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पीएम का संदेश गौरक्षा के नाम पर हिंसा की भयावहता को दिखाता है

गौहिंसा को लेकर मुद्दा कितना संवेदनशील हो गया है...इसे पीएम के संदेश से समझा जा सकता है

Amitesh

देश के अलग-अलग राज्यों में गो-रक्षा के नाम पर हो रही हिंसा और हत्या के मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुप्पी तोड़ी है. मोदी ने गोरक्षा के नाम पर हो रहे हमले और अत्याचार को बर्दाश्त नहीं करने की बात कर तथाकथिक गोरक्षकों को सख्त संदेश देने की कोशिश की है. संदेश साफ है अब गोरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों से कड़ाई से निपटा जाएगा.

प्रधानमंत्री के इस बयान को बल्लभगढ़ की घटना से जोड़कर देखा जा रहा है. पिछले शुक्रवार को ही हरियाणा के बल्ल्भगढ़ में ट्रेन से सफर कर रहे जुनैद नाम के एक युवक की हत्या कर दी गई थी. जुनैद के साथ उसके दो भाई भी ट्रेन में सफर कर रहे थे, जो दिल्ली से शॉपिंग के बाद अपने घर वापस लौट रहे थे.


आरोप लग रहे हैं कि ‘बीफ इटर’ कहकर पहले जुनैद को ताना मारा गया और उसके बाद कुछ लोगों ने जुनैद की हत्या कर दी. राजधानी दिल्ली से चंद किलोमीटर की दूरी पर हरियाणा के वल्लभगढ़ में हुई इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद देश में विरोध हो रहा है, धरने हो रहे हैं और नाराजगी भी जताई जा रही है.

बार-बार तथाकथित गोरक्षकों की तरफ से हो रही इस तरह की घटनाएं इस बात की तस्दीक कर रही हैं कि देश के भीतर अलग-अलग राज्यों में किस हद तक गोरक्षा के नाम पर अत्याचार हो रहा है.

प्रधानमंत्री ने जिस जगह को चुना उसका भी काफी महत्व है. बापू और बिनोबा भावे के पदचिन्हों पर चलते हुए गाय की सेवा करने के लिए मोदी ने लोगों से अपील की. बापू के से उनके इस संदेश में हिंसक होती भीड़ को अहिंसा का पाठ पढाने की कोशिश की गई जिसको आगे कर ही गो सेवा हो सकती है.

गाय की चर्चा करते हुए मोदी भावुक भी हुए लेकिन, नसीहत देने से नहीं चूके. उन्होंने बचपन में अपने पड़ोसी के घर की एक गाय की कहानी सुनाई जिसमें उस गाय ने अपने पाश्चाताप में अपनी जान तक दे दी. उस गाय के पैर से कुचलकर एक मासूम की जान चली गई थी. लेकिन, उसके बाद उस गाय ने खाना-पीना छोड़ दिया और अंत में पाश्चाताप में अपनी जान भी दे दी.

मोदी की तरफ से ये कहानी उन हिंसक फर्जी गोरक्षकों के लिए है कि जिस गाय के नाम पर आप हिंसा करते हैं वही गाय कितनी अहिंसक होती है.

प्रधानमंत्री की तरफ से इसी तरह के सख्त और स्पष्ट संदेश की अपेक्षा भी की जा रही थी. क्योंकि तथाकथित गोरक्षकों का किसी ना किसी रूप में भगवा ब्रिगेड के साथ लगाव और जुड़ाव की बात सामने आती रहती है. आरोप इस बात के लगते रहते हैं कि बीजेपी और आरएसएस के हिंदुत्व ब्रिगेड के ही कार्यकर्ता इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं. इसलिए मोदी के लिए इस मुद्दे पर सख्त लहजे में संदेश देना जरूरी हो गया था.

यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुद की छवि विकास के साथ-साथ हिंदुत्व के पुरोधा के तौर पर ही रही है. ऐसे में गोरक्षा के नाम पर देश में बढ़ती इन हिंसक घटनाओं पर प्रधानमंत्री की तरफ से हिंदुत्व के तथाकथित पुरोधाओं के लिए भी जरूरी हो गया था. वरना एक बार फिर से भारत के भीतर मोदी विरोधियों को असहिष्णुता के मुद्दे पर उनको घेरने के लिए नया हथियार मिल जाता.

पहले भी दी थी चेतावनी

हालांकि, प्रधानमंत्री की तरफ से ये पहला  मौका नहीं है कि उन्होंने गोरक्षकों को चेतावनी दी है. इसके पहले उन्होंने 6 अगस्त 2016 को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम से 'ओबामा स्टाइल' टाउनहॉल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था, 'कुछ लोग गौरक्षक के नाम पर दुकान खोलकर बैठ गए हैं. मुझे इस पर बहुत गुस्सा आता है.'

उन्होंने आगे कहा था, 'कुछ लोग पूरी रात असमाजिक कार्यों में लिप्त रहते हैं और दिन में गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं. मैं राज्य सरकार से कहता हूं कि वे ऐसे लोगों का डोजियर बनाएं.' उन्होंने कहा कि ऐसे गौरक्षक में से 80 फीसदी लोग गोरखधंधे में लिप्त हैं.

प्रधानमंत्री ने उस वक्त भी गौरक्षकों से अपील की थी कि अगर असली गौरक्षा करनी है तो वे गाय को प्लास्टिक खाने से बचाएं, ये बड़ी सेवा होगी.

प्रधानमंत्री की तरफ से ये संदेश उस वक्त दिया गया था जब गुजरात के उना में दलितों की पिटाई के मामले ने संसद से लेकर सड़क तक हर जगह बवाल मचा दिया था. विपक्ष के निशाने पर रहे सरकार के मुखिया की तरफ से ये बातें कहकर गो रक्षकों को चेताया गया था.

लेकिन, उनकी नसीहत का असर नहीं दिखा बल्कि, उसके बाद भी कई राज्यों में भी इस तरह की घटना हुई. जहां गोरक्षा के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निशाने पर लिया गया था.

इसी साल अप्रैल में राजस्थान के अलवर में 50 साल के पहलू खान की गोतस्करी के आरोप में पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. उस वक्त वीएचपी और बजरंग दल से जुड़े लोगों के उपर हत्या के  आरोप लगे थे.

चाहे राजस्थान के अलवर की घटना हो,गुजरात के उना की घटना हो या फिर हरियाणा के बल्लभगढ़ की घटना इन तीनों राज्यों में इस वक्त बीजेपी की सरकारें हैं. केंद्र में भी बीजेपी की ही सरकार है. ऐसे में प्रधानमंत्री के ऊपर इन हिंसक घटनाओं पर खुलकर अपनी बात रखना जरूरी हो गया था.