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राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद क्यों बने मोदी की पहली पसंद ?

जब मोरारजी देसाई ने कोविंद से पूछा आपकी कानूनी प्रैक्टिस कैसी चल रही है?

Ajay Singh

रामनाथ कोविंद का पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से प्रगाढ़ लगाव था. मोरारजी भाई अपनी साफगोई के लिए जाने जाते थे. कोविंद भी उसी तरह साफगोई पसंद थे. मोरारजी भाई को जीवन में अनुशासन प्रिय था. कोविंद की जीवनशैली भी कमोबेश अनुशासनबद्ध है.

एक बार का वाकया है जब मोरारजी भाई ने कोविंद से पूछा, 'आपकी प्रैक्टिस (कानूनी) कैसी चल रही है'.


कोविंद का जवाब आया– 'अच्छी चल रही है'. जाहिर तौर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई चाहते थे कि कोविंद को सरकार की तरफ से काम मिले. मोरारजी भाई के दो बार पूछने के बाद भी जवाब एक ही सा मिला. अंत में कुछ मित्रों के कहने के बाद मोरारजी भाई ने तत्कालीन कानून मंत्री शशिभूषण से बात की. कोविंद को सरकारी काम मिल गया.

साफतौर पर कोविंद के स्वभाव के विपरीत है कुछ मांगना. उनके इसी गुण ने उन्हें हमेशा नेपथ्य में रखा.

गुजरात चुनाव में कोविंद बेहद सक्रिय रहे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोविंद का मोरारजी भाई वाला संबंध याद था. 1991 में वो जब बीजेपी में शामिल हुए तो उनकी कार्यशैली अनुशासनबद्ध और बेबाक थी. यही वजह थी कि कोविंद का इस्तेमाल गुजरात चुनाव में खूब हुआ.

वजह साफ थी. कोली जाति जिससे कोविंद आते हैं इसकी गुजरात में भारी संख्या है. कोविंद ने गुजरात चुनावों में लगातार प्रदेश भर का भ्रमण किया. लगभग दस दिनों पहले भी उन्होंने गुजरात के कोली समाज के एक समारोह में शिरकत की.

दिलचस्प ये है कि प्रचार के दौरान कोविंद ने कभी इस तरह की कोशिश नहीं की कि वो मोदी और बड़े नेताओं के आसपास दिखें. गुजरात के एक बड़े नेता ने कहा कि ‘कोविंद हमेशा अपने काम से काम रखते हैं. जैसी कार मिले उसमें सफर करते थे और अपने काम को अंजाम तक ले जाते थे. ‘

लगभग यही अनुमान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी रहा. जिस वक्त कोविंद को राज्यपाल पद के लिए चुना गया, मोदी और नीतीश में घनघोर विरोध था. बिहार चुनाव की सरगर्मी तेज थी. नए राज्यपाल से अपेक्षा थी कि वो राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से टकराव की स्थिति में रहेगा. केंद्र सरकार को खुश करने का यह आसान नुस्खा था. पर ऐसा हुआ नहीं. लगभग दो साल से कोविंद ने नीतीश कुमार से बहुत सौहार्दपूर्ण संबंध रखे. कोई भी टकराव की स्थिति नहीं आने दी.

विपक्ष के लिए कोविंद का विरोध करना मुश्किल है

शायद यही वजह है कि नीतीश कुमार और उनका जेडीयू कोविंद के समर्थन में उतर गया. कोविंद की पृष्ठभूमि भी इससे सहायक रही. मोरारजी भाई एक अनन्य गांधी अनुयायी थे. कई जगह उनकी गांधीगीरी हठधर्मिता तक थी.

जो राजनीतिक रूप से अक्सर परेशानी का सबब बनती हैं. कोविंद मोरारजी भाई के अनुयायी जरूर हैं पर व्यवहारिक राजनीतिज्ञ भी हैं. उन्होंने मोरारजीभाई की साफगोई और अनुशासन को अपनाया है. शायद यही वजह है कि अपने राजनीतिक जीवन के काफी समय बाद वो बीजेपी विचारधारा से स्वाभाविक रूप से जुड़ गए.

फिर भी वो संघ विचारधारा से बाहर ही हैं. प्रधानमंत्री मोदी को उनका ये गुण भा गया. दिलचस्प यह है कि विपक्ष को भी कोविंद का विरोध करना मुश्किल हो रहा है.