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त्रिपुरा की महाजीत का जश्न फीका! बिप्लब-सुनील देवधर में विवाद से आलाकमान चिंतित

भले सुनील देवधर खेमे की तरफ से किसी अंदरूनी विवाद से मना किया जा रहा है लेकिन इससे चिंतित तो पार्टी आलाकमान भी है

Amitesh

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब शुक्रवार 4 मई को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ नॉर्थ-ईस्ट राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली में हैं. बिप्लब देब पिछले तीन दिनों से दिल्ली प्रवास पर हैं. पांच मई को उनके अगरतला जाने का कार्यक्रम है. लेकिन, उसके पहले 4 मई को ही बीजेपी के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर बीजेपी युवा मोर्चा के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने अगरतला पहुंचे हैं. बीजेपी युवा मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूनम महाजन भी इस कार्यक्रम में शिरकत करने 4 मई को अगरतला पहुंच रही हैं.

देब का दिल्ली में होना और उसी दिन देवधर का अगरतला में होना महज संयोग भर भी हो सकता है. लेकिन, बीजेपी के नेता इसे संयोग भर नहीं  मान रहे हैं. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, दोनों नेताओं के भीतर चल रहे सत्ता संघर्ष का यह नतीजा है जो अब रह-रह कर बाहर आ रहा है. बिप्लब देब मुख्यमंत्री बनने के बाद भी त्रिपुरा के बीजेपी अध्यक्ष हैं. लेकिन, इस मौके पर उनका अगरतला में नहीं रहना संगठन के भीतर उनके और देवधर के बीच सामंजस्य की कमी को ही उजागर कर रहा है.


दरअसल, दोनों नेताओं में पार्टी के भीतर पावर को लेकर चल रहा अंदरूनी संघर्ष मजबूत होता दिख रहा है. जब मुख्यमंत्री बिप्लब देब अपने विवादास्पद बयानों को लेकर चर्चा में हैं.

आपस में ही उलझ गए हैं बिप्लब-सुनील: पार्टी नेता

बीजेपी के एक नेता ने इस बारे में जानकारी देते हुए फ़र्स्टपोस्ट को बताया

‘त्रिपुरा में सीपीएम की बीस साल की सत्ता को हटाने में देब और देवधर दोनों की  जोड़ी का काफी योगदान रहा है, लेकिन, अब दोनों आपस में ही उलझ गए हैं.’ बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस साल मार्च में मुख्यमंत्री बनने के वक्त भी सुनील देवधर ने बिप्लब देब का विरोध किया था. लेकिन, 47 साल के बिप्लब पार्टी आलाकमान के साथ-साथ संघ की भी पसंद हैं, जिसके चलते देवधर की पसंद को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली.

सूत्रों के मुताबिक, देवधर चाहते थे कि कांग्रेस से आए सुदीप राय बर्मन को त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बनाया जाए. बर्मन बिप्लब सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं. लेकिन, उनकी बात को नजरअंदाज कर पार्टी आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष बिप्लब देब को ही तरजीह दी.

मुख्यमंत्री की तरफ से पार्टी के राज्य प्रभारी सुनीव देवधर के बारे में पार्टी आलाकमान को अवगत कराया गया था कि देवधर के फेसबुक पेज से ऐसी सामग्री को लाइक किया गया है जो कि मुख्यमंत्री के खिलाफ है.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, बयानों को लेकर बिप्लब देब को दिल्ली तलब करने की जो खबर सामने आई थी, उसके पीछे भी देवधर के ही लोगों का हाथ था. मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से इस मुद्दे पर बार-बार सफाई दी जाती रही कि दिल्ली तलब नहीं किया गया है बल्कि मुख्यमंत्री की सभी बीजेपी मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की बैठक और फिर नॉर्थ-ईस्ट राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में जाने का पहले से ही कार्यक्रम तय है.

त्रिपुरा सरकार में हस्तक्षेप चाहते हैं सुनील देवधर

बीजेपी के एक नेता के मुताबिक, सुनील देवधर त्रिपुरा की सरकार में अपना हस्तक्षेप चाह रहे हैं.लेकिन, मुख्यमंत्री बिप्लब देब सरकार पर पूरी तरह से अपना नियंत्रण चाहते हैं. लिहाजा दोनों के बीच इस तरह का ‘पावर- टसल’ देखने को मिल रहा है.

