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पंजाब चुनाव 2017: हर पार्टी के नेताओं की नजर डेरों पर

पंजाब के कई इलाकों में डेरों का असर है, जो कि चुनावों में देखने को भी मिलता है

Rajendra Khatry

पंजाब विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल - भारतीय जनता पार्टी गठबंधन, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कड़ा संघर्ष है. कोई भी पार्टी ज्यादा से ज्यादा वोट पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

नेताओं ने राज्य में भारी संख्या में मौजूद डेरों के चक्कर लगाने शुरु कर दिए हैं. चुनावी नतीजों में इन डेरों की भूमिका निर्णायक भी हो जाती है. लगभग 56 विधानसभा सीटों पर डेरों का असर है और इनकी ओर से अपने अनुयायियों को जारी निर्देश बड़ा फेर बदल कर सकता है.


इसमें कोई शक नहीं कि सिख धर्म में डेरों के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकि गुरू को भौतिक रूप या आकार देने की मनाही है. इसके बावजूद चुनाव नजदीक आते ही सभी धर्मों के नेता इनके आस-पास चक्कर लगाते पाए जाते हैं.

कांग्रेस की नजर सबसे बड़े डेरे पर

पंजाब के कई इलाकों में डेरों का असर है. मालवा के इलाके में डेरा सच्चा सौदा सबसे ज्यादा प्रभावी है. वहीं दोआब के इलाके में सचखंड बल्लान का बहुत प्रभाव है. पंजाब में सबसे बड़ा डेरा राधा स्वामी ब्यास का है.

चुनाव में अब हफ्ते भर का समय रह गया है. इसे देखते हुए कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 28 जनवरी को डेरा सचखंड बल्लान का दौरा किया. ये डेरा दलित रविदास समुदाय के बीच लोकप्रिय है.

पिछले महीने राहुल गांधी चार्टर्ड प्लेन से डेरा राधा स्वामी सत्संग के मुख्यालय ब्यास पहुंचे थे. यही नहीं उन्होंने पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ वहां रात भी बिताई और पार्टी के लिए समर्थन मांगा.

आप के नेता अरविंद केजरीवाल भी डेरों का चक्कर लगा रहे हैं. सिख संत धारियांवाला पर हुए जानलेवा हमले के बाद वो उनसे मिलने पटियाला के पास स्थित डेरे पर गए थे.

एक अनुमान के मुताबिक पूरे पंजाब में 9000 डेरे हैं. डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी सत्संग के अलावा डेरा बल्लान, डेरा नूरमहल, डेरा निरंकारी और डेरा नामधारी भी अहम हैं.

ऐसा माना जाता है कि पहले हुए चुनावों में इन डेरों ने किसी न किसी पार्टी के लिए संदेश जारी किए हैं. हाल ही में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल ने एक रैली में दावा किया कि हरियाणा के सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा ने उन्हें समर्थन देने की घोषणा की है.

40 नेता लगा चुके हैं डेरा सच्चा सौदा के चक्कर

हवा में ये खबर भी तैर रही है कि डेरा सच्चा सौदा की राजनीतिक ईकाई दो फरवरी तक चुनाव में किस पार्टी को समर्थन दिया जाए इस पर फैसला कर सकती है. माना जा रहा है कि सच्चा सौदा बीजेपी के पक्ष में संदेश जारी करेगी.

हालांकि डेरा सच्चा सौदा के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉक्टर आदित्य इनसान इस तरह के कयासों का खंडन करते हैं. फर्स्टपोस्ट से बात करते हुए उन्होंने कहा 'हम कभी भी किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन में वोट करने की बात नहीं करते.'

'ये मीडिया की दिमागी उपज है. लेकिन हम किसी को डेरा आने से भी मना नहीं करते. हम ऐसा कर भी नहीं सकते. इसलिए हर तरह के लोग हर तरह की मदद की गुहार लिए आते हैं. हम उन्हें समय देते हैं, सुनते हैं. ये जरूरी नहीं कि हम उनकी बात मान लें. हमारी राजनीतिक ईकाई अनुयायियों से सिर्फ कल्याणकारी काम के लिए सहमति मांगती है, राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं.'

अभी तक लगभग 40 नेताओं ने डेरा सच्चा सौदा के चक्कर लगाए हैं. इसमें पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री सुरजीत सिंह ज्ञानी, राजिंदर कौर भट्टल, राजा वारिंग, परमिंदर सिंह ढिंडसा, सिकंदर सिंह मलूका और हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु शामिल हैं जो पंजाब के सह प्रभारी भी हैं.

