view all

राष्ट्रपति चुनाव: सियासत के खरे मोती रामनाथ कोविंद

मोदी सरकार ने वर्ष 2015 में रामनाथ कोविंद को जब बिहार का राज्यपाल बनाया था

Vijay Goel

आज जब मैं बिहार निवास में राष्ट्रपति पद के एनडीए उम्मीदवार और बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद से मिलने बिहार निवास गया तो मुझे सुखद अनुभूति हुई. वहां बधाई देने वाले अति विशिष्ट और विशिष्ट व्यक्तियों का तांता लगा हुआ था. लेकिन मुझे देखते ही उन्होनें गर्मजोशी और आत्मीयता से पुकारा. वो शीघ्र ही देश के प्रथम नागरिक पद को सुशोभित करेंगें लेकिन उनके व्यवहार में वही अपनापन और सहजता थी जो आज से बरसों पहले से रही है.

मुझे वो दिन याद आ गए जब मैं उनके साथ जम्मू कश्मीर पर बनी एक संसदीय कमेटी में उनके साथ श्रीनगर गया था. हम दोनों सपत्नी गए थे. उनके सरल, सहज, विनम्र व्यक्तित्व, अपनेपन और स्नेहभरे व्यवहार ने मेरे दिल पर अमिट छाप छोड़ी. आज भी मुझे उनमें वही पुरानी झलक नजर आई.


कोई देश तभी महान बनता है, जब उसका हर नागरिक सक्षम हो

रामनाथ कोविंद जी देश के राष्ट्रपति बनेंगे, यह मेरे लिए सियासी तौर पर तो प्रसन्नता की बात है ही, निजी तौर पर भी मुझे इस बात की खुशी है कि देश को एक ऐसा राष्ट्रपति मिलने जा रहा है, जिसके विचारों में महान भारतीयता की सौंधी सुगंध रची-बची है.

रामनाथ जी से मेरा परिचय पुराना है. मेरे मन में उनकी छवि सच्चे राजनेता के रूप में तो कायम है ही, साथ ही मेरे दिल में उनके लिए हर माइने से ऐसे सच्चे भारतीय नागरिक के रूप में सम्मान है, जिनके लिए स्वदेश सबसे पहले है, जिनके लिए देश के नागरिकों, खासकर, कमजोर वर्ग के लोगों को सबल और स्वाभिमानी राष्ट्रभक्त बनाने की भावना सबसे प्रबल है. कोई देश तभी महान बनता है, जब उसका हर नागरिक सक्षम हो.

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद से ही इस महान लक्ष्य की ओर सारे कदम उठाए जा रहे हैं. नतीजे, धीरे-धीरे ही सही, आने लगे हैं और भविष्य में भारत लगातार तरक्की की ओर अग्रसर होगा, यह तय है. एनडीए ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुन कर एक बार फिर यही साबित किया है कि मोदी सरकार का हर फैसला समाज के हर वर्ग को सफलता के उच्चतम शिखर तक ले जाने वाला होता है. इस नाते मैं इस फैसले के लिए अपनी सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत रूप से बधाई भी देना चाहता हूं.

रामनाथ कोविंद शांत रहकर, विवादों से दूर रहकर देश और देश के लोगों की सेवा करते रहे हैं. राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी पर जहां बहुत से नागरिक चौंके हैं, वहीं सियासत के बहुत से दिग्गजों के लिए भी यह मोदी सरकार का चौंकाने वाला फैसला है. उनके नाम की घोषणा ने मुझे भारत की पवित्र राजनीति के शुरुआती दिनों की याद दिला दी है.. उनसे परिचय के बाद मुझे हमेशा लगता रहा कि भारतीय समाज को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.

1997 में सरकार के आदेश का विरोध किया था

जातिवादी राजनीति के चेहरे को बहुत विकृत कर देने वाली शक्तियों के लिए रामनाथ बहुत बड़ी प्रेरणा के स्रोत साबित हो सकते हैं. आठवीं तक की पढ़ाई उन्होंने गांव से आठ किलोमीटर दूर स्कूल से की. इस दौरान वे पैदल ही स्कूल जाते और लौटते थे. जीवन के इस शुरुआती संघर्ष ने उन्हें सकारात्मक मानसिक शक्ति से सराबोर किया और शिक्षा के प्रति लगन ने उन्हें अध्ययनशील बनाने का काम किया. आजादी के संघर्ष के दौर में हमारे बहुत से महानायकों की कहानियों में इसी तरह के आत्मसंघर्ष की बात हम सुनते आए हैं.

उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में महज लोकप्रिय होने के लिए कोई विवादास्पद बयान नहीं दिया, विवादास्पद फैसला नहीं किया. वे हमेशा प्रचार से बचते रहे. वे तब भी आत्म-प्रचार से बचते रहे, जब उन्हें भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया.

अपनी इस जिम्मेदारी पर रहते हुए उन्होंने केवल एक बार ही प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. इस काम के लिए वे अपने सहयोगियों को ही आगे करते रहे. कोविंद ने हमेशा अनुसूचित जातियों और पिछड़ों-वंचितों के उत्थान के लिए सियासी और सामाजिक संघर्ष की राह चुनी. वर्ष 1997 में उन्होंने केंद्र सरकार के उन आदेशों के विरोध में आंदोलन किया, जिनकी वजह से अनुसूचित जाति-जनजाति के हितों पर असर पड़ रहा था.

