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राष्ट्रपति चुनाव: 'उसूलों' की लड़ाई में बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी से उठते सवाल

उसूलों की लड़ाई की बात करने वाले कई बड़े विपक्षी नेता मीरा कुमार के नामांकन दाखिल करते समय नदारद थे

Vivek Anand

संसद भवन के गेट पर अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए विपक्षी गठबंधन की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार अपना नामांकन दाखिल करने पहुंची थीं. एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं तो दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. साथ में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, कनार्टक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया समेत कांग्रेस के सीनियर लीडर भी मौजूद थे.

लेकिन 17 दलों के गठबंधन वाले विपक्ष में बाकी दलों के नेता के बतौर एनसीपी के नेता शरद पवार और सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी के अलावा कोई और बड़ा नेता मौजूद नहीं था.


नामांकन दाखिल करने के भारी आयोजन में उसूलों की लड़ाई लड़ने वाले लालू यादव मौजूद नहीं थे. टीएमसी की ममता बनर्जी भी नहीं दिखीं. समाजवादी पार्टी से न मुलायम दिखे न अखिलेश.

बीएसपी की मायावती भी नदारद दिखीं. इन सारे दलों ने उसूलों की लड़ाई लड़ने अपने हल्के लड़ाके आगे कर दिए. मीरा कुमार के नामांकन दाखिल करने वाले दिन की ये झलक बिना कुछ कहे काफी कुछ बयां कर जाती है.

विपक्ष के पास तरकश तो हैं लेकिन तीर नहीं दिखते

राष्ट्रपति चुनाव को उसूलों की लड़ाई बना देने पर आमादा विपक्ष के पास तरकश तो हैं लेकिन तीर नहीं दिखते. ये अपने विरोधी को परास्त क्या करेंगे? यही नजारा उस दिन भी दिखा था, जब मीरा कुमार अपने ऊपर उठ रहे सवालों के जवाब देने सामने आई थीं.

प्रेस कॉन्फ्रेंस का भारी तामझाम तो रखा गया लेकिन विचारधारा की लड़ाई लड़ने मीरा कुमार को अकेले ही भेज दिया गया. चाहकर भी बगल में बैठे कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला विचारों की लड़ाई में पैनापन देने में असमर्थ दिखे.

बेहद सौम्य और विनम्र मीरा कुमारी ने अपनी मीठी बोली में कुछ भारी जवाब छोड़ दिए, जिसका राष्ट्रपति चुनाव के बेहद संगीन रणनीतिक युद्ध में कोई ज्यादा अर्थ नहीं दिखता.

जाति की गठरी बांधकर जमीन में गाड़ देने का प्रतीकात्मक संदेश सुनने में अच्छा जरूर लगता है. लेकिन राजनीति की खुरदरी जमीन में ऐसी सच्ची बात कबकी दफन हो चुकी है.

17 दलों का महागठबंधन है विपक्ष के पास. दमदार और चमकदार चेहरों की भरमार है, जो लोकतंत्र का भारीभरकम बोझ अपने कंधे पर उठाए दुबले हुए जा रहे हैं. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी इनकी अपनी अलग-अलग डफली से कोई एक राग नहीं निकल पाता. विचारधारा की लड़ाई हर स्तर पर खोखली ही नजर आती है.

ये हमारे लिए उसूलों की लड़ाई है: सोनिया गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मीरा कुमार के नामांकन दाखिल करने के बाद मीडिया को दिए बयान में कहा कि हमारे लिए ये एक विचारधारा, उसूलों और सच्चाई की लड़ाई है और हम लड़ेंगे. लेकिन उनकी हम की आवाज गूंजकर वापस लौटती दिखती है.

लालू यादव ने पूरा दम ठोक कर मीरा कुमार को समर्थन दिए जाने का ऐलान किया था. नीतीश कुमार के एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने की बात पर बिहार की सियासत में जंग छिड़ी है.

दिल्ली से कहकर चले थे कि नीतीश को समझाएंगे. लेकिन पटना जाकर वो अपने प्रवक्ताओं को समझाने में लग गए- कम बोलो, संभलकर बोलो, संयत रहो.

23 जून को ईद मिलन समारोह में वो नीतीश कुमार के साथ दिखे. लेकिन दोनों एकदूसरे से आंखें मिलाने तक से बचते रहे. 23 जून के बाद से लालू यादव गायब हैं. उनका पता नहीं चल रहा है कि वो कहां हैं. उसूलों की लड़ाई से कोई ऐसे मैदान कैसे छोड़ सकता है?

एक राहुल गांधी हैं जो विदेश में छुट्टियां मनाते, आराम से सुस्ताते हुए उसूलों की लड़ाई लड़ रहे हैं. मीरा कुमार के नामांकन दाखिल करने के बाद उन्होंने ट्वीट किया. लिखा- ‘विभाजनकारी विचारधारा के खिलाफ वह उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो हमें एक राष्ट्र और एक तरह के लोगों के रूप में बांधती है. हमें गर्व है कि मीरा कुमार हमारी उम्मीदवार हैं.’

कांग्रेस जैसी भारीभरकम पार्टी का नेतृत्व अपने कंधों पर उठाने वाले हैं राहुल गांधी लेकिन उसूलों की लड़ाई ट्विटर के मार्फत लड़ना चाहते हैं. राजनीति की सरगर्मी उन्हें दो दिन बर्दाश्त नहीं होती. तीसरे ही दिन उन्हें दो दिन के ऑफ की जरूरत पड़ने लग जाती है. उसूलों को अपने बिस्तर के सिरहाने रखकर राहुल फिलहाल विदेश में आराम फरमा रहे हैं. राष्ट्रपति चुनाव 17 जुलाई को है इसलिए उन्हें लौटने की कोई जल्दी भी नहीं है.

एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के इलेक्शन एजेंट हैं सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेकैंया नायडू. विपक्ष के उसूलों की लड़ाई के बारे में उनकी राय है कि ये कोई उसूल-वसूल की लड़ाई नहीं है. उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति एक संवैधानिक पद है, जिसका नियमों के मुताबिक चुनाव हो रहा है. इसमें विचारधारा की लड़ाई जैसी कोई बात नहीं है.’

राष्ट्रपति चुनाव को दलित वर्सेज दलित की लड़ाई बनाकर उसूल की बात की जा रही है. ये उसूल की नहीं 17 दलों के विरोध की लड़ाई है. इसे उसूल का जामा पहनाने से भी बात नहीं बनने वाली.