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गौ रक्षकों को पीएम मोदी ने पढ़ाया अहिंसा का पाठ, कहा विनोबा से सीखें गौ सेवा

मोदी ने गांधी की धरती साबरमती से कहा कि गौरक्षा के नाम पर हत्या बर्दाश्त नहीं की जा सकती

Kinshuk Praval

पीएम मोदी व्यथित है. वो आक्रोशित भी हैं. वो उस पीड़ा को महसूस कर रहे हैं जो वो परिवार महसूस करते हैं जिनके अपने गौ रक्षक दलों की हिंसा का शिकार हो गए.

पीएम की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है. उनका भावुक होना भी स्वाभाविक है. वो जिस पद पर हैं वहां वो किसी विचारधारा या पार्टी का चेहरा नहीं बल्कि सवा सौ करोड़ देशवासियों के संरक्षक हैं. उनके लिये पूरे देश की संवेदनाएं और पीड़ाएं एक सी हैं जो किसी समाज, जाति या धर्म के नाम पर बंटी नहीं हैं.


तभी महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम से पीएम मोदी का दर्द छलक उठा. उनका सवाल ही सख्त संदेश भी है कि गायों की सुरक्षा के लिये इंसानों को कैसे मारा जा सकता है. मान्यताओं में गाय अगर माता है तो क्या वो मां अपने ही बेटों के एक दूसरे की जान लेने की वजह बन सकती है. पीएम मोदी ने गाय को लेकर एक छोटी सी कहानी भी सुनाई जिसका सार बड़ा है.

महात्मा गांधी और विनोबा भावे की गौ सेवा का उदाहरण देते हुए पीएम ने साबरमती आश्रम से उन सभी लोगों को अहिंसा का नैतिक पाठ पढ़ाया जो गौरक्षा के नाम पर हिंसक हो चुके हैं. आस्था कभी भी हिंसा से मजबूत नहीं हुई बल्कि आहत ही होती है.

पिछले साल भी गौरक्षकों पर गरजे थे प्रधानमंत्री

एक साल पहले भी उन्होंने गौ रक्षा के नाम पर गुंडई करने वालों को लताड़ा था जिसके बाद घटनाओं में कमी आई थी. लेकिन इस बार का संदेश ना सिर्फ उन गौ रक्षा दलों के लिये सख्त है बल्कि राज्य सरकारों के लिये भी हिदायत है. मोदी नहीं चाहते कि एक गौ संरक्षण और सेवा की विचारधारा को कुछ असामाजिक तत्व इस तरह से हाईजैक करें जिससे उद्देश्य की पूर्ति ना हो और गौ रक्षा के प्रयासों की विवादों में घिरे जाएं.

जाहिर तौर पर गौ रक्षा के नाम पर हिंसा से गौ संरक्षण के प्रयास ना सिर्फ भटक जाएंगे बल्कि उन सरकारों के लिये जवाब देना भी मुश्किल हो जाएगा जो 'सबका साथ सबका विकास' की भावना से काम कर रही हैं.

गौ रक्षा के नाम पर हाल के दिनों में देश के हिस्सों से आईं खबरे ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर समाज किस दिशा में जा रहा है. अलवर और ऊना की घटनाएं सभ्य समाज पर दाग लगाती हैं.

हिंसा से कमजोर होगा गौ रक्षा का मुद्दा

एक तरफ हिंसक भीड़ के सामने दर्शक बना समाज तो दूसरी तरफ तमाशबीन पुलिस की भूमिका शर्मसार करती है. गौ रक्षकों के हाथ में कानून समाज में दरार बढ़ाने का काम कर रहा है. इन हिंसक कथित गौ रक्षकों का वास्तव में गौ सेवा से कोई रिश्ता नहीं है.

संघ पूरे देश में गौ हत्या के खिलाफ कानून चाहता है. संघ ने 1950 में गौ रक्षा के मुद्दे को अपने एजेंडे में शामिल किया था. तत्कालीन सरसंघचालक गुरू गोलवलकर ने गौरक्षा के मुद्दे को जोर शोर से उठाया था. इसके बाद धीरे धीरे गौ रक्षा का मुद्दा राजनीतिक बनता चला गया.

लेकिन गौ रक्षा के नाम पर हिंसा को किसी ने भी समर्थन नहीं दिया. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी गौ रक्षक दलों की हिंसा की कड़ी निंदा की. उन्होंने साफ कहा कि गायों की रक्षा करते समय ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिये जिससे कुछ लोगों की भावना आहत हो .

सुप्रीम कोर्ट और पीएम की झिड़की के बाद अब राज्य करें कार्रवाई

जाहिर तौर पर ऐसा कोई कानून नहीं हो सकता जो गौ रक्षा के नाम पर हिंसा को बढ़ावा दे. अब प्रधानमंत्री की चिंता के बाद राज्य सरकारों की जिम्मेदारी और एक्शन का समय शुरू होता है. राज्य सरकार किस तरह से अराजक होते छद्म गौ रक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती है यह देखने वाली बात होगी.

प्रशासन की कार्रवाई किसी भी घटना के बाद का कदम है. राज्य सरकारों को ऐसे ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि गौ रक्षा के नाम पर इकट्ठी होने वाली उन्मादी भीड़ पर लगाम कसी जा सके.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 6 राज्यों को गौ रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा को लेकर नोटिस भेजा है. 6 राज्यों में अकेले पांच राज्य बीजेपी शासित हैं. वहीं पिछले 7 साल में यूपी में सबसे ज्यादा गौ रक्षा के नाम पर हिंसा के मामले आए हैं. अब सौ दिन सरकार के पूरे करने वाली योगी सरकार के लिये बड़ी चुनौती अपने राज्यों में कथित गौ रक्षकों से निपटने की है ताकि सरकार पर प्रभावित समाज का भरोसा कायम हो सके.

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही ये भी पूछा था कि क्यों ने हिंसा फैलाने वाले गौ रक्षक दलों को प्रतिबंधित कर दिया जाए. लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि गौ रक्षक दलों के पीछे आखिर असली लोग कौन हैं?  कहीं इस मुद्दे को जानबूझकर हिंसक बना कर राजनीतिक हथियार तो नहीं बनाया जा रहा है? गौ रक्षा के नाम पर समाज को बांटने की नई साजिश तो नहीं चल रही?

समय रहते कारवाई हो तो सुधरेंगे हालात

सरकार के लिये ऐसे तत्वों की पहचान कर कड़ी कार्रवाई करने की सख्त जरूरत है ताकि समय रहते ही किसी बड़ी आशंका को टाला जा सके. पीएम मोदी के संबोधन के बाद राज्य सरकारों की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो ऐसे दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर एक नजीर कायम करें. अगर राज्य सरकारों का रवैया सख्त नहीं हुआ तो इन तथाकथित गौ रक्षकों के हौसले कभी पस्त नहीं होंगे.