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राष्ट्रपति पद से अवकाश के बाद अब सांस्कृतिक पारी शुरू करेंगे प्रणब मुखर्जी

प्रणब मुखर्जी ने कई बार कठिन परिस्थितियों में अपनी सूझ-बूझ और राजनीतिक कौशल से कांग्रेस पार्टी को संकट से उबारा था

Kripashankar Chaubey

प्रणब मुखर्जी के दक्षिण कोलकाता के ढाकुरिया स्थित वातायन अपार्टमेंट के फ्लैट में काम करनेवाले, पड़ोसियों से लेकर वीरभूम जिले के उनके पैत्रिक गांव मिराती के लोग निहाल हैं. यह सब इस बात से खुश हैं कि उन्हें अपने प्रिय नेता से मिलने के लिए अब कड़ी सुरक्षा बेड़ा को नहीं पार करना पड़ेगा.

राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद प्रणब मुखर्जी जब भी बंगाल आएंगे तो अपने कोलकाता फ्लैट और मिराती के अपने पैत्रिक मुखर्जी भवन में ठहरा करेंगे. राष्ट्रपति रहते प्रोटोकाल के कारण कोलकाता आने पर उन्हें राजभवन में रहना पड़ता था. राष्ट्रपति रहते हुए वे अपने निकट संबंधियों से मिलने अपने कोलकाता फ्लैट में एक बार गए जरूर किंतु वहां रात में रूक नहीं पाए थे. फिर भी सुरक्षाकर्मी पिछले पांच वर्षों तक अपार्टमेंट में जानेवालों की गहन सुरक्षा जांच करते थे.


इस फ्लैट के कर्मचारी अब इस बात से बेहद खुश हैं कि प्रोटोकाल से अब छुटकारा मिलेगा और प्रणब दा कोलकाता आने पर यहीं ठहरा करेंगे और आलू पोस्तो, बैगन भाजा और आलू पटल खाया करेंगे. ऐसी ही खुशी कोलकाता से 170 किलोमीटर दूर स्थित मिराती गांव में भी है. मिराती प्रणव मुखर्जी का पैतृक गांव है.

(फोटो: पीटीआई)

गांव वालों के लिए प्रणब मुखर्जी पोल्टू दा हैं. प्रणब दा के एक संबंधी और विद्यासागर विश्वविद्यालय के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर तरुण मुखर्जी कहते हैं, 'पोल्टू दा के कारण ही मिराती गांव की कायापलट हुई. सड़क बन गई. बिजली आ गई. सारे विकास कार्य हुए. पोल्टू दा सक्रिय राजनीति में अब भले नहीं रहेंगे लेकिन मिराती समेत बंगाल और देश के लोग उनकी सलाह से जरूर लाभान्वित होते रहेंगे.'

पोल्टू दा से मिलने के लिए अब सुरक्षा की कठिन दीवार नहीं होगी

प्रणब दा चाहे जितने बड़े पद पर रहे, यहां तक कि राष्ट्रपति बन जाने पर भी वे दुर्गापूजा में अपने गांव आना न भूलते थे. तीन दिन तक पारंपरिक भद्र बंगाली पोशाक में दुर्गापूजा करते थे. चंडीपाठ करते थे. गांववाले अब इससे बाग-बाग हैं कि पोल्टू दा की पारिवारिक पूजा देखने के लिए अब सुरक्षा की कठिन दीवार नहीं भेदनी होगी.

राष्ट्रपति पद से अवकाश लेने के बाद प्रणब दा का अधिकतर समय दिल्ली के उनके नए आवास पर बीतेगा लेकिन गृह प्रदेश से लेकर देश का भ्रमण भी चलता रहेगा. लेकिन अब वे चुनिंदा कार्यक्रमों में ही जाएंगे और लिखने-पढ़ने पर अधिक से अधिक समय खर्च करेंगे. उनकी अगली पारी मुख्यतः सांस्कृतिक होगी.

उनकी किताब 'द ड्रैमेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी ईयर्स' का जिस तरह स्वागत हुआ, उससे वो उत्साहित हैं. 321 पन्नों की उस किताब में इमरजेंसी, बांग्लादेश मुक्ति, जेपी आंदोलन, 1977 के चुनाव में हार, कांग्रेस में विभाजन, 1980 में सत्ता में वापसी और उसके बाद के विभिन्न घटनाक्रमों पर अलग-अलग अध्याय हैं. भविष्य में भी प्रणब दा अपने पूरे सार्वजनिक जीवन के अनुभव इस तरह लिखना चाहते हैं जो राजनीतिक पुनर्पाठ में सहायक हों.

