं और जो भव्यता है, वह आसमान से तो टपकती नहीं. कोई न कोई तो यह पैसा देता है. और पैसा देता है तो वह डायरियाें में दर्ज भी होता है. इससे न कांग्रेस अछूती है, न भाजपा, न तृणमूल और न कोई और राजनीतिक दल.

दूसरी पार्टियां भी उठाना चाहती हैं फायदा

लेकिन इस प्रकरण पर अन्य राजनीतिक दल भी चुप नहीं हैं. इन आरोपों को लेकर सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने कुछ न कुछ प्रतिक्रिया दी है. तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि आरोपों की जांच हो. जरूरत पड़े तो प्रकरण सीबीआई को सौपें.

उन्होंने प्रधानमंत्री को नसीहत दी कि वे अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का अनुसरण करते हुए इस्तीफा दे दें और जब तक पाक-साफ न हो जाएं, इस पद को न संभालें.

दरअसल आजकल सियासत में न तो नेताओं को रुसवाई का डर है आैर न ही रेजा-रेजा होती इज्जत की परवाह है. अब वक्त के सैलाब में नैतिकताएं बह गई हैं और कोई चीज तभी तक जुर्म है, जब तक उसे सत्ता में बैठा व्यक्ति करता है.

प्रतिपक्ष के लिए जो जुर्म है, वह सत्ताधारी के लिए पुण्य कर्म है. यही पुण्य कर्म उसके लिए आंख की किरकिरी बन जाता है, जब इसे कोई और करता है.

चुनावाें में नेता और दल पैसा लेते हैं और जाहिर है कि कोई भी पार्टी आज आरटीआई के लिए तैयार नहीं है. इसीलिए कि वे यह बताना ही नहीं चाहते कि चुनाव में खर्च होने वाला इतना अपार धन आया कहां से. यह बात न राहुल की पार्टी बताना चाहती है और न मोदी की, न तृणमूल की और न ही लालू की. केजरीवाल भी इन सब चीजों से मुंह चुराते हैं.

यह कैसे संभव है कि नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगें और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चुप रहें. लालू ने मामले की जांच की मांग की है.

प्रधानमंत्री मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगना बहुत गंभीर बात है. इसमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तत्काल और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. मोदी स्वयं भी बताएं कि इनमें तथ्य क्या हैं?

लेकिन इस प्रकरण से यह संकेत नहीं मिलता कि राहुल गांधी ने अपनी मौजूदा छवि तोड़ने और उसे गंभीर बनाने की कोशिश की है. यह पता इस बात से लगेगा कि भले वो यह प्रकरण चुरा कर लाए हों, लेकिन इससे कांग्रेस के भीतर पनपते सियासी बियाबां की उम्मीदें जग सकती हैं.

राहुल को याद रखना चाहिए कि उन्होंने अफसाना तो सुना दिया है, लेकिन अभी इस पर दाद देने वाली आवाजें दिखाई नहीं दे रहीं. मोदी को घेरने के लिए उन्हें सियासत में अपनी एक तर्जे-नजर ईजाद करनी होगी.