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आलोचकों को महाभारत का 'शल्य' बताकर उल्टा तीर चला बैठे मोदी

प्रधानमंत्री मोदी आईआईपी, नौकरियों की कमी और बाजार में छाई घोर निराशा पर भी अभीतक कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे पाए हैं

Sandipan Sharma

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के आलोचकों की तुलना शल्य के साथ करके अपने लिए ही परेशानी खड़ी कर ली है. इसकी तीन वजहें हैं, पहली वजह ये कि, शल्य हालांकि कर्ण के रथ के सारथी थे, लेकिन उन्होंने बेमन से महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया था. दरअसल दुर्योधन ने छल-कपट से शल्य को अपने साथ मिला लिया था, और उन्हें मजबूरी में अच्छाई के खिलाफ बुराई का साथ देना पड़ा.

दूसरी वजह ये कि, महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण ने शल्य की सलाह की अनदेखी की थी, और अर्जुन को मारने का मौका चूक गए थे. आखिर में शल्य की वो भविष्यवाणी सच साबित हुई थी कि, जिसमें उन्होंने कहा था कि अर्जुन ही अंततः कर्ण को पराजित करेंगे.


दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था में छाई मंदी को समझाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पौराणिक कथा का सहारा लिया है, और खराब हालात का ठीकरा आलोचकों और विरोधियों के सिर फोड़ा है. मोदी ने जो उदाहरण दिया उससे सरकार का कोई भला नहीं होने वाला, लेकिन उनके लिए अहम सबक जरूर साबित हो सकता है.

शल्य एक शक्तिशाली राजा और प्रसिद्ध सारथी थे. वो पांडु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई और जुड़वां पांडव बंधु नकुल और सहदेव के मामा थे. शल्य को जब पता चला कि महाभारत का युद्ध होने वाला है, तो वे पांडवों की तरफ से लड़ने के लिए चल पड़े. लेकिन बीच रास्ते में  दुर्योधन ने उन्हें छल से अपनी सेना में मिला लिया.

शल्य की सलाह नहीं मानने से घाटा में गए थे कर्ण 

दरअसल दुर्योधन ने शल्य के सामने खुद को युधिष्ठिर के तौर पर पेश किया और उनका खूब सेवा-सत्कार किया. शल्य को लगा कि उनकी ऐसी सेवा युधिष्ठिर कर रहे हैं, लिहाजा उन्होंने अपने मेजबान को उसकी इच्छा पूर्ति का वचन दे दिया. शल्य को जबतक अपने साथ हुए षड्यंत्र का पता चलता तबतक देर हो चुकी थी.

अपने साथ हुए छल के बावजूद शल्य ने अपने सम्मान की खातिर महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया. हालांकि कुरुक्षेत्र में जब शल्य का सामना पांडवों से हुआ तो उन्होंने युधिष्ठिर को जीत का आशीर्वाद दिया.

सारथी के रूप में शल्य लगातार कर्ण को उनकी कमियां और दोष गिनाते और उन्हें हतोत्साहित करते रहते थे. वे बार-बार कर्ण से कहते कि उनके अंदर अर्जुन को हरा पाने की क्षमता नहीं है. महाभारत के युद्ध के 16वें दिन पर उस समय दिलचस्प स्थिति पैदा हो गई, जब युद्ध के मैदान में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आए.

कर्ण ने जैसे ही अपने धनुष की प्रत्यंचा पर तीर रखकर अर्जुन पर निशाना साधा, शल्य ने उन्हें अर्जुन की छाती पर वार करने की सलाह दी. लेकिन कर्ण को लगा कि शल्य चाहते हैं कि वो विफल हो जाएं, इसलिए उन्होंने छाती की बजाए अर्जुन के मस्तक को लक्ष्य बनाकर तीर चलाया. उसी समय  अर्जुन के सारथी कृष्ण ने रथ को मोड़ दिया, जिससे कर्ण का निशाना चूक गया.

इसलिए, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे अपने आलोचकों की तुलना शल्य से करके प्रधानमंत्री मोदी न सिर्फ उनकी प्रशंसा कर रहे हैं, बल्कि उनका सम्मान भी बढा रहे हैं. मोदी अपरोक्ष रूप से ये भी कह रहे हैं कि उनके आलोचक अच्छाई की जीत के पक्षधर हैं. यानी देश के मौजूदा आर्थिक हालात को लेकर यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने जो मूल्यांकन किया है वो न सिर्फ सही है, बल्कि भविष्य को लेकर उनकी चिंताएं भी जायज हैं.

