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चाणक्य की भूमिका पसंद करने वाले प्रशांत किशोर को क्यों थामना पड़ा जेडीयू का दामन

यूपी में बीजेपी की प्रचंड जीत ने प्रशांत किशोर के कुशल रणनीतिकार के दावे पर कई सवाल खड़े कर दिए. अब प्रशांत किशोर को अपना भविष्य अंधेरे में दिखाई पड़ने लगा.

Pankaj Kumar

प्रशांत किशोर एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनकी चर्चा सफल राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में होती रही है. 16 सितंबर को जेडीयू की सदस्यता ग्रहण कर प्रशांत किशोर अब रणनीतिकार न होकर राजनीतिज्ञ हो चुके हैं और राजनीति की डगर प्रशांत किशोर ने बिहार से शुरू करने का ऐलान भी कर दिया है.

राजनीति के जानकार प्रशांत किशोर के उठाए इस कदम को उनके लिए पॉलिटिक्स का वाटरलू करार देते हैं. दरअसल प्रशांत किशोर जब से चर्चा में आए हैं, तब से वो पर्दे के पीछे रणनीति बनाकर फलां-फलां पार्टी को जिताने का श्रेय लेते रहे हैं लेकिन फॉर्मल स्ट्रक्चर में उनका काम करने का अनुभव कतई अच्छा नहीं है.


सबसे ज्यादा चर्चित प्रशांत 2014 लोकसभा में मोदी की जीत के बाद हो पाए थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेता के मुताबिक प्रशांत किशोर जैसे मिनिमम 10 रणनीतिकार बीजेपी और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति बनाने में जुटे थे लेकिन बीजेपी के बड़े नेताओं को प्रशांत किशोर की मीडिया में बढ़े हुए कद का अंदाजा तब लगा जब प्रशांत किशोर को जीत का श्रेय कई मीडिया हाउसेज ने अपनी रिपोर्ट में दिया.

गुजरात में सालों काम कर चुके एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक केवड़िया में जब सरदार पटेल की मूर्ति का शिलान्यास लाल कृष्ण अडवाणी के हाथों होना था तब उस कार्यक्रम के जायजे में प्रशांत किशोर की हैसियत का अंदाजा दिल्ली से गए कई पत्रकारों को भी लग गया था. दरअसल उस समय नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री थे और प्रशांत किशोर को उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों द्वारा इस कदर तवज्जो दी रही थी जैसे वो राज्य की सत्ता में मोदी जी के बाद हैसियत रखते हों.

यहां इस बात का जिक्र भी दिलचस्प होगा कि आखिर प्रशांत किशोर और नरेंद्र मोदी की मुलाकात कैसे हुई! दरअसल अफ्रीका में यूनीसेफ के लिए काम करने वाले प्रशांत किशोर की मुलाकात तब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी से एक कार्यक्रम के दौरान हुई जिसका मुख्य विषय स्वास्थ्य था. प्रशांत किशोर ने इस कार्यक्रम में अपना प्रजेंटेशन भी दिया था. एक दिन मोदी के आवास पर अपने बोरिया बिस्तर के साथ वो पहुंच गए और उनके लिए काम करने की इच्छा जताई. ये वाकया भी बड़ा दिलचस्प है कि मोदी जैसे मंझे हुए नेता को उन्होंने अपनी बात से कैसे इंप्रेस किया और उनके आवास को ही अपना कार्यालय बना लिया.

सीएम मोदी का घर ही था कार्यालय

प्रशांत किशोर का रसूख गुजरात की राजनीति में बढ़ने के पीछे अहम कारण यह भी था कि वो मुख्यमंत्री के घर में रहकर ही काम कर रहे थे और साल 2012 के गुजरात चुनाव के कैंपेन की मॉनिटरिंग भी कर रहे थे. 2012 के बाद उनकी इमेज राजनीतिक गलियारों में एक उभरते हुए सामानांतर पावर सेंटर के रूप में बनने लगी. और वो ये संदेश देने में कामयाब भी रहे.

