view all

संसद को 'जंतर-मंतर' बनाने वाले राष्ट्रपति की सुनें

राष्ट्रपति के दिमाग में क्या चल रहा है, वो अगर ये बात सामने रखते हैं तो बात और अहम हो जाती है

Sanjay Singh

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आम तौर पर देश के मौजूदा राजनैतिक हालात पर नहीं बोलते हैं, न ही उनसे इसकी उम्मीद की जाती है. लेकिन जब वो ताजा राजनैतिक हालात पर बोलते हैं तो उसकी अहमियत बहुत बढ़ जाती है. सरकार और दूसरे राजनैतिक दलों के लिए उस पर ध्यान देना मजबूरी बन जाती है.

राष्ट्रपति के दिमाग में क्या चल रहा है, वो अगर ये बात सबके सामने रखते हैं तो बात और अहम हो जाती है क्योंकि वे देश और संसद दोनों के प्रमुख हैं. ऐसे मौके पर जब संसद लगातार हंगामे के चलते ठप है, तो ऐसा लग रहा है कि संसद और जंतर मंतर में कोई फर्क नहीं रह गया है क्योंकि धरना प्रदर्शन तो संसद में भी लगातार जारी है.


राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी देश के सम्मानित नेता हैं. सरकार में रहने से लेकर विपक्ष की राजनीति तक उनका अच्छा खासा राजनैतिक तजुर्बा रहा है. उन्होंने अपने लंबे सियासी करियर में बहुत कुछ देखा है और शायद इसलिए उन्होंने तय किया कि वे संसद में हंगामे पर अपनी राय देंगे. सत्ता और विपक्ष को काम करने की सलाह देंगे.

साफ और सख्त संदेश

संसद में रोज-रोज के शोर-शराबे से परेशान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपने दिल की बात देश के सामने रखी.

उनका संदेश साफ और सख्त था. अपनी नाराजगी का खुलकर इजहार करते हुए उन्होंने कहा कि अगर राजनैतिक दल लगातार नारेबाजी, शोर-शराबा और धरना ही करना चाहते हैं तो उनके लिए दूसरे मंच मौजूद हैं. संसद इसकी सही जगह नहीं है.

राष्ट्रपति ने कहा, "प्रदर्शन के लिए आप कोई दूसरी जगह जा सकते हैं. लेकिन भगवान के लिए अपना काम तो कीजिए. आप चर्चा के लिए चुने गए हैं. काम करने के लिए संसद भेजे गए हैं. आपको अपना वक्त अपनी जिम्मेदारियां निभाने में लगाना चाहिए."

उन्होंने आगे कहा, " संसद के सदस्यों को वित्तीय मामलों पर चर्चा और काम करना चाहिए. बार-बार हंगामा करके आप दिखाना चाहते हैं कि आप जख्मी हैं, नाराज हैं. लेकिन इससे आप बहुमत का गला दबा रहे हैं."

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति बोले, "बहुमत कभी भी हंगामा नहीं करता. ये काम हमेशा अल्पमत के लोग करते हैं. वही लोग सदन के वेल में भी जाते हैं, नारेबाजी भी करते हैं और ऐसे हालात पैदा करते हैं कि सदन के सभापति को कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है."

राष्ट्रपति ने आगे कहा, "हंगामा किसी भी संसदीय व्यवस्था में अस्वीकार्य है. लोग जनसेवकों को चुनकर संसद में इसलिए नहीं भेजते कि वो धरना दें या सदन में हंगामा करें." राष्ट्रपति ने ये साफ किया कि उनकी ये सलाह किसी एक दल के बजाय सभी दलों के लिए है.

उन्होंने कहा, "आज की तारीख में हंगामा करना ही संसद की नियति बन गई है जो ठीक नहीं है. अगर लोगों के बीच मतभेद हैं तो सबको अपनी बात कहने का हक है. सांसदों को सदन में अपनी बात रखने से कोई नहीं रोक सकता."

राष्ट्रपति ने अपने विचार तब रखे हैं, जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत पूरा विपक्ष संसद परिसर में गांधी जी की प्रतिमा के सामने धरने पर बैठा था. बाद में इन लोगों ने हंगामा करके सदन की कार्यवाही को नहीं चलने दिया था.

आडवाणी भी नाराज

एक दिन पहले ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी ऐसी ही नाराजगी जाहिर की थी. आज से ठीक एक साल पहले यानी दिसंबर 2015 में भी राष्ट्रपति ने संसद में हंगामे पर नाराजगी जताई थी.

पंडित जवाहर लाल नेहरू की याद में कोलकाता में एक भाषण देते हुए राष्ट्रपति ने कहा था, "संसद तीन डी यानी डिबेट, डिसेंट और डिसीजन से चलती है. इसमें चौथे डी यानी डिसरप्शन के लिए कोई जगह नहीं. संसद की कार्यवाही को कभी भी रोका नहीं जाना चाहिए, इसके लिए आपके पास दूसरे मंच भी हैं."

कभी हंगामा या शोर शराबा, संसदीय परंपरा का आखिरी विकल्प होता था. लेकिन आज ये रोजमर्रा का हिस्सा हो गया है. विपक्षी दलों को लगता है कि बहस होने पर कोई भी मुद्दा एक या दो दिन में खत्म हो जाएगा पर हंगामा करके वो किसी भी मुद्दे को कुछ हफ्ते या पूरे संसदीय सत्र के लिए जिंदा रख सकते हैं और वे मीडिया में भी छाए रहेंगे.

लेकिन विरोधी दलों को एक बात समझनी चाहिए कि जब तक किसी मुद्दे पर जनता की बहुत ठोस राय नहीं होती, तब तक हंगामे से उनके बारे में जनता में गलत संदेश ही जाता है.

ऐसे में उम्मीद की जाती है कि कांग्रेस, टीएमसी, बीएसपी, समाजवादी पार्टी, लेफ्ट पार्टियां और सत्ताधारी बीजेपी भी राष्ट्रपति की राय पर ध्यान देंगी.