view all

सेना पर सियासत पहली बार

घुसकर मारने की राजनीति में सेना कैसे सम्मानित हो सकती है?

Krishna Kant

सेना के जवानों ने देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान दी.

उस शहादत का सम्मान होना चाहिए था, लेकिन सियासी गलियारे में 'खून की दलाली' को लेकर भगदड़ मच गई.


आरोप-प्रत्यारोप, झूठ-फरेब और सियासी बयानबाजी के सहारे सेना का सम्मान कैसे हो सकता है?

सेना के अपमान और सम्मान की सीमा का फर्क धुंधला गया है.

सैन्य कार्रवाई और शहादत पर विवाद से सियासत किस तरह सैनिकों का सम्मान करेगी, यह समझ से परे है.

राहुल गांधी ने कहा, 'जिन्होंने हिंदुस्तान के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किए हैं, उनके खून के पीछे आप छुपे हैं. उनकी आप दलाली कर रहे हो.'

राहुल गांधी का यह बयान सही हो सकता था अगर वह भाषाई मर्यादा को नहीं लांघता.

लगता है राहुल ने अपनी मां सोनिया गांधी के उन बयानों से कुछ नहीं सीखा जिसमें उन्होंने 'मौत का सौदागर' और 'जहर की खेती' जैसे प्रयोग किए और फजीहत झेली.

शहादत की कैसे दलाली होती है: अमित शाह 

राहुल गांधी के बयान के जवाब में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, 'सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर भाजपा के कार्यकर्ता और पूरा देश गर्व महसूस करता है.'

'जो सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा रहे हैं उनके मूल विचार में ही खोट है. जवानों के खून की दलाली की बात करके राहुल ने सेना की वीरता का अपमान किया है.'

'मैं राहुल से पूछना चाहता हूं कि शहादत की कैसे दलाली होती है? राहुल गांधी का बयान सेना के जवानों का मनोबल तोड़ने वाला है.'

शाह को यह भी बताना चाहिए था कि सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद बीजेपी की तरफ से यूपी में सर्जिकल स्ट्राइक को भुनाने वाले चुनावी पोस्टरों से सेना का कैसा सम्मान होता है?

उन्हें यह भी बताना चाहिए कि सेना की कार्रवाई और सीमा सुरक्षा जैसे रूटीन मसले को मीडिया में लाकर तमाशा बना देने से सेना कैसे सम्मानित होती है?

अमित शाह से यह सवाल किसी ने नहीं पूछा कि यदि सर्जिकल स्ट्राइक के मामले को जनता के बीच लाया गया तो उसमें इतने तरह के झूठ और फरेब क्यों डाले गए?

'क्रॉस बॉर्डर कार्रवाई' या 'सर्जिकल स्ट्राइक'

रूटीन 'क्रॉस बॉर्डर कार्रवाई' को 'सर्जिकल स्ट्राइक' कहकर प्रचारित करना और उस पर फूहड़ बहस कराने की जिम्मेदारी कौन लेगा?

यह तब है जब सेना से संबंधित सूचनाएं या तो सेना के जरिये सामने आती है या सरकार के जरिए.

रूटीन 'क्रॉस बॉर्डर कार्रवाई' से देश भर में उन्माद फैलाने का दोषी कौन है? सुरक्षा के मसले मजाक न बन जाएं, इसकी जवाबदेही किसकी होगी?

राहुल के 'खून की दलाली' वाले बयान में मोदी और सेना की तारीफ भी शामिल थी, लेकिन दुर्भाग्य से राहुल ने गलत शब्दों का इस्तेमाल किया.

जिस मसले को वे गंभीरता से उठा सकते थे, उसे छिछले स्तर पर ले गए.

राहुल के जवाब में शाह ने कांग्रेस की दलाली का जिक्र किया. यह बोफोर्स से शुरू होकर कॉमनवेल्थ, 2G और कोयला घोटालों तक कायम है.

केंद्र सरकार और बीजेपी ने सेना की कार्रवाई को अपने राष्ट्रवादी अभियान का हिस्सा बना लिया.

ऐसा करके वे वही कर रहे हैं जो उन्होंने राष्ट्रवाद, भारत माता और तिरंगे के साथ किया है.

मीडिया में खबरें हैं कि दंगों की आग में झुलसे मुजफ्फरनगर में भी बीजेपी का पोस्टर लगा दिया है, जिसका संदेश है 'जैसे घुसकर मारा है, वैसे ही घुसकर मारेंगे.'

घुसकर मारने की राजनीति में सेना कैसे सम्मानित हो सकती है?