विपक्ष की तरफ से मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद के दावेदार के तौर पर सामने लाया गया है. मीरा कुमार ‘मतदाता मंडल’ से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की अपील कर रही हैं. मीरा कुमार को लगता है कि अंतरात्मा की आवाज शायद दलगत राजनीति से उपर उठकर हो और उनके पक्ष में आंकड़े ना होने के बावजूद भी दूसरे दलों के नेता उनके साथ खड़े हो जाएं.
ऐसी भावुक अपील इसलिए भी की जा रही है क्योंकि मीरा कुमार इसके पहले लोकसभा स्पीकर भी रह चुकी हैं. स्पीकर के तौर पर सभी दलों के नेताओं-सांसदों के साथ उनके संबंध रहे हैं. लिहाजा उनकी तरफ से अपील की जा रही है, उम्मीद है कहीं निजी संबंधों को याद कर अंतरात्मा की आवाज पर शायद कुछ दूसरे दलों के भी वोट उनके साथ आ जाए.
लेकिन, मीरा कुमार की इस अपील की हवा उस वक्त लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रही सुषमा स्वराज ने निकालने की कोशिश की है. सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर 2013 का एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सुषमा स्वराज के लोकसभा के भीतर बोलते वक्त मीरा कुमार बार-बार टोक रही हैं.
सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर यह दिखाने की कोशिश की है कि नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उस वक्त लोकसभा स्पीकर ने उनके साथ किस तरह का व्यवहार किया था. मौजूदा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बतौर स्पीकर मीरा कुमार की भूमिका पर सवाल खड़ा कर रही हैं.
सुषमा स्वराज ने एक अखबार के शीर्षक का लिंक भी ट्वीट किया गया है जिसमें लिखा गया है कि लोकसभा स्पीकर ने नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को 6 मिनट के भाषण में 60 बार टोका.
सुषमा ने आखिर क्यों थामा मोर्चा?
दरअसल, मीरा कुमार को सामने लाकर यूपीए ने एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद पर एक बढ़त बनाने की कोशिश की है. दोनों ही दलित समुदाय से आते हैं, लेकिन, मीरा कुमार महिला हैं, तो उनके नाम पर दलित के साथ-साथ महिलाओं के बीच भी एक संदेश देने की कोशिश की गई है.
यही वजह है कि बीजेपी की तरफ से मीरा कुमार की धार को कुंद करने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को आगे कर दिया गया है. सुषमा की तरफ से मीरा कुमार के ऊपर हमला करना इसी बात को दिखाता है.
लोकसभा स्पीकर का पद हो या फिर राष्ट्रपति का पद दोनों दलगत राजनीति से उपर माना जाता है. इन पदों पर पहुंचने से पहले भले ही कोई व्यक्ति राजनीतिक हो सकता है लेकिन, एक बार स्पीकर या राष्ट्रपति बन जाने के बाद उससे अपेक्षा की जाती है कि वो सभी दलों को समान नजरिए से ही देखेगा.
लेकिन, राष्ट्रपति पद की लड़ाई से पहले ही सुषमा स्वराज की तरफ से यही दिखाने की कोशिश की गई है कि जब लोकसभा स्पीकर रहते उनकी भूमिका बेहतर नहीं रही तो फिर राष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद उनसे क्या अपेक्षा की जाए.