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राफेल विवाद: घोटाले की खोज में HAL गए राहुल गांधी, 2 रिपोर्ट बताती हैं कांग्रेस ने कैसे PSU में सुधारों को नजरअंदाज किया

राहुल गांधी को एचएएल के बारे में अपनी राय बनाने से पहले पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी से इस रक्षा-उपक्रम से जुड़े साल 2010 और 2012 की रिपोर्टों के बारे में पूछना चाहिए था. उन्हें याद रखना चाहिए कि जनता एक किनारे खड़ी है और वो देख रही है कि दरअसल दिखाए जा रहे शो में हो क्या रहा है

Yatish Yadav

मनुष्यों की तरह कुछ कहानियां भी एक ही दायरे में चक्कर काटती हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल सौदे में घोटाला खोज निकालने की कठिन कसरत करने में लगे हैं. शनिवार को वो बंगुलरु पहुंचे थे. इरादा मुद्दा बनाकर इस बात को उछालने का था कि फ्रांस की सरकार के साथ लड़ाकू विमान के सौदे करने के कारण ‘हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिडेट (एचएएल)’ के साथ अन्याय हुआ है.

राजकीय स्वामित्व में चलने वाली कंपनी के इर्द-गिर्द मंडराने वाले कांग्रेसी नेता और केंद्रीय कर्मचारियों की जी-तोड़ कोशिश रही कि गांधी परिवार के सिपहसालार के साथ किसी तरह संवाद बने और कोई करिश्मा हो जाए. बीते एक पखवाड़े से कांग्रेस के नेता की सारी कवायद इस एक बात को साबित करने की रही है कि लड़ाकू विमान के सौदे में एचएएल का हक मारा गया है और इस देश को नौकरियों का तो नुकसान हुआ ही है, साथ ही साथ राजस्व की एक मोटी रकम भी गंवानी पड़ी है.


जरुरी नहीं कि ज्ञान समय के व्याकरण में बंधकर ही अपना चेहरा दिखाए. सो, राहुल गांधी को इस बात के लिए दोष नहीं दिया जा सकता कि वो केंद्र की परिधि पर जो कुछ नजर आ रहा है उसे कुरेदकर उभारने में लगे हैं. लेकिन एचएएल के सिद्धहस्त और अनुभवी लोग निश्चित ही पूछ सकते हैं कि आखिर राहुल गांधी को इतनी देर क्यों लगी? राहुल साल 2011 या 2012 में एचएएल क्यों नहीं पहुंचे? आखिर उस वक्त गुणवत्ता के लेकर हुए एक संयुक्त ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया था सार्वजनिक क्षेत्र के इस रक्षा-उपक्रम को सरकारी सहायता की सख्त जरुरत है? यह कहना तो खैर एक अटकल लगाना होगा कि उस वक्त साऊथ ब्लॉक में अपना पैर टिकाए रखने वाले रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने गोपनीय रिपोर्ट को देखा होगा और एचएएल की हालत के बारे में राहुल गांधी को कुछ ना कुछ बताया होगा.

राहुल गांधी ने शनिवार को बेंगलुरु पहुंचकर हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों से बैठक की

HAL की बंदूक में अपनी कारतूस भरकर सरकार की तरफ निशाना साधने की योजना  

और जो ऐसा नहीं हुआ था तो फिर राहुल गांधी को, जो एचएएल की बंदूक में अपनी कारतूस भरकर उससे सरकार की तरफ निशाना साधने की योजना बना रहे हैं, उस रिपोर्ट के कुछ अनुच्छेदों को जरुर पढ़ना चाहिए. एचएएल के पूर्व प्रमुख और खुद राहुल गांधी का तो दावा है कि एचएएल सुखोई और अन्य किस्म के एयरक्राफ्ट बना सकता है लेकिन रिपोर्ट के अनुच्छेद इससे उलट बात कहते हैं. रिपोर्ट को पढ़कर झटका लगेगा क्योंकि उसमें कहा गया है कि एयरो इंजन के विनिर्माण की उत्पादन-दर कम रहने के कारण एचएएल एयरक्राफ्ट के उत्पादन से जुड़े अपने वचन का पालन नहीं कर पाया.

