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राष्ट्रपति चुनाव 2017: मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाने पर क्यों आमादा थे लालू

लालू की मीरा कुमार के नाम पर जिद अपना सियासी हित को साधने को लेकर थी

Amitesh

राष्ट्रपति चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है ‘दलित’ बनाम ‘दलित’ की, ‘राम’ बनाम ‘मीरा’ की, ‘बिहार की बेटी’ बनाम ‘यूपी के बेटे’ की. लेकिन, ये लड़ाई क्यों और कैसे शुरू हुई, ये काफी दिलचस्प है.

मोदी-शाह की जोड़ी ने बिहार के गवर्नर रामनाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिए आगे किया तो इसे एक साथ यूपी-बिहार के दलित समुदाय को साधने की कोशिश के तौर देखा गया. अगले लोकसभा चुनाव से पहले इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक माना गया.


इस मास्टरस्ट्रोक से कई सियासी दिग्गज धाराशायी हो गए. कुछ अपने भी थे तो कुछ विपक्ष के पाले के भी. शिवसेना ने समर्थन का एलान कर दिया तो वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के गवर्नर को मिले सम्मान की बात कह कर इसे बिहारी अस्मिता से जोड़ दिया.

अब बारी विपक्ष की थी. अपने किले में सेंधमारी के बाद विपक्ष निराश था. लेकिन, उसके मन में लड़ाई लड़ने की दुविधा नहीं थी और यहीं से शुरू हुआ, दलित बनाम दलित की लड़ाई का दौर.

मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाने पर अड़े थे लालू!

सूत्रों के मुताबिक, इस लड़ाई के सूत्रधार कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों से ज्यादा आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव थे. लालू यादव इस बात से परेशान थे कि नीतीश उनके साथ खड़े होने के बजाए बीजेपी के रामनाथ कोविंद के साथ हो गए. लिहाजा लालू ने बीजेपी के बजाए नीतीश को घेरने की रणनीति शुरू कर दी.

कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को भी यही लगा कि बीजेपी के दलित कार्ड का जवाब दलित कार्ड से ही दिया जाना चाहिए. बस क्या था, इसी बात को लेकर चर्चा शुरू हुई. कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों की तरफ से दलित उम्मीदवार के तौर पर मीरा कुमार, सुशील कुमार शिंदे, प्रकाश अंबेडकर के नाम पर चर्चा शुरू हो गई.

लेकिन, लालू केवल मीरा कुमार के  नाम पर अड़े रहे. सूत्रों के मुताबिक, लालू यादव ने कांग्रेस को भी समझाने की कोशिश की थी कि मीरा कुमार के नाम  पर मायावती भी साथ आ सकती हैं और नीतीश को भी वापस लाने की कोशिश की जाएगी.

हालाकि लालू इस बात को समझते थे कि उनके कहने से नीतीश अपने फैसले बदलने वालों में से नहीं हैं. फिर भी नीतीश को घेरने के लिए उन्होंने मीरा कुमार को आगे करने पर जोर दिया.

नीतीश को घेरने की कवायद?

मीरा कुमार पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की बेटी हैं. बिहार के सासाराम से सांसद रह चुकी हैं. बिहार उनका घर रहा है. लिहाजा लालू को लगा कि बिहार की बेटी के नाम को आगे कर नीतीश को घेरा जा सकता है.

इसके अलावा मीरा कुमार बिहार में दलित समुदाय से आती हैं. उनके पिता जगजीवन राम बड़े नेता थे. मीरा कुमार उनकी विरासत को आगे बढ़ाती रही हैं. ऐसे में लालू की रणनीति रही कि मीरा कुमार को एक दलित की बेटी के नाम पर प्रोजेक्ट किया जाएगा और फिर नीतीश कुमार को बिहार की एक दलित की बेटी का विरोध करने वाले नेता के तौर पर घेरने की कोशिश की जाएगी.

दलित के साथ-साथ ‘कोईरी’ को साधने की कोशिश!

दिलचस्प बात ये है कि मीरा कुमार के पति मंजुल कुमार बिहार की पिछड़ी जाति से आते हैं. कुमार मंजूल जाति से ‘कोईरी’ हैं, जिनकी तादाद बिहार में काफी ज्यादा है. सूत्रों के मुताबिक लालू यादव कोईरी जाति को भी अपने साथ जोड़ने की कवायद में लगे हैं. लालू को लगा कि मीरा कुमार के नाम पर दलित के साथ-साथ कोईरी जाति को भी एक साथ साधा जा सकता है.

दरअसल बिहार में नीतीश कुमार ने जब लालू से अलग होकर अपना अलग रास्ता अख्तियार किया था तो उस वक्त पिछड़ी जाति के ‘कोईरी-कुर्मी’ समीकरण को एक साथ लाकर उन्होंने लालू के ‘यादव कार्ड’ का विकल्प तैयार किया था. तब से लेकर अबतक नीतीश कुमार के साथ ये तबका जुड़ा रहा है.

नीतीश खुद कुर्मी जाति से आते हैं. लेकिन, लव-कुश समीकरण के जरिए उन्होंने अपने जातीय समीकरण को और मजबूत बनाया था. लव का मतलब कुर्मी जाति से और कुश का मतलब कुशवाहा समाज यानी कोईरी जाति से था.

बाद में कोईरी जाति से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा, शकुनी चौधरी, नागमणि  जैसे कई नेता नीतीश कुमार से अलग भी हो गए. लेकिन, अभी भी नीतीश का लव-कुश समीकरण काफी हद तक कारगर रहा है.

अब लालू की नजर इसी पर टिकी है. लालू को लगता है कि मीरा कुमार के पति मंजुल  कुमार के नाम के बहाने नीतीश को कोईरी विरोधी प्रचारित किया जा सकता है, जबकि, दलित वोट बैंक पर कुंडली मार कर बैठे नीतीश से मीरा कुमार के नाम पर दलितो में एक नकारात्मक छवि बनाई जा सकती है.

लालू की मीरा कुमार के नाम पर जिद अपने इसी सियासी हित को साधने को लेकर थी.

लालू इस सियासी दांव से नीतीश को घेरने में कितना सफल रहे ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा, लेकिन, उनके इस दांव ने फिलहाल सोनिया दरबार में उनके नंबर फिर से बढ़ा दिए हैं. अब फिर से ‘साफ-सुथरी’ छवि के नीतीश के बजाए ‘दागदार’ लालू कांग्रेस के ज्यादा भरोसेमंद हो गए हैं.