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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक जवाब से विरोधियों को कर दिया 'चारों खाने चित'!

प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि वह अगला संसदीय चुनाव ना तो विकास के एजेंडे पर लड़ना चाहते हैं, न ही राम मंदिर के भावनात्मक मुद्दे पर.

Sanjay Singh

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में इससे ज्यादा ईमानदार और स्पष्ट नहीं हो सकते थे जब उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसले आने के बाद ही केंद्र में उनकी सरकार के जरिए कानूनी प्रक्रिया पर विचार किया जाएगा. ऐसा कह कर उन्होंने पांच चीजें साफ कर दी हैं- पहला, वह उन जन आकांक्षाओं के प्रति सचेत हैं, जो उनके और उनकी सरकार के प्रति बीजेपी समर्थकों के विशाल जनसमूह के साथ ही संघ परिवार के विभिन्न घटकों में हैं और इस तरह विधेयक या अध्यादेश का कानूनी रास्ता खुला हुआ है.

दूसरा, वह सुप्रीम बीजेपी नेता के तौर पर उनसे जुड़ी उम्मीदों और वैचारिक अवलंबन से पल्ला नहीं झाड़ रहे हैं, लेकिन साथ ही साथ राष्ट्र के प्रधानमंत्री के रूप में, उन्हें संवैधानिक, कानूनी और व्यावहारिक संवेदनशीलता का भी ध्यान रखना है. मौजूदा शीतकालीन सत्र की समय-अवधि में, जो 16वीं लोकसभा का अंतिम सत्र होगा (कोई बजट सत्र नहीं होगा और 'अंतरिम बजट' तकनीकी रूप से शीतकालीन सत्र में ही प्रस्तुत किया जाएगा, जब यह 8 जनवरी को अवकाश हो जाने के बाद जनवरी के अंत में फिर शुरू होगा) और मोदी सरकार के शेष कार्यकाल में फरवरी के आखिर में या मार्च के पहले सप्ताह में संसदीय चुनावों की घोषणा हो जाएगी. चुनाव की घोषणा होने से पहले मोदी सरकार के लिए (शीतकालीन सत्र/बजट सत्र फरवरी के मध्य में समाप्त होने के बाद) केवल 15 दिन का एक मौका होगा, क्योंकि चुनाव की घोषणा के साथ आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी. यहां तक कि मोदी सरकार अगर बिजली की रफ्तार से काम करती है और अध्यादेश लाती है तो भी यह बेकार की कवायद होगी क्योंकि संसद का कार्यकाल समाप्त होने के कारण अध्यादेश को संसद में पुष्टि के लिए पेश नहीं किया जा सकेगा.


टकराव

तीसरा, प्रधानमंत्री पद पर अपने मौजूदा कार्यकाल के अंत में वह यह आभास नहीं देना चाहेंगे कि वह सुप्रीम कोर्ट से टकराव मोल ले रहे हैं. राम जन्मभूमि मुकदमा 4 जनवरी को कोर्ट में सुनवाई के लिए आएगा. चौथा, उन्होंने आरएसएस को एक संदेश भी दे दिया है कि शासन के मुद्दे को उनके अधिकार क्षेत्र में रहने दें. आरएसएस राम मंदिर के मुद्दे पर आंदोलन जारी रख सकता है और कानून के माध्यम से मुद्दे का समाधान खोजने के लिए एक दोस्ताना सरकार पर दबाव डाल सकता है लेकिन सरकार इस संबंध में अंतिम फैसला लेने से पहले अन्य कारकों को भी देखेगी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कई मौकों पर कहा है कि वह और उनके पार्टी के सहयोगी संघ के साथ बातचीत कर रहे हैं और उनको सरकार में राजनीतिक नेतृत्व की विचार-प्रक्रिया और व्यावहारिक हालात से वाकिफ कराएंगे. शाह ने यह भी संकेत दिया था कि जब तक शीर्ष अदालत इस विषय पर अपना निर्णय नहीं दे देती, तब तक कोई विधेयक या अध्यादेश संभव नहीं है. पीएम मोदी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए, स्पष्ट रूप से सरकार की स्थिति को सामने रख दिया है.