पटियाला, संगरूर, फरीदकोट, बरनाला, मानसा, फजिल्का में डेरा सच्चा सौदा का असर माना जाता है. सूत्रों का कहना है कि सच्चा सौदा सीधे तौर पर शिरोमणि अकाली दल को समर्थन नहीं करेगा. इसके साथ डेरा के रिश्ते पहले कई बार बिगड़ चुके हैं. लेकिन पंजाब बीजेपी को उम्मीदे हैं.

अकाली और बीजेपी साथ ही चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए अगर डेरा ने बीजेपी को समर्थन दिया तो भी अकालियों को फायदा होना तय है. डेरा के 70 लाख अनुयायी हैं और मालवा के इलाके में इसका समर्थन बड़ी भूमिका निभा सकता है. हालांकि बीजेपी इस इलाके की तीन सीटों फजिल्का, फिरोजपुर और अबोहर से ही लड़ रही है.

डेरा ने 1998 के चुनाव में अकालियों का समर्थन किया था. हालांकि बाद में इसने कांग्रेस को भी समर्थन दिया.

पंजाब में डेरों से तय होती है हार-जीत

चंडीगढ़ स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार का कहना है कि राजनीतिक दल डेरा के संदेश को वोटरों के लिए अफीम जैसा मानते हैं ताकि एकमुश्त भारी संख्या में वोट बटोर पाएं.

उनके मुताबिक डेरा सच्चा सौदा ने वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को खुल कर समर्थन दिया था. हालांकि कांग्रेस चुनाव हार गई थी. डॉ कुमार के मुताबिक इस चुनाव में कांग्रेस हार तो गई लेकिन इस इलाके में नुकसान अकालियों को ज्यादा हुआ. 20 सीटों पर अकाली उम्मीदवार हार गए.

सूत्रों के मुताबिक अकाली पिछले एक साल डेरा सच्चा सौदा को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं. जानकारों के मुताबिक अकालियों के दबाव में ही सिखों की सबसे बड़ी संस्था अकाल तख्त ने सच्चा सौदा के गुरू राम रहीम इनसान को सितंबर, 2015 में माफ कर दिया था.

उन पर गुरू गोबिंद सिंह से मिलता जुलता परिधान धारण करने के आरोप लगे थे. राम रहीम कभी अकाल तख्त के सामने पेश भी नहीं हुए. उन्होंने महज एक पत्र भेज कर माफी मांग ली थी.

आम तौर पर अकाली भी खुल कर डेरों से समर्थन नहीं मांगते क्योंकि इनकी छवि पंथ विरोधी रही है. इसके बावजूद सीएम प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल राधा स्वामी सत्संग डेरे में कई चक्कर लगा चुके हैं.

अकालियों ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के खिलाफ भी अपना रूख साफ नहीं किया जिसके गुरू आशुतोष भारद्वाज की संदिग्ध मौत का मामला कोर्ट में है. संस्थान के अनुयायी अभी भी आशुतोष भारद्वाज का शव फ्रीजर में रखे हुए हैं. उनका कहना है कि उनके गुरू समाधि में हैं.

दमदमी टकसाल

कैप्टन अमरिंदर सिंह दमदमी टकसाल के प्रमुख से भी मिलने पहुंचे

कैप्टन अमरिंदर सिंह डेरा रूमीवाला आते जाते रहते हैं. इसके प्रमुख सुखदेव जी हैं. इसका मुख्यालय बठिंडा में है. हालांकि यह डेरा पहले कभी किसी पार्टी से संबंधित नहीं रहा है.

कैप्टन ने राधा स्वामी, नूरमहल, डेरा धेसियां, रणजीत सिंह धदरियांवाले और नामधारी डेरों में समय बिताया है. नेता दमदमी टकसाल के प्रमुख हरनाम सिंह धुम्मा से भी मिलने पहुंचे हैं. ये कट्टर सिख धार्मिक संगठन है जिसने ऑपरेशन ब्लू स्टार के समर्थन में स्वर्ण मंदिर परिसर में स्मारक बनवाया था. अब ये अकालियों का समर्थन करता है.

पंजाब में उदय सिंह और हरियाणा में दलीप सिंह की अगुवाई वाले नामधारी डेरे के अनुयायी भी पंजाब में बहुत हैं. चंडीगढ़ स्थित नामधारी संगत के प्रमुख सूबा गुरमुख सिंह ने स्पष्ट कहा कि वो अकालियों को जीतता देखना चाहते हैं.