इस गोपनीय रिपोर्ट में लिखा है कि 'एयरक्राफ्ट के उत्पादन के लिए जरुरी एयरो इंजन जुटाने के लिए एचएएल ने भारतीय वायुसेना से एयरो इंजन उधार मांगे. फिलहाल एचएएल के पास भारतीय वायुसेना से उधार पर लिए गए 6 एयरो इंजन हैं और 25 एयरो इंजन, ब्लॉक II और एयरक्राफ्ट के 40 अन्य अतिरिक्त अनुबंधों के तहत लंबित पड़े हैं. विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीजीपी) में कहा गया है कि एचएएल सालाना हद से हद 24 एयरो इंजन का उत्पादन कर सकता है. फिलहाल एचएएल 6 से 7 एयरो इंजन का उत्पादन कर रहा है और इसकी बुनिदायी ढांचे में ऐसा कोई इजाफा नहीं हुआ है जो एयरो इंजन का उत्पादन बढ़कर कम से कम 18 तक ही पहुंच जाए. एचएएल का दावा है कि अगले साल (वित्त वर्ष 2013-14) में 32 एयरो इंजन का उत्पादन होगा लेकिन इस दावे का पूरा होना मुमकिन नहीं जान पड़ता.'

इसके अलावे रिपोर्ट की पेज नंबर 4, पैरा 8 (जी) में सुखोई (एल-31 एफपी) इंजन डिवीजन के बारे में लिखा है कि सटीक अनुसंधान और विकास की कमी है. साथ ही यह भी जिक्र है कि एचएएल ने इंजन बेयरिंग्स के अक्सर नाकाम होने को लेकर जांच और सुधार के उपाय सुझाने की कोई पहलकदमी नहीं की. भारतीय वायुसेना ने एचएएल और डीजीएक्यूए के साथ मिलकर साल 2012 की फरवरी-जुलाई में सुखोई बेड़े का गुणवत्ता संबंधी ऑडिट किया था. संयुक्त ऑडिट टीम 2012 की जुलाई में कोरापुट स्थित एचएएल के दौरे पर गई थी. गुणवत्ता के मसले पर इस टीम ने कहा था कि एयरक्राफ्ट एक्सेसरी गियर बाक्सेज( AAGB's) से तेल की रिसने के 6 मामले जांच में सामने आए. तेल के रिसने के इस वाकये को एचएएल ने दुरुस्त कर लिया था लेकिन तेल रिसने की घटना वारंटी पीरियड में हुई थी और ऐसा क्वालिटी कंट्रोल में कमी के कारण हुआ था.

भारत ने फ्रांस के साथ लगभग 58,000 करोड़ रुपए में आधुनिक 36 राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा किया है (फोटो: पीटीआई)

'तमाम मसलों का असर इंजन की सेहत और उड़ान की सुरक्षा से जुड़े हालात पर पड़ता है'

रिपोर्ट में लिखा है कि 'दरअसल, शोध और विकास से जुड़े कुछ काम जैसे रूस में निर्मित बेयरिंग्स की जगह एसकेएफ निर्मित बेयरिंग्स लगाना, थर्स्ट वेक्टर कंट्रोल (TVC) के टाइम बिट्वीन ओवरहॉल (TVC) लाइफ को बढ़ाना और इंजन बेयरिंग्स की नाकामी पर अंकुश रखने के लिए अंतिरम उपाय करना- भारतीय वायुसेना और आरसीएमए (रिजनल सेंटर्स फॉर मिलिट्री एयरवर्दीनेस) के सक्रिय प्रयासों के कारण संभव हो पाए... संयुक्त क्वालिटी ऑडिट टीम (आईएएफ और एचएएल) ने एक्स-रे बे, इलेक्ट्रोप्लेटिंग शॉप, फिनिश्ड पार्ट स्टोर आदि के रख-रखाव और साफ-सफाई के मानक से जुड़े कुछ खास मुद्दे उठाए थे. पर्यावरण संबंधी जरुरत, कामकाज की जगह और देखभाल की स्थिति को लक्ष्य करते हुए बेयरिंग हॉस्पिटल (वो हिस्सा जहां इंजन बेयरिंग की देखभाल होती है) की खस्ताहाली पर भी टिप्पणी की गई थी. इन तमाम मसलों का असर इंजन की सेहत और उड़ान की सुरक्षा से जुड़े हालात पर पड़ता है.'

