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राष्ट्रपति चुनाव 2017: आज वोटिंग, आंकड़ों में आगे रामनाथ कोविंद

एनडीए को जीत पक्की करने के लिए करीब 12000 और मतों की जरूरत है

FP Staff

भारत के अगले राष्ट्रपति के लिए सोमवार को होने वाले चुनाव में एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद और विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार आमने-सामने हैं. आंकड़ों में कोविंद का पलड़ा भारी दिख रहा है.

मतों की गिनती 20 जुलाई को दिल्ली में होगी जहां विभिन्न राज्यों की राजधानियों से मतपेटियां लाई जायेंगी. चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों के साथ-साथ विधानसभाओं के सदस्य मतदाता होते हैं. इस चुनाव में एनडीए का पलड़ा भारी लग रहा है लेकिन विपक्ष अपने उम्मीदवार के समर्थन में कुछ क्षेत्रीय दलों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है.


बिहार के पूर्व राज्यपाल कोविंद और लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार ने देश भर में घूम-घूम कर अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में लोगों से मत देने को कहा.

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास शिवसेना को मिलाकर कुल 5,37,683 वोट हैं और उसे करीब 12000 और मतों की जरूरत है.

हालांकि बीजेडी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस से समर्थन के वादे और एआईएडीएमके के एक धड़े से समर्थन की संभावना राष्ट्रपति चुनावों में वोटों की कमी के अंतर को पूरा कर सकती है.

ऐसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव

17 जुलाई को भारत का नया राष्ट्रपति चुना जाना है. एनडीए की ओर से राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद हैं. जबकि कांग्रेस के नेतृत्व में कई विपक्षी दलों ने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया है.

मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल इस साल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है. अब तक मुखर्जी समेत 13 लोग इस पद पर रह चुके हैं.

यह चुनाव क्योंकि गोपनीय मतपत्र के जरिये होता है इसलिये पार्टियां अपने सदस्यों को किसी खास उम्मीदवार के पक्ष में मत डालने के लिए व्हिप जारी नहीं कर सकतीं.

कब होगा राष्ट्रपति चुनाव

चुनाव आयोग राष्ट्रपति का चुनाव 17 जुलाई को कराएगा. नया राष्ट्रपति एकल वोटिंग अधिकार के हिसाब से चुना जाएगा.

कौन देता है वोट

राष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के चुने गए सदस्य वोट देते हैं. फिलहाल लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 233 यानी कुल 776 सदस्य हैं. इसके अलावा देश की सभी विधानसभाओं के 4120 सदस्य भी राष्ट्रपति के चुनाव में वोट देंगे. इनमें दिल्ली और पुदुचेरी के भी विधायक शामिल हैं.

इन चुनावों में कुल 4896 मतदाता- 4120 विधायक और 776 सांसद - अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं. राज्यों की विधानपरिषद के सदस्य यानी विधान पार्षद इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेते.

लोकसभा अध्यक्ष जहां इस चुनाव में मत डाल सकता है वहीं एंग्लो-इंडियन समुदाय से लोकसभा में नामित होने वाले दो सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं होता है. राज्यसभा के भी 12 नामित सदस्य इन चुनावों में मतदान के अयोग्य होते हैं.

कितनी होती है वोट की ताकत

मतदाता सूची में हर सांसद और विधायक के वोट की ताकत अलग-अलग होती है. अलग-अलग राज्यों के सांसदों और विधायकों के वोट के वजन में फर्क होता है.

विधायक के वोट की कीमत कैसे तय होती है

किसी राज्य के एक विधायक की वोट कीमत राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होती है. एक विधायक के वोट की कीमत 1971 की जनगणना और राज्यों में विधायकों की संख्या के आधार पर तय की जाती है. इसका फॉर्मूला है- राज्य की जनसंख्या (1971 में)/विधायकों की संख्या*1000

सभी राज्यों के विधायकों के वोट की वैल्यू फिलहाल ये है-

मिसाल के तौर पर यूपी के विधायक के वोट का मूल्य 208 है. वहीं सिक्किम के विधायक के वोट का मूल्य महज 7 है.

सांसदों के वोट की कीमत कैसे तय होती है

इसके बाद सभी राज्यों सभी विधायकों के कुल वोटों के मूल्य जितना ही सांसदों के वोटों का मूल्य होता है. सभी राज्यों के सांसदों के वोट का वजन एक बराबर होता है.

यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि विधायकों की वोट की कीमत को सांसदों की संख्या से विभाजित करते हुए दशमलव के बाद की संख्या को इग्नोर कर दिया जाता है.

549474 (सभी विधायकों के वोटों का मूल्य)/776 (सांसदों की संख्या)= 708

सांसदों के कुल वोटों की वैल्यू: 708 X 776 = 5,49,408

तो ये है फाइनल गणित

राष्ट्रपति चुनाव के लिए कुल मतदाता = विधायक (4120) + सांसद (776) = 4,896

इस साल के राष्ट्रपति चुनाव में सभी मतदाताओं के कुल वोटों की कीमत = 549474 + 549408 = 10,98,903

किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए 549452 वैल्यू के वोट चाहिए होंगे.

ऐसे होती है वोटिंग

राष्ट्रपति चुनाव में हर मतदाता का वोट एक ही होता है. वह हर उम्मीदवार को लेकर अपनी प्राथमिकता बता सकता है. हर वोट की गिनती के लिए कम से कम एक उम्मीदवार के नाम का समर्थन जरूरी होता है. किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए तयशुदा कोटे के वोट हासिल करने होते हैं. अगर पहले दौर में कोई नहीं जीतता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को चुनाव मैदान से बाहर कर दिया जाता है. फिर उसके हिस्से के वोट, दूसरी प्राथमिकता वाले प्रत्याशी के खाते में डाल दिए जाते हैं. इसके बाद भी कोई नहीं जीतता, तो यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है, जब तक-

कोई उम्मीदवार जीत के लिए तय कोटे के बराबर वोट हासिल नहीं कर लेता

या

एक-एक कर के सारे उम्मीदवार मुकाबले से बाहर हो जाएं और सिर्फ एक प्रत्याशी बचे.