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राष्ट्रपति चुनाव 2017: ये बाजी बेटे राहुल की जगह मां सोनिया क्यों खेल रही हैं?

कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी एक बार फिर एक्शन में हैं

Amitesh

कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी एक बार फिर एक्शन में हैं. वह लगातार फोन की घंटी बजाकर, तो कभी विपक्षी नेताओं से अलग-अलग मुलाकात करके उनका मन टटोल रही हैं. सोनिया की कोशिश गैर-बीजेपी दलों को एक साथ लाने की है.

क्या है इस मुलाकात का मकसद?


यह कोशिश 2019 की लड़ाई के लिए नहीं है. यह सरगर्मी दो महीने बाद जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर है. अगले लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन बनाने की कवायद पहले से ही चल रही है. फिलहाल सोनिया की सक्रियता राष्ट्रपति चुनाव को लेकर है. इसमें वो सभी विपक्षी दलों को साधकर विपक्ष की तरफ से एक साझा उम्मीदवार खड़ा करना चाहती हैं.

इस कड़ी में सोनिया गांधी ने मुलायम सिंह यादव से लेकर लालू प्रसाद यादव तक को फोन घुमाया है. मुलाकातों को सिलसिला शुरू है. सोनिया गांधी ने जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की है. नीतीश की भी कोशिश गैर-बीजेपी दलों को एक साथ एक मंच पर खड़ा करने की रही है.

सोनिया गांधी ने इसके पहले एनसीपी नेता शरद पवार, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई के डी राजा और जेडी एस के नेता पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा से भी मुलाकात की है.

सोनिया गांधी ने हाल ही में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्लाह से भी मुलाकात की है जिसे राष्ट्रपति चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

चलता रहेगा मुलाकात का सिलसिला?

हालांकि, सोनिया का सियासी दलों के नेताओं से मुलाकात का सिलसिला जारी रहेगा. सूत्रों के मुताबिक, सोनिया गांधी जल्द ही टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा बीएसपी सुप्रीमो मायावती से भी मुलाकात करने वाली हैं. राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में ही सोनिया की मुलाकात डीएमके के एम के स्टालिन से भी हो सकती है.

विपक्षी दलों की तरफ से एक साझा रणनीति बनाने की कवायद हो रही है, जिसका नेतृत्व सोनिया गांधी ने संभाल लिया है. दरअसल, विपक्षी दलों की तरफ से तैयारी इसी बात को लेकर हो रही है कि हर सूरत में एनडीए उम्मीदवार को पटखनी दी जाए.

एनडीए को पटखनी देने की होड़

ताल लालू भी ठोंक रहे हैं तो दूसरे लोग भी सोनिया के साथ मिलकर एक नए समीकरण बनाने में लगे हैं. ममता बनर्जी से लेकर सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी तो नवीन पटनायक को पटाने के लिए लगे हुए हैं. इस उम्मीद में कि बीजेडी को साधकर विपक्षी एकता को नई धार दी जा सके. इनकी नजर चंद्रशेखर राव की टीआरएस और एआईएडीएमके पर भी है.

लेकिन, सवाल यही खड़ा हो रहा है कि आखिर इस पूरी कवायद की कमान कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी को क्यों करनी पड़ी. सोनिया गांधी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं है. लिहाजा वह कई बार कांग्रेस की अहम बैठक से भी नदारद रहीं. उनकी गैर-मौजूदगी में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ही पूरी कमान अपने हाथों में ले रखी थी.

क्या राहुल पर अब भरोसा नहीं?

तो क्या सोनिया का राहुल से भरोसा उठ गया है. यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि, राहुल की अगुआई में ही यूपी समेत कई राज्यों में कांग्रेस अपनी लाज नहीं बचा पाई है. एक के बाद एक हार ने कांग्रेस को भीतर से हिला कर रख दिया है. शायद इसीलिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में प्रस्ताव पारित करने के बाद भी राहुल की कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी नहीं हुई है.

राहुल की कार्यक्षमता और उनकी गंभीरता सवालों के घेरे में है. अगर ऐसा नहीं होता तो इस वक्त राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले सोनिया की सक्रियता राहुल की शिथिलता पर भारी नहीं पड़ रही होती.

खैर, इन सबके बीच सोनिया की अगुआई में विपक्ष की कोशिश एनडीए के भीतर भी दरार पैदा करने की है. खासतौर से शिवसेना पर विपक्ष की नजर है. पहले भी यूपीए के उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन शिवसेना ने किया है.

इस वक्त शिवसेना के साथ बीजेपी के रिश्तों में रह-रह कर खटास देखने को मिल जाती है. विपक्ष की कोशिश इस दरार का फायदा उठाने की है.

सोनिया से लेकर सीताराम तक और लालू-नीतीश से लेकर मुलायम तक की कवायद एक रस्म अदायगी ही नजर आ रही है. क्योंकि मौजूदा वक्त में आंकड़े उनके साथ नहीं हैं. खासतौर से पांच राज्यों में चुनावी जीत के बाद तो बीजेपी और एनडीए के पक्ष में आंकड़े ज्यादा बेहतर हो गए हैं.

एनडीए को कितने वोटों की जरूरत?

राष्ट्रपति चुनाव के लिए इलेक्टोरल कॉलेज के कुल मतों का वैल्यू 10,98,882 है. इसमें राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए आधे से ज्यादा यानी 5,49,442 मतों के वैल्यू की जरूरत है. फिलहाल एनडीए के पक्ष में सभी सांसदों और विधायकों के मतों के मूल्य को जोड़ने पर ये आंकड़ा 5,31,442 आता है.

एनडीए फिलहाल बहुमत से करीब 18000 मतों के मूल्य से पीछे है. ऐसे में एआईएडीएमके, बीजेडी या टीआरएस को साथ लाकर बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर राष्ट्रपति पद पर अपने उम्मीदवार को जीताने में सफल हो सकती है.

मौजूदा दौर में इस बात की संभावना है कि विपक्षी एकता के बावजूद भी बीजेपी और एनडीए को रोक पाना मुश्किल ही होगा. लेकिन, रस्मअदायगी करनी है तो कांग्रेस और बाकी विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव से पहले मतभेद भुलाकर एकजुट होने की कवायद कर रहा है. शायद हार के बावजूद 2019 की लड़ाई के पहले विपक्ष मोदी विरोधी मंच का खांका खींचने की कोशिश में सफल हो जाए.