साल 2012 में गुजरात चुनाव में मिली भारी सफलता के बाद मोदी की लोकप्रियता ऊफान पर थी. मोदी के तमाम सिपहसलार उनकी दिल्ली में ताजपोशी की तैयारी में जुट चुके थे. इस दरम्यान एसआरसीसी कॉलेज में मोदी की मीटिंग हुई जिसका पूरा प्रसारण टीवी पर दिखाया गया. ये कार्यक्रम बेहद सफल रहा जिसको लेकर प्रशांत किशोर की जमकर तारीफ हुई. उन्हें इसे मूर्त रूप देने का श्रेय दिया गया. ऐसा ही श्रेय उन्हें 2014 के कैंपेन के दरम्यान 'चाय पर चर्चा' जैसे कुछ प्रोग्राम की वजह से भी मिला और नरेंद्र मोदी उनकी काबिलियत से खुश भी हुए.

लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद मीडिया में जब ये दावा किया जाने लगा कि मोदी की जीत की वजह कुशल रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात को समझ चुके थे कि प्रशांत किशोर अपनी ब्रांडिंग मीडिया के एक खास ग्रुप में किस चतुराई से कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, 'प्रशांत मीडिया में एक खास ग्रुप को ऐसी ब्रीफिंग कर रहे थे. जबकि प्रशांत किशोर की पीआर कंपनी इकलौती नहीं थी, जिसने नरेंद्र मोदी का प्रचार चुनावों के दौरान किया था. वास्तविकता में तकरीबन 10 और कंपनियां मोदी के चुनाव प्रचार में अहम भूमिका निभा रही थीं.'

सुत्रों के मुताबिक बीजेपी के वरिष्ठ नेता चाहते थे कि प्रशांत किशोर पार्टी या सरकार में औपचारिक रूप से शामिल हों. इस संबंध में प्रशांत से उनकी इच्छा भी पूछी गई थी. लेकिन प्रशांत किशोर ने सरकार और पार्टी दोनों में ही शामिल होने से बच निकले. एक जानकार के मुताबिक प्रशांत किशोर बेहतर समझ चुके थे कि बीजेपी जैसी पार्टी में औपचारिक तौर पर ज्वाइन करने के बाद भी उनकी हैसियत क्या रहने वाली है! वहीं इस सरकार में भी उनकी महत्वाकांक्षा के हिसाब से कुछ मिलने वाला नहीं था. पार्टी में कई दिग्गज के सामने उनकी हैसियत बेहद सामान्य होती.

इसलिए प्रशांत किशोर एक नए रास्ते की तलाश में जुट गए. 2015 में बिहार के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का हाथ थामकर उनके लिए रणनीति बनाने में जुट गए. जाहिर है इस बारे में वो जानते थे कि अगर बाजी उनके हाथ लगी तो देश में कुशल रणनीतिकार के रूप में वो स्थापित हो जाएंगे.

महागठबंधन की भारी जीत हुई और लालू और नीतीश दोनों ने प्रशांत किशोर को उनकी सलाहियत और कुशल रणनीति के लिए खूब सराहा. उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा भी दिया गया. प्रशांत किशोर को सात निश्चय प्रोग्राम मॉनिटर करने की जिम्मेदारी दी गई लेकिन प्रशांत इसमें कुछ कर नहीं पाए और महागठबंधन की सरकार बनने के कुछ समय बाद ही प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के सिस्टम से बाहर भी हो गए.

बिहार सरकार के कामकाज में दखल देते थे प्रशांत

बिहार में आरजेडी के एक बड़े नेता के मुताबिक, 'महागठबंधन की सरकार बनने के बाद प्रशांत किशोर कई अधिकारियों को फोन कर निर्देश देने लगे थे, जिसे लेकर अधिकारियों में भारी नाराजगी भी थी. लेकिन कुछ समय बाद ही वो सीन से गायब हो गए.'

