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प्रणब दा के भाषण के बाद कांग्रेस में राहत, लेकिन 2019 में कहीं बन न जाए सियासी मजबूरी

2019 में विपक्ष का कुनबा प्रणब दा ही संभाल सकते हैं क्योंकि उनके नेतृत्व को लेकर ज्यादातर लोग राजी हो सकते हैं

Syed Mojiz Imam

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर से पूरे देश को संदेश दे दिया है. भारत की महानता विशाल है. लेकिन इसको एक विचारधारा से नहीं चलाया जा सकता है. आरएसएस के गढ़ में जाकर प्रणब मुखर्जी ने अपनी पूर्व पार्टी को भी संदेश दिया है. लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद के बाद भी संवाद कायम रहना चाहिए. हालांकि प्रणब मुखर्जी ने साफ तौर पर कहा कि देश में असहिष्णुता नहीं चल सकती है.

जाहिर है कि नागपुर से अपने आलोचकों को प्रणब मुखर्जी ने बखूबी जवाब दिया है. प्रणब के भाषण खत्म होने के बाद ही कांग्रेस ने यू टर्न ले लिया है. पार्टी ने राहत की सांस ली है. जिस तरह पूर्व राष्ट्रपति ने नागपुर में सम्राट अशोक से लेकर जवाहरलाल नेहरू तक का बखान किया है, उससे कांग्रेस संतुष्ट लग रही है. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि प्रणब मुखर्जी ने संघ को सच का आईना दिखाया है. प्रणब मुखर्जी के बयान का समर्थन करते हुए कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि देश हिंसा से नहीं चल सकता है. संविधान के मूलभूत आधार पर ही देश को चलाया जा सकता है. कांग्रेस की विचारधारा संवैधानिक राष्ट्रवाद है लेकिन संघ के संस्थापक के बी हेडगेवार के सम्मान में लिखी गई पंक्तियां कांग्रेस को नागवार गुजरी हैं.


नागपुर जाने की आलोचना खत्म नहीं

कांग्रेस भले ही प्रणब मुखर्जी के भाषण के बाद समर्थन में दिखाई दे रही है. लेकिन पार्टी के भीतर अभी भी कई नेता प्रणब मुखर्जी से संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहें हैं. कांग्रेस के सीनियर नेता आनंद शर्मा ने ट्वीट में कहा कि प्रणब मुखर्जी के नागपुर जाने से लाखों कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में आक्रोश है, जो भारत के संविधान पर यकीन रखते हैं. बातचीत उन लोगों से की जाती है जो बदलाव लाने में यकीन रखते हों, आरएसएस के क्रिया-कलाप से नहीं लग रहा है कि वो कोर एजेंडे से हट गई है.

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यही नहीं कांग्रेस के पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने भी कहा कि प्रणब मुखर्जी को देश को बताना पड़ेगा कि ऐसा क्या हुआ है कि संघ के प्रति उनका ह्रदय परिवर्तित हो गया है. कांग्रेस में ये बात हजम नहीं हो रही है कि पार्टी के कभी संकट मोचक रहे प्रणब मुखर्जी इस तरह आरएसएस के मंच पर जाकर मोहन भागवत के साथ नजर आएंगे. प्रणब मुखर्जी ने क्या बोला है? इस बात पर पार्टी का ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है. कांग्रेस की मुश्किल है कि प्रणब दा की कही हुई बात का विरोध नहीं कर सकती है लेकिन नागपुर जाने के उनके फैसले का समर्थन भी नहीं कर सकती है. कांग्रेस की नेता और प्रणब मुखर्जी की बेटी का ट्वीट ही पार्टी का असली परेशानी बयां करता है, जिसमें शर्मिष्ठा मुखर्जी ने लिखा था कि लोग भाषण भूल जाएंगे लेकिन तस्वीरें हमेशा जिंदा रहेंगी. हालांकि नागपुर के मंच से पूर्व राष्ट्रपति फिर से राजनीति के सेंटर स्टेज पर आ गए हैं.

प्रणब मुखर्जी की राजनीतिक महत्ता?

