प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को एक अलग ही तेवर में दिखे. वही तेवर जो मई 2014 से पहले देशभर में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी का यूएसपी हुआ करता था. फर्क केवल इतना था कि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पास केवल विपक्ष का नजरिया था, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सत्ता पक्ष से विपक्ष को जवाब देने की चुनौती थी. और यह चुनौती हाल ही में स्वयं उनकी ही पार्टी के दो बड़े नेताओं ने और ज्यादा बढ़ा दी थी.
पहले सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपने बयानों से और हाल ही में यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने लेख से देश की अर्थव्यवस्था के बुरे हालात को राष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में ला दिया. यहां तक कि मोदी के पक्के समर्थकों के मन में भी देश की आर्थिक हालत को लेकर संदेह का माहौल बनने लगा. ऐसे में मोदी के लिए स्वयं सामने आकर सरकