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पुण्यतिथि विशेषः सरकार किसी की भी रहे, चलती तो बाल ठाकरे की ही थी

अपने जीवन में हर रंग देखने वाले ठाकरे मुंबई और शिवसेना को अपने हालात पर छोड़ आज ही के दिन 2012 में इस दुनिया को छोड़कर चल बसे थे

Abhishek Tiwari

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या ऊंचे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के ही निधन पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है. लेकिन आप सोचिए कि एक इंसान जो कभी सांसद भी न रहा हो, उसके लिए ये किया जाए तो उसके रुतबे का अंदाजा लगा सकते हैं. जी हां शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे ऐसे ही एक नाम हैं, जिन्हें ये गौरव प्राप्त है. आज ही के दिन उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा था.

बाल ठाकरे का नाम आते ही जेहन में एक ऐसे नेता की छवि आती है जो महाराष्ट्र में हिंदू और दक्षिणपंथ का हिमायती था. एक कार्टूनिस्ट से शुरू हुआ सफर शिव सेना प्रमुख बनने तक रहा.


अपने पूरे जीवन में विरोध की राजनीति करने वाले बाल ठाकरे ने 1966 में शिव सेना की स्थापना की. वहां से शुरू हुआ सफर और पार्टी को राज्य में सत्ता तक पहुंचाया.

पार्टी बनने के बाद से ही उन्होंने किसी-न-किसी एक समुदाय या किसी खास जगह के रहने वाले लोगों के प्रति अपने विरोध का तरीका अपनाया. शुरुआत दक्षिण भारतीय लोगों से हुई और यह आखिर में मुसलमानों तक पहुंचा. उनको और उनकी पार्टी को इसका फायदा भी मिला.

सरकार किसी की भी रहे, चलती तो बाल ठाकरे की ही थी 

एक दौर ऐसा भी आया जब ठाकरे के बारे में ये कहा जाने लगा कि सरकार किसी की रहे मुंबई में वहीं होता है जो बाल ठाकरे चाहते हैं. एक हद तक यह बात सही भी थी. एक समय में उनके इशारे पर शिव सैनिक किसी भी घटना को अंजाम देने में नहीं सोचते थे.

उनकी पार्टी सरकार या सत्ता में रहे या न रहे ये बाल ठाकरे के जलवे का ही नतीजा था कि बड़े-बड़े लोग उनके यहां हाजिरी लगाने जाया करते थे. बाला साहब ठाकरे ने अपने पूरे जीवन में जो किया वो डंके की चोट पर किया. चाहे वो विरोध रहा हो या समर्थन.

दूसरी पार्टी के लोगों के लिए भी बाल ठाकरे हमेशा मौजूद रहा करते थे. समर्थन और विरोध में हमेशा मुखर रहे ठाकरे ने फिल्म अभिनेता और कांग्रेस नेता सुनील दत्त की तब मदद की थी जब उनके बेटे संजय दत्त मुंबई बम ब्लास्ट में आरोपी थे. मुंबई के लिए लड़ने वाले बाल ठाकरे ने जब ये किया तो उनके विरोधियों ने आलोचना भी की, लेकिन ठाकरे थे ही ऐसे.

बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक गलियारों में उनके चाहने वाले हर जगह थे. एक समय में दिलीप कुमार से भी उनके काफी अच्छे संबंध थे. एक बार ठाकरे ने बताया था कि एक दौर में दिलीप कुमार लगभग हर शाम साथ में होते थे, लेकिन बाद में पता नहीं उनको क्या हुआ कि दूर चले गए.

अपने जीवन में हर रंग देखने वाले ठाकरे मुंबई और शिवसेना को अपने हालात पर छोड़ आज ही के दिन 2012 में दुनिया छोड़ गए.