समाजसेवा के जज्बे के चलते छोड़ी वकालत

आंदोलन प्रभावी रहा और आदेश वापस ले लिए गए. वर्ष 1994 और 2000 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए. इस दौरान मेरी उनसे अक्सर मुलाकातें होती थीं. अपने इस 12 साल के कार्यकाल के दौरान कोविंद अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण और सामाजिक न्याय से जुड़ी स्थाई समितियों से मुखर और सक्रिय रूप से जुड़े रहे.

रामनाथ बीजेपी दलित मोर्चा और अखिल भारतीय कोरी समाज के अध्यक्ष भी रहे हैं. समाज के कमजोर तबके को ताकतवर बनाने के मामले में उनके विचारों को हमेशा तरजीह दी गई. लेकिन वे कभी टीवी बहसों में शामिल नहीं हुए. मैंने देखा है कि वे ऐसे कर्मठ योद्धा हैं, जो अपने विचारों की जंग जीतने के लिए हरसंभव मेहनत तो करता है और जंग जीतता भी है, लेकिन उस जीत और अपनी मेहनत का प्रचार-प्रसार नहीं करता.

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रामनाथ कोविंद सियासत की ऐसी उर्वर मिट्टी हैं, जो समतल ही रहती है और जिसमें दब कर कोई भी सकारात्मक बीज समाज की हरियाली और खुशहाली के लिए विशाल वृक्ष बन जाता है. देखने वालों को केवल वृक्ष की हिलती पत्तियां, पुष्प और फल ही दिखाई देते हैं, नीचे आधार पर मिट्टी और वृक्ष की जड़ें दिखाई नहीं देतीं.

रामनाथ कोविंद श्रेष्ठ कानूनविद भी हैं. आज के दौर में हम वकीलों की फीस के बारे में सुनते हैं, तो आंखें फटी रह जाती हैं. दिल्ली हाई कोर्ट में उन्होंने 1977 से 1989 तक और सुप्रीम कोर्ट में 1980 से 1993 तक वकालत की. वे उस दौर के कामयाब और चर्चित वकील रहे. उस वक्त मुझे भी यह जानकर बहुत हैरत हुई थी कि वे कमजोर वर्ग के लोगों को मुफ्त कानूनी सलाह ही नहीं देते थे, बल्कि उनके जायज मुकदमे भी अपने ही खर्च पर लड़ते थे.

उनकी राजनीतिक और सामाजिक प्रतिबद्धता हमेशा स्वार्थ से ऊपर रही है. कम लोग जानते होंगे कि रामनाथ कोविंद ने सिविल सर्विस परीक्षा में भी कामयाबी हासिल की. लेकिन उनका चयन एलाइड सर्विस के लिए हुआ. आज के दौर में इलाएड सर्विस के लिए चयन होना भी बड़ी कामयाबी है और शायद ही ऐसा कोई होगा, जो इस सेवा में चुने जाने पर उसका मोह छोड़ दे. कोविंद ने नौकरी ज्वाइन नहीं कर, वकालत करना ही बेहतर समझा.

2002 में संयुक्त राष्ट्र में भारत की नुमाइंदगी की

आज भी कमजोर वर्ग के किसी विद्यार्थी के लिए आईएएस की एलाइड परीक्षा में पास होना बड़े सपने के सफल होने जैसा है. इस एक उदाहरण से ही समझा जा सकता है कि रामनाथ सार्वजनिक जीवन में कितने हौसले के साथ आए. जब सियासी लोगों की अकूत संपत्तियों का खुलासा होने लगा है, तब यह जानकर भी मेरे दिल को सुकून मिलता है कि कानपुर देहात के गांव में कोविंद ने अपना पुश्तैनी घर गांव को दान दे दिया है.

इतना ही नहीं, वहां अपनी ओर से निर्माण करा कर घर को सामुदायिक भवन का रूप दिया है, जहां गांव की बारातें रुकती हैं और दूसरे सामाजिक कार्यक्रम होते हैं. यह भी कोई संवेदनशील दिल वाला व्यक्ति ही कर सकता है. यथार्थ की ऊबड़-खाबड़ जमीन से उठ कर कामयाबी के क्षितिज तक पहुंचने के लिए कितनी बड़ी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, यह रामनाथ कोविंद के जीवन के अब तक के सफर से सीखा जा सकता है. वर्ष 2002 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की नुमाइंदगी करने का भी मौका दिया गया. वे और भी बहुत सी सामाजिक, शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं.

मोदी सरकार ने वर्ष 2015 में रामनाथ कोविंद को जब बिहार का राज्यपाल बनाया था, तब भी बहुत से लोगों के लिए यह विस्मयकारी निर्णय था और अब राष्ट्रपति के रूप में वे देश के प्रथम नागरिक होंगे. मेरे लिए यह चौंकाने वाला फैसला नहीं है. मैं जितना और जिस तरह उन्हें जानता-समझता हूं,

मुझे यही लगता रहा है कि उनके जैसे व्यक्तित्व और कृतित्व और बड़े दिल वाली हस्तियों को इस तरह के सम्मान मिलने ही चाहिए. मैं उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं. उनके नेतृत्व में देश को नई दिशा जरूर मिलेगी.

(लेखक केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्री हैं)