अच्छे दिन का आस लगाए लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है 

नोटबंदी के कारण देश की जनता को अपने ही पैसे से वंचित होना पड़ा है

जबकि जीडीपी की गणना अगर यूपीए सरकार के दौरान इस्तेमाल होने वाली पद्धति से की जाए तो ये संख्या लगभग 3.7 फीसदी के स्तर तक ही पहुंच पा रही है. कारखानों के उत्पादन में भारी गिरावट आई है, नौकरियों के अवसर बेहद कम हैं, लगभग हर सेक्टर के हालात खराब हैं.

पीएम मोदी का तर्क है कि अर्थव्यवस्था के बहुत खराब दिन चल रहे हैं, जो फिलहाल खत्म होने वाले नहीं हैं. साल 2014 में 'अच्छे दिन' के वादे के चलते लोगों ने मोदी को सत्ता सौंपी थी. लेकिन अब अर्थव्यवस्था के मापदंडों के हिसाब से काफी वक्त से बाजार में मंदी छाई हुई है, हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.

जिससे अच्छे दिनों की आस लगाए बैठे लोगों का सब्र जवाब देने लगा है. ऐसे में वर्तमान परिस्थितियों को न्यायसंगत बताने के लिए अतीत के पीछे छुपने की कवायद से सरकार को कुछ हासिल नहीं होगा. सरकार को सामने आकर उन लोगों को जवाब देना ही होगा जिन्होंने बड़ी उम्मीदों के साथ उसे वोट दिया था.

पुरानी कहावत है, जिस बात की आप व्याख्या नहीं कर सकते, जिस समस्या को आप सुलझा नहीं सकते, तो उसे और उलझा दो. ठोस नीतियों और अच्छे प्रदर्शन को तरसतीं सरकारों के लिए ये मंत्र हमेशा से कारगर होता आया है. इसीलिए पीएम मोदी ने अपने भाषण में दलील दी कि यूपीए सरकार के दौरान तिमाही विकास दर कई बार 5.7 फीसदी के नीचे आ चुकी है.

मोदी के कथन में विचार से ज्यादा विचारक हो जाता है हावी 

लेकिन मोदी की ये दलील महाभारत के अश्वत्थामा प्रकरण की तरह ही आधा सच है. क्योंकि जनवरी 2015 में सीएसओ यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जीडीपी की गणना के लिए एक नए बेस इयर को अपनाया था. ऐसे में प्रधानमंत्री का जीडीपी को लेकर यूपीए सरकार से तुलना करना सरासर पक्षपात है.

इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी आईआईपी, नौकरियों की कमी और बाजार में छाई घोर निराशा पर भी अभीतक कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे पाए हैं. आलोचकों को उनके जवाब में तथ्य कम और वाक्यपटुता ज्यादा नजर आई. मोदी का भाषण उनकी क्लासिकल और सदाबहार शैली के अनुरूप ही था, जिसमें हमेशा संदेश की तुलना में संदेशवाहक ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. यानी जहां समस्याओं और परिस्थितियों पर अदा हावी हो जाती है.

आलोचकों की शल्य के साथ दोषपूर्ण तुलना ने मोदी सरकार की खासी किरकिरी करा दी है. ऐसे में सुझाव है कि सरकार को अपने ज्ञान का विस्तार करना चाहिए. इसके लिए सरकार को पठनीय किताबों और ग्रंथों की सूची बढ़ानी होगी, इनमें महाभारत जैसे ग्रंथ का नाम सबसे ऊपर होना चाहिए. वैसे मोदी सरकार अगर ऑस्कर वाइल्ड की किताब 'द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे' से शुरूआत करे तो बेहतर होगा.

इस किताब में लेखक ने बताया है कि, हमें सिर्फ विचार के महत्व पर जोर देना चाहिए, विचार को व्यक्त करने वाले शख्स की ईमानदारी से विचार का कोई लेना-देना नहीं होता है. ऑस्कर वाइल्ड के मुताबिक, 'अगर हम कोई विचार हमेशा उतावले रहने वाले किसी सच्चे अंग्रेज के सामने रखें, तो वो कभी नहीं सोचेगा कि उसे सुझाया गया विचार सही है या गलत, वो सिर्फ उस विचार के महत्व के बारे में सोचेगा और तय करेगा कि उसपर विश्वास किया जाए या नहीं.'

अब ‘मोदी सरकार’ को ऑस्कर वाइल्ड के ‘सच्चे अंग्रेज’ के स्थान पर रख कर सोचें, तो आपको सरकार के सदाबहार खंडन और इनकार की सही तस्वीर नजर आ जाएगी.