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कर्नाटक चुनाव 2018: पीएम मोदी को क्यों पड़ी ट्रांसलेटर की जरूरत

इससे पहले कर्नाटक में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी ट्रांसलेटर का इस्तेमाल नहीं किया था

FP Staff

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली इस बार थोड़ी अलग है. कर्नाटक में रैली के दौरान वह हिन्दी में भाषण दे रहे हैं और उनके साथ मंच पर खड़े ट्रांसलेटर उस भाषण को कन्नड़ में आम जनता तक पहुंचा रहे हैं.

इससे पहले कर्नाटक में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी ट्रांसलेटर का इस्तेमाल नहीं किया था. नए जमाने के कन्नड़ कार्यकर्ता इसे अपनी बड़ी जीत बता रहे हैं. इनका कहना है कि कर्नाटक में कन्नड़ को प्राथमिकता दिलाने के लिए उनकी मेहनत रंग लाने लगी है. कार्यकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने बीजेपी पर मोदी के भाषण के दौरान कन्नड़ ट्रांसलेटर के लिए दबाव बनाया और वो आखिरकार मान गए.


कन्नड़ की प्राथमिकता के लिए बनवसी बलगा नाम का एक संगठन लगातार काम कर रहा है. इनके एक नेता अरुण जवागल कहते हैं, 'बीजेपी के लोग कहते थे कि कन्नड़ ट्रांसलेटर के इस्तेमाल से प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का फ्लो खत्म हो जाएगा. लेकिन हमने उनसे कहा कि अगर भाषण लोगों तक नहीं पहुंचता है, तो ये फिर बेकार हो जाएगा. राहुल गांधी ने पूरे राज्य में कन्नड़ ट्रांसलेटर का इस्तेमाल किया है. ऐसे में अब मोदी भी ट्रांसलेटर के लिए तैयार हो गए हैं.''

क्या है रणनीति?

सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल और कन्नड़ कार्यकर्ता गिरीश कारगाडेने इसे एक स्वागत योग्य कदम माना है. उन्होंने कहा 'हम खुश हैं कि आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विविधता को समझ लिया है और एक ट्रांसलेटर रखने का फैसला किया. उम्मीद है चुनाव खत्म होने के बाद भी ये जारी रहेगा.'

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कन्नड़ भाषा से बीजेपी को अचानक लगाव नहीं हुआ है. बीजेपी ने पिछले दो महीनों में अपना रुख बदला है. इतना ही नहीं बीजेपी ने कहा था कि कांग्रेस भाषा के आधार पर देश को बांटने की कोशिश कर रही है.

पिछले साल जुलाई-अगस्त में केंद्र के हिंदी लगाव पर जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ था. बीजेपी ने कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार के कन्नड़ झंडे का भी विरोध किया था. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी को लगता है कि कन्नड़ से दूरी बनाने पर उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है