लेकिन चुनाव से पहले प्रशांत किशोर नीतीश और लालू दोनों के चहेते बन चुके थे. कहा ये भी जाता है कि दोनों के बीच सीट-शेयरिंग में लालू से बात सफल कराने में प्रशांत किशोर की अहम भूमिका थी. उस समय प्रशांत किशोर नीतीश और लालू के बीच एक पुल का काम कर रहे थे. लंबे समय से विरोधी राजनीति कर रहे दोनों दिग्गज नेताओं के बीच आम सहमति बनाने में प्रशांत किशोर ने अहम भूमिका अदा की. दरअसल प्रशांत ने लालू को बेहतर तरीके से हैंडल करने का फॉर्मूला ढूंढ निकाला था.

2015 में जेडीयू-बीजेपी को साथ लाने की थी कोशिश

वैसे नेताओं की हैंडलिंग और उनके बीच सेतु का काम करने की उनकी सलाहियत का लोहा उनको जानने वाले कई नेता भी मानते हैं. बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले भी प्रशांत किशोर ने बीजेपी और जेडीयू को एक साथ लाने के लिए पुरजोर कोशिश किया था. बात तब भी बड़े नेताओं के बीच सकारात्मक थी लेकिन बीजेपी का अति आत्मविश्वास की वजह से यह गठबंधन मूर्त रूप नहीं ले सका.

जब दूसरी बार साल 2017 में बीजेपी और जेडीयू का दोबारा गठबंधन हुआ तो इस बात की प्रशांत किशोर को कानोंकान खबर तक नहीं लग पाई. इतना ही नहीं प्रशांत किशोर इस बीच यूपी में कांग्रेस और सपा के बीच तालमेल करा उनको जिताने में लगे थे लेकिन यूपी में बीजेपी की प्रचंड जीत ने प्रशांत किशोर के कुशल रणनीतिकार के दावे पर कई सवाल खड़े कर दिए. अब प्रशांत किशोर को अपना भविष्य अंधेरे में दिखाई पड़ने लगा.

इसलिए प्रशांत किशोर यूपी में बाजी हारने के बाद वापस नीतीश कुमार के इर्द गिर्द मंडराने लगे. इतना ही नहीं नीतीश कुमार जब प्रशांत किशोर को पार्टी में ज्वाइन कराने का मन बना चुके थे. तभी प्रशांत किशोर की मुलाकात बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से भी हुई. सूत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात में अपने को जेडीयू का उत्तराधिकारी बता रहे थे. शायद ऐसा कर वो बीजेपी से टफ बार्गेन करने में लगे थे.

लेकिन जब नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के चार बड़े नेता ललन सिंह, बिजेन्द्र यादव, आरसीपी सिंह और वशिष्ठ नारायण सिंह के सामने ये बताया कि प्रशांत किशोर जेडीयू में सदस्यता ग्रहण कर काम करना चाहते हैं और चारों नेताओं को प्रशांत किशोर से बात करने का निर्देश भी दे दिया, तब प्रशांत किशोर ने इन चार नेताओं से बातचीत में भी ये जता दिया कि बीजेपी बिहार में उन्हें नंबर 2 का ओहदा देना चाह रही है!

इतना ही नहीं सूत्रों के माने तो प्रशांत किशोर ने जेडीयू के चार बड़े नेताओं के सामने बिहार में कई बड़े मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने की इच्छा जताई. जिसे सुनकर चारों नेता अचंभित थे. और सूत्रों की मानें तो इस बात से मुखिया नीतीश कुमार को अवगत भी कराया गया.

लेकिन ये जानकारी मिलने के बावजूद साल 2019 को देखते हुए नीतीश कुमार ने एक कुशल रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर को पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराना उचित समझा. इतना ही नहीं नीतीश कुमार ने उन्हें राजनीति का भविष्य करार देकर उनकी महत्ता और बढ़ा दी है और पार्टी के कई बड़े नेताओं की नींद भी उड़ा दी है. बिहार में लोकसभा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय है लेकिन इसमें प्रशांत किशोर की कोई भूमिका नहीं है. इसका पूरा श्रेय बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और नीतीश कुमार को जाता है. ऐसे में अब प्रशांत किशोर की भूमिका क्या होगी ये देखना दिलचस्प होगा.