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राष्ट्रपति चुनाव 2017: रामनाथ कोविंद के नाम से क्या विपक्ष होगा चित !

रामनाथ कोविंद के खिलाफ किसी उम्मीदवार को उतारने पर कहीं विपक्षी एकता तार-तार ना हो जाए

Amitesh

बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम को सामने कर मोदी-शाह की जोड़ी ने एकबार फिर से सबको चौंका दिया है. बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक के पहले रामनाथ कोविंद का नाम किसी तरह की चर्चा में भी नहीं था. लेकिन, अचानक अमित शाह के ऐलान ने सभी अटकलों पर विराम लगा दिया.

अपने लो प्रोफाइल व्यक्तित्व के लिए जाने जानेवाले रामनाथ कोविंद एक बार फिर से लो प्रोफाइल  तरीके से ही धीरे-धीरे बिहार के गवर्नर से देश के राष्ट्रपति तक की कुर्सी तक कदम बढ़ा चुके हैं.


1991 में बने बीजेपी के सदस्य 

रामनाथ कोविंद इस वक्त बिहार के राज्यपाल हैं. इसके पहले बीजेपी संगठन में लगातार वो काम करते रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में वकील के तौर पर प्रैक्टिस कर चुके रामनाथ कोविंद 1991 में बीजेपी से जुड़े. इसके बाद 1994 और 2000 में लगातार दो बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सांसद भी चुने गए.

इसके बाद बीजेपी दलित मोर्चा के अध्यक्ष के तौर पर भी इन्होंने काफी काम किया. दलित समुदाय से आने वाले कोविंद अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. बाद में बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर भी उन्होंने काम किया.

लेकिन, उनकी सादगी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक प्रवक्ता के तौर पर काम करते हुए भी वो न ही कभी मीडिया की सुर्खियों में उस तरह से रहे और न ही पार्टी ने भी उनको वो अहमियत दी जो एक प्रवक्ता के तौर पर उन्हें मिलनी चाहिए थी.

अपने प्रवक्ता के तौर पर  कार्यकाल में बहुत कम मौकों पर ही प्रेस को आधिकारिक रूप से संबोधित करने का उन्हें मौका भी मिला. बाद में यूपी में लक्ष्मीकांत वाजपेयी के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद वो प्रदेश महामंत्री के तौर पर संगठन में काम करते रहे. लेकिन, यहां भी उनकी वही लो प्रोफाइल छवि देखने को मिली.

बीजेपी के भीतर उनकी इसी लो प्रोफाइल वाली छवि से पहले उन्हें बिहार के राज्यपाल का पद मिला और अब यही छवि उन्हें राष्ट्रपति बनने की राह की ओर ले जा रही है.

बीजेपी के दांव से सब होंगे पस्त!

अपने फैसले से सबको चौंकाने वाली मोदी-शाह की जोड़ी ने एक बार फिर से इस मुद्दे पर विरोधियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. इस दांव से सब हैरान हैं, शायद इस पर बीजेपी विरोधियों को विरोध करना इतना आसान नहीं होगा.

रामनाथ कोविंद दलित समुदाय के हैं और यूपी के कानपुर देहात जिले के हैं. ऐसे में बीजेपी के खिलाफ मुखर हुई बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए उनके नाम पर विरोध करना मुश्किल होगा. मायावती लगातार दलित राजनीति करती रही हैं. अब उन्हीं के प्रदेश यूपी से आने वाले दलित समुदाय के रामनाथ कोविंद के नाम पर मायावती अगर विरोध करती हैं तो उनके लिए दांव उल्टा भी पड़ सकता है.

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बात अगर समाजवादी पार्टी की करें तो वो शुरू से ही किसी राजनीतिक हस्ती को ही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर लाने का समर्थन कर रही थी. अब यूपी से ही आने वाले कोविंद के नाम को आगे करने पर उनके लिए मुश्किल हो सकती है.

रामनाथ कोविंद फिलहाल बिहार के राज्यपाल हैं लिहाजा बिहार की पार्टियों के लिए भी उनके नाम का विरोध कर पाना आसान नहीं होगा. एनडीए के घटक दल लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामबिलास पासवान हो या फिर हम के  जीतनराम मांझी या फिर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा इनकी तरफ से तो रामनाथ कोविंद के नाम पर समर्थन में कोई शक नहीं है.

लेकिन, बिहार के भीतर असली परीक्षा नीतीश कुमार और लालू यादव की होगी. लगातार बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखे इन दोनों नेताओं के लिए कोविंद का विरोध करना आसान नहीं होगा. चूकि ऐसा करने की सूरत में उनके उपर दलित विरोधी होने का आरोप लग जाएगा.

लालू-नीतीश की असली परीक्षा 

बिहार के राज्यपाल रहते हुए रामनाथ कोविंद और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ संबंध भी अच्छे रहे हैं. अगर नीतीश रामनाथ कोविंद के समर्थन में खडे हो जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा. जेडीयू महासचिव श्याम रजक की तरफ से कोविंद के वयक्तित्व की तारीफ करना अपने-आप में बहुत कुछ इशारा कर रहा है.

हालाकि, जेडीयू नेता शरद यादव ने भी कहा है कि विपक्षी दलों की बैठक में ही इस बात का फैसला किया जाएगा.

बात अगर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करें तो ममता बनर्जी ने एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर कोविंद के नाम का विरोध करने का संकेत  दिया है.

उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अब विपक्षी दलों से समर्थन लेने की कोशिश शुरू कर दी है. कोशिश है आम सहमति से रामनाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाने की तो मोदी ने सीधे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से फोन पर बात भी कर ली.

लेकिन, नाम के ऐलान से पहले विपक्ष से बातकर सहमति नहीं बनाना कांग्रेस को नागवार गुजरा है. कांग्रेस नेता गुलामनबी आजाद ने फिलहाल अपने पत्ते खोलने से इनकार कर दिया है.

सही निशाने पर लगा बीजेपी का तीर

फिलहाल विपक्ष की तरफ से आ रही मिली जुली प्रतिक्रिया से साफ लग रहा है कि बीजेपी का तीर सही निशाने पर लगा है. विपक्षी दल खुलकर रामनाथ कोविंद के नाम का विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं.

अब विपक्षी दलों की बैठक में इस बात पर फैसला होगा कि रामनाथ कोविंद के नाम पर हामी भरी जाए या फिर विरोध के नाम पर विपक्ष की तरफ से महज खाना पूर्ति की जाए.

लेफ्ट समेत सभी विरोधियों को एक मंच पर लाने की कोशिश कांग्रेस कर रही है. लेकिन, अब उसके सामने भी मुश्किल यही है कि अगर रामनाथ कोविंद के खिलाफ किसी उम्मीदवार को उतारने पर कहीं विपक्षी एकता तार-तार ना हो जाए.

विपक्ष के भीतर की खलबली देखकर लगता है, बीजेपी का तीर फिलहाल सही निशाने पर लगा है.