देश में पूर्व राष्ट्रपतियों का विवादों से नाता कम ही रहा है लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी प्रणब मुखर्जी ने स्लॉग ओवर की तरह बल्लेबाजी की है, जिसमें वो मैदान मार गए हैं. एक तीर से कई शिकार भी कर दिया है. देश के बड़े सगंठन आरएसएस को भी खुश कर दिया है. वहीं कांग्रेस के भीतर ये संदेश दे दिया है कि प्रणब मुखर्जी राजनीति में हैं, संन्यास नहीं लिया है. इसलिए राजनीति का मास्टरस्ट्रोक खेलने का फैसला चुनाव के ठीक एक साल पहले किया है, जिसका नफा-नुकसान भविष्य में तय होना है.

कई राजनीतिक विश्लेषक ये मानते हैं कि प्रणब मुखर्जी की प्रधानमंत्री बनने की हसरत खत्म नहीं हुई है इसलिए ये मौका नहीं गंवाया है. जिस तरह से पर्दे के पीछे वो गैर कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. उससे भी कांग्रेस के भीतर बेचैनी है क्योंकि राष्ट्रपति बनने के लिए जो ममता वाला दांव प्रणब मुखर्जी ने खेला था. वो एकदम सटीक बैठा था. कांग्रेस को ममता के बयान के बाद प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाना पड़ा था. अब राजनीति फिर करवट ले रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कोई चेहरा विपक्ष के पास नहीं है. ऐसे में प्रणब दा एक पंसदीदा उम्मीदवार बन सकते हैं, जिनको सारे विपक्ष का समर्थन मिल सकता है. अब प्रणब दा को पर्दे के पीछे से संघ का भी समर्थन मिल सकता है. जाहिर है ये समीकरण सोच कर कांग्रेस सकते में है.

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कांग्रेस की कमजोरी बन रहे हैं छोटे दल

कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए समझौते कर रही है. छोटे दल राज्यों में कांग्रेस से ज्यादा मजबूत हैं. गैर बीजेपीवाद के नाम पर कांग्रेस छोटे दलों को बर्दाश्त कर रही है. लेकिन इन दलों के बीच आपसी सहमति बनना मुश्किल होगा. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं. कांग्रेस के पास अगर नंबर होगा तो वो प्रधानमंत्री बन सकते हैं. राजनीतिक जानकार इस नंबर को लेकर संशय में हैं. यूपी-बिहार जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस की हालत खस्ता है.

2004 और 2009 की सरकार बनवाने में अहम भूमिका आंध्र प्रदेश की थी, जहां कांग्रेस अब कमजोर है. राहुल गांधी को लेकर कई नेता अपनी मंशा जाहिर नहीं कर रहे हैं. ममता बनर्जी लगातार विरोध में हैं. ऐसे में विपक्ष का कुनबा प्रणब दा ही संभाल सकते हैं क्योंकि उनके नेतृत्व को लेकर ज्यादातर लोग राजी हो सकते हैं. वहीं गैर बीजेपीवाद के नाम पर कांग्रेस के लिए संकट खड़ा हो सकता है. विपक्ष के ज्यादा नेता जिस नाम पर सहमत होंगे, उसका समर्थन कांग्रेस को करना पड़ सकता है. कांग्रेस की मजबूरी का नाम प्रणब मुखर्जी हो सकते हैं.

नागपुर जाने का विरोध

कांग्रेस के प्रवक्ता बार-बार ये कह रहे हैं कि प्रणब मुखर्जी पार्टी के सदस्य नहीं हैं. इसलिए उनके फैसलों को लेकर पार्टी का ज्यादा लेना-देना नहीं है. लेकिन जिस तरह का विरोध नागपुर जाने का किया जा रहा था. उससे पार्टी की बेचैनी साफ दिखाई दे रही थी. कांग्रेस के प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने खुलकर प्रणब मुखर्जी का विरोध किया और कहा कि उनको वहां नहीं जाना चाहिए.

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कर्नाटक के सीके जाफर शरीफ ने पत्र भी लिखा था. 6 जून को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने भी ट्वीट में कहा कि प्रणब दा ये उम्मीद आपसे नहीं थी .बंगाल अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी भी खुलकर विरोध में थे. प्रणब की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने आखिरी प्रयास भी किया कि प्रणब दा नागपुर ना जाएं लेकिन राजनीति में वक्त यानी टाइमिंग की बहुत अहमियत होती है. वक्त की अहमियत प्रणब मुखर्जी से ज्यादा कौन समझ सकता है, जो दो बार प्रधानमंत्री बनने से महरूम रह गए हैं.