रिपोर्ट के पंज नंबर 5 के पैरा 11 पर कामकाज की गुणवत्ता में कमी का जिक्र किया गया है. कहा गया है कि: 'आर-25 और आर-29 एयरो इंजन्स की उत्पादन-दर बहुत ज्यादा कम है और इसकी वजह है एयरो इंजन्स से जुड़े रिटर्न टू शॉप (आरटीएस) मसलों का ज्यादा होना जो कि स्पेयर स्टोरेज और गुणवत्ता में सुधार को लेकर रवैये तथा कामकाज में कमी की देन है, और यह कमी पर्याप्त प्लानिंग या जुड़ाव ना होने के कारण पैदा हुई है. आर-29 श्रेणी के बने 12 इंजन्स में से आरटीएस के 10 मामले पाए गए जबकि आर-25 श्रेणी के बने 25 एयरो इंजन्स में आरटीएस के 5 मामले पाए गए और आरडी-33 श्रेणी के 12 एयरो इंजन्स में आरटीएस के 3 मामले सामने आए. कुल मिलाकर देखें तो बनाए गए कुल 49 एयरो इंजन्स में आरटीएस के 18 मामले सामने आए जो कि कुल का 40 प्रतिशत है. इससे जाहिर होता है कि प्रोडक्शन-लाइन की कार्य-दक्षता 60 प्रतिशत भर है.'

एयरो इंजन का क्वालिटी ऑडिट जब यूपीए सरकार थी तब हुआ

एक दिलचस्प बात यह भी है कि मिग-27 के लिए आर-29 श्रेणी के एयरो इंजन का क्वालिटी ऑडिट साल 2010 में हुआ था जब सरकार यूपीए की थी. रिपोर्ट में कुछ अहम टिप्पणियां हाई प्रेशर टर्बाइन रोटर ब्लेड और सेकेंड स्टेज टर्बाइन ब्लेड के थर्मल ट्रीटमेंट के प्रक्रियागत दोषों के बारे में है. रिपोर्ट में कहा गया है: 'फर्स्ट स्टेज के टर्बाईन ब्लेड पर थर्मल बैरियर की एक परत चढ़ाई जाती है ताकि उसे अत्यधिक गर्म होने से बचाया जा सका. अत्यधिक गर्म होने की सूरत में ब्लेड की सामग्री नाकाम हो जाती है. ओवरहॉल के समय यह परत पूरी तरह हटा दी जाती है और उसे दोबारा चढ़ाया जाता है. क्वालिटी ऑडिट के दौरान सामने आया कि एचएएल (कोरापुट) में इस प्रक्रिया का पालन नहीं हो रहा. यह भी देखने में आया कि एचपीटीआर ब्लेड के लाइफ की निगरानी मूल उपकरण-निर्माता के बताए गए मानकों के हिसाब से नहीं हो रही है.'

ए के एंटोनी

मिग 27 को लेकर रिपोर्ट में कुछ और आलोचनात्मक बातें कही गई हैं जिनमें ऑयल लीक और रीयर केसिंग से हॉट एयर लीक जैसी बातें शामिल हैं. साथ ही, यह भी कहा गया है कि चिप डिटेक्टर और ऑयल फिल्टर में धातु के कण पाए गए. तत्कालीन सरकार को एचएएल को पूरी तरह दुरुस्त बनाने की कोशिश करनी चाहिए थी. यहां मसला सार्वजनिक क्षेत्र के एचएएल सरीखे उपक्रमों की आलोचना करने का या उन्हें कमतर आंकने का नहीं बल्कि मसला यह है कि क्या प्रबंधन से जुड़े लोगों ने जो चिंताएं जाहिर कीं उसे फैसला लेने वाले लोग दूर करने में सक्षम थे या नहीं और क्या फैसला लेने वाले लोगों ने सुधार के अत्यंत जरुरी ऐसे उपाय किए जो रक्षा-क्षेत्र की विश्व की नामी-गिरामी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक है?

राहुल गांधी को एके एंटोनी से इस रक्षा-उपक्रम से जुड़े रिपोर्टों के बारे में पूछना चाहिए था 

उस वक्त की सरकार ने एचएएल को लेकर शायद ही कोई उल्लेखनीय टिप्पणी की हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राहुल गांधी राजकीय स्वामित्व वाले इस रक्षा उपक्रम के अधिकारियों से संवाद ही ना करें. चूंकि सच्चाई अपने को कई रुपों में जाहिर करती है सो राहुल गांधी को एचएएल के बारे में अपनी राय बनाने से पहले एके एंटोनी से इस रक्षा-उपक्रम से जुड़े साल 2010 और 2012 की रिपोर्टों के बारे में पूछना चाहिए था. उन्हें याद रखना चाहिए कि जनता एक किनारे खड़ी है और वो देख रही है कि दरअसल दिखाए जा रहे शो में हो क्या रहा है.