प्रणब दा के सहयोगी संसद में उनके दिए भाषणों के संकलन से लेकर राष्ट्रपति के रूप में उनके भाषणों के संकलन भी लाने की तैयारी में हैं. हर संकलन प्रणब दा के अनुमोदन के बाद ही आएगा.

प्रणब मुखर्जी के गृह प्रदेश बंगाल के लोग इस बात से तृप्त हैं कि उनका प्रिय नेता राष्ट्रपति के रूप में काम करते हुए लोकतंत्र और संविधान की नींव मजबूत करने के लिए स्थापित परंपराओं और मानकों पर एकदम खरा उतरा. राष्ट्रपति बनने के पहले भी जो भी जिम्मेदारी प्रणब दा को दी गई, उन्होंने उसका पूरे दायित्व के साथ पालन किया था.

प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति भवन परिसर के मुगल गार्डन में बैठे हुए (फोटो: पीटीआई)

केंद्र में वित्त, वाणिज्य, विदेश और योजना जैसे महत्वपूर्ण विभागों का मंत्रालय उन्होंने बेहद सफलतापूर्वक संभाला था. तीन-तीन बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें नंबर दो की हैसियत हासिल हुई थी. इंदिरा गांधी जब 1980 में दोबारा सत्ता में आईं तो अपनी विदेश यात्राओं के समय सरकार का काम-काज देखने के लिए वो प्रणव मुखर्जी को ही अधिकृत कर जाती थीं.

कांग्रेस की सरकारों में नंबर 2 का दर्जा मिलता रहा

उसके 24 साल बाद 2004 में मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में उन्हें फिर नंबर दो की हैसियत मिली थी. 2009 में फिर यूपीए की सरकार बनने पर प्रणब दा का नंबर दो का दर्जा बरकरार रहा था. प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहा राव, सीताराम केसरी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कई कठिन परिस्थितियों में अपनी बुद्धिमत्ता और राजनीतिक कौशल से कांग्रेस पार्टी को संकट से उबारा था.

प्रणब मुखर्जी ने दशकों तक कांग्रेस के लिए थिंक टैंक के रूप में काम किया. आर्थिक और वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ माने जानेवाले प्रणब दा को न्यूयार्क की पत्रिका यूरो मनी ने 1984 में विश्व के सर्वश्रेष्ठ पांच वित्त मंत्रियों में से एक माना था. उनके राजनीतिक कौशल का लोहा विरोधी भी मानते रहे हैं. इसलिए क्योंकि प्रणव दा ने अपनी राजनीति को मूल्यवान बनाए रखा था.

उनके लिए राजनीति का अर्थ चुनाव में जीत, सत्ता और तंत्र की राजनीति नहीं थी. उनकी राजनीति का संबंध मूल्यों से था. वो उन चुनिंदा नेताओं में रहे हैं जो राजनीति के मूल्यों के प्रति सदा-सर्वदा सचेत रहते हैं. अलग-अलग धर्मों में आस्था रखनेवाले और दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखनेवाले धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ सदैव तनकर खड़े रहते हैं. उनकी राजनीति इसलिए भी मूल्यवान बन सकी थी क्योंकि उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए कभी सिद्धांतविहीन समझौते नहीं किए.

प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक की कांग्रेस सरकार में नंबर 2 की हैसियत से रहे (फोटो: फेसबुक से साभार)

कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई

प्रणब मुखर्जी ने राजनीति के अनेक घुमावदार मोड़ों और संघर्षों को पार करते हुए सभी धर्मों, वर्गों, जातियों के रहनुमा का अपना व्यक्तित्व बेहद संजीदगी से गढ़ा था. 1987 में प्रणब दा ने थी. दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल तक कांग्रेस में प्रणव दा का न कोई कट्टर समर्थक रहा है न कोई गुट. इसीलिए प्रणब दा की पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस को बंगाल में अपेक्षित समर्थक नहीं मिले और अंत में दो साल बाद उन्हें अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करना पड़ा.

कांग्रेस ने उनपर भरोसा कर उन्हें फिर महत्वपूर्ण दायित्व दिया था. अनुभवों का अनंत भंडार रखने वाले प्रणब दा पर कभी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा. किसी घोटाले में भी उनका नाम कभी नहीं आया. हरित क्रांति लानेवाले सी. सुब्रमण्यम के सानिध्य और साहचर्य में सरकारी कामकाज सीखने वाले प्रणब दा बहुत मेहनती हैं. सुबह से लेकर देर रात तक खटते रहते हैं. कोई काम कल पर नहीं छोड़ते. कदाचित इन्हीं गुणों के कारण वो राजनीति में चार दशकों से भी लंबी सफल पारी खेल सके थे.

(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में प्रोफेसर हैं)