इसके पहले 22 अप्रैल बीजेपी की त्रिपुरा की राज्य इकाई की एक्जक्युटिव कमिटी की बैठक में त्रिपुरा बीजेपी प्रभारी सुनील देवधर के नदारद रहने पर भी कई सवाल खड़े हुए थे. हालांकि कुछ दिन पहले देवधर अगरतला में एक ऑटोमोबाइल शो रूम के उद्घाटन में भी दिख गए थे.

दोनों नेताओं के बीच पावर टसल के मुद्दे पर मुख्यमंत्री बिप्लब देब के ऑफिस से इस बारे में कोई जवाब नहीं मिला. लेकिन, बीजेपी के राज्य प्रभारी सुनील देवधर ने मतभेद की खबरों को सिरे से खारिज कर दिया. फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत के दौरान देवधर ने कहा ‘ मतभेद की सारी खबरें बकवास हैं. इनमें कुछ भी सच्चाई नहीं है. सरकार अच्छा काम कर रही है और मुख्यमंत्री के साथ हमारे रिश्ते अच्छे हैं.’

उन्होंने इसे वामपंथियों की साजिश बताते हुए त्रिपुरा में राज्य इकाई की एक्जक्युटिव कमिटी की बैठक में शामिल नहीं होने को लेकर भी अपनी सफाई दी. उन्होंने कहा ‘आगरा में तीन महीने पहले से ही 22 अप्रैल को आरएसएस का कार्यक्रम तय था. जिसमें मुझे शामिल होना था. यह कार्यक्रम नॉर्थ ईस्ट के बच्चों का था. इस इलाके में नॉर्थ ईस्ट के बच्चों के लिए सात छात्रावास चलते हैं. उन्हीं में से एक आगरा में कार्यक्रम तय था.’

देवधर ने कहा ‘अगरतला में मीटिंग की 22 अप्रैल की तारीख अचानक तय हो गई थी, इसलिए मैं नहीं जा पाया. लेकिन, मैंने मुख्यमंत्री बिप्लब देब को बता दिया था.’

हालांकि फेसबुक पेज पर अपनी तरफ से लाइक किए गए कमेंट पर सुनील देवधर का कहना है कि ‘उनके फेसबुक एकाउंट से किसी निगेटिव नहीं बल्कि, पॉजिटिव कमेंट पर लाइक किया गया था.’ उन्होंने कहा कि ‘इस बारे में उन्होंने अपने स्टाफ से पूछा भी था, जो फेसबुक पेज चलाते हैं. क्योंकि मैं फेसबुक पेज नहीं चलाता हूं.’

सुनील देवधर भले ही लाख सफाई दें लेकिन, बीजेपी और संघ के सूत्रों का कहना है कि पार्टी आलाकमान बिप्लब देब और सुनील देवधर के बीच पावर टसल से चिंतित भी है और नाराज भी. क्योंकि त्रिपुरा की जीत को बीजेपी और संघ 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ी जीत मानते हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी त्रिपुरा की जीत को ऐतिहासिक बताया था. क्योंकि पहली बार दक्षिणपंथी बीजेपी ने धुर-विरोधी वामपंथी पार्टी को सीधी लड़ाई में मात दी है.

पहली बार बीजेपी को मिला शुद्ध विशुद्ध संघ का सीएम

दूसरी तरफ, नॉर्थ-ईस्ट में अपना पांव पसार रही बीजेपी को पहली बार ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जो कि शुद्धरूप से बीजेपी और संघ का कार्यकर्ता रहा है. स्वयंसेवक बिप्लब देब के पहले भी कई मुख्यमंत्री हुए हैं. लेकिन, वो दूसरे दलों से ही बीजेपी में शामिल हुए हैं. असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल असम गण परिषद से जबकि मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कांग्रेस से बीजेपी में आए हुए नेता हैं. ऐसे में बीजेपी आलाकमान त्रिपुरा में नई नवेली सरकार के बनने के बाद मुख्यमंत्री और प्रदेश प्रभारी के टसल से चिंतित दिख रहा है.