पांचवां, ऐसा कहकर पीएम मोदी ने साफ कर दिया कि वह अगला संसदीय चुनाव न तो विकास के एजेंडे पर लड़ना चाहते हैं, न ही राम मंदिर के भावनात्मक मुद्दे पर, जैसा कि उनके आलोचक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी आरोप लगाते रहे हैं. मंदिर के मुद्दे पर विधेयक को लेकर उनके स्थिति साफ कर देने के बाद तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों, कांग्रेस और इसके संभावित महागठबंधन का प्रमुख चुनावी मुद्दा खत्म हो गया है. ये दल कहते रहते हैं कि मोदी के पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है और इसी वजह से बीजेपी-आरएसएस मंदिर मुद्दे को उभारने की कोशिश कर रहे हैं. विपक्ष का एक और आरोप यह है कि मोदी सरकार नागपुर में आरएसएस से नियंत्रित होती है. यह आरोप भी अब पूरी तरह से सारहीन बयानबाजी होगी.

ट्रिपल तलाक पर दिया अध्यादेश का हवाला

दिलचस्प है कि पीएम मोदी ने ट्रिपल तलाक पर अध्यादेश का हवाला दिया. उन्हें उम्मीद होगी कि बीजेपी के समर्थक उनकी बात सुनेंगे और तर्कसंगत फैसला लेंगे. 'ट्रिपल तलाक अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लाया गया था. हमने अपने बीजेपी के घोषणापत्र में कहा है कि इस मुद्दे का समाधान संविधान के तहत निकलेगा. कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि पिछले 70 सालों में सरकारों में बैठे लोगों ने इस मुद्दे का समाधान टालने की सारी कोशिशें की हैं. आज भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है. एक तरह से, यह अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है. न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने दें. न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद, सरकार के रूप में हमारी जो भी जिम्मेदारी होगी, हम सभी प्रयास करने के लिए तैयार हैं.' उन्होंने कांग्रेस पर भी निशाना साधा (सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल की दलील का जिक्र करते हुए). उन्होंने अपने कट्टर समर्थकों, संघ परिवार और उसके बाहर हिंदुत्व के पैरोकारों की चिंताओं को भी ध्यान में रखते हुए कहा, 'न्यायिक प्रक्रिया समाप्त होने के बाद, सरकार के रूप में हमारी जो भी जिम्मेदारी होगी, हम सारे प्रयास करने के लिए तैयार हैं.' मोदी आखिरकार हिंदू ह्रदय सम्राट माने जाते हैं. एक ऐसा शख्स जो अपने पूरे राजनीतिक जीवन में हिंदुत्व का प्रतीक बनकर रहा है, हालांकि मोदी ने कभी सीधे उन्मादी हिंदुत्व का पक्ष नहीं लिया.

मोदी के बयान को आरएसएस का समर्थन बीजेपी के लिए राहत देने वाला होना चाहिए. साक्षात्कार खत्म होने के बाद वरिष्ठतम सह सरकार्यवाह या महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने बयान जारी कर कहा 'हमें लगता है कि प्रधानमंत्री के जरिए दिया गया बयान मंदिर निर्माण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है. प्रधानमंत्री ने अपने साक्षात्कार में अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण के संकल्प को दोहराया और यह बीजेपी के जरिए 1989 में पालमपुर में पारित प्रस्ताव के अनुरूप है. इस संकल्प में बीजेपी ने कहा था कि वह दोनों समुदायों के बीच आपसी संवाद के माध्यम से या आवश्यक कानून बनाकर अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का प्रयास करेगी. यहां तक कि 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तैयार चुनाव घोषणापत्र में भी, बीजेपी ने संविधान के ढांचे के भीतर रहते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण सुगम बनाने के लिए सभी संभावनाओं का पता लगाने का वादा किया था. भारत के लोगों ने पूरा विश्वास जताया और बीजेपी को पूर्ण जनादेश दिया. भारत के लोग इस सरकार से इस कार्यकाल के दौरान इस वादे को पूरा करने की उम्मीद करते हैं.'

आरएसएस के बयान का बारीकी से अध्ययन करने पर समझ में आता है कि इसने मोदी सरकार के साथ समझदारी से अपना संतुलन कायम रखा है. इसे शर्मिंदा नहीं किया है, यहां तक कि मंदिर के मुद्दे पर मोदी के शब्दों को भी सकारात्मक रूप से लिया है. लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि वह चाहता है कि मोदी सरकार राम मंदिर के लिए कानून अपने मौजूदा कार्यकाल में ही बनाए. ऐसा लगता है कि बाद वाला हिस्सा पार्टी कार्यकर्ताओं को सुनाने के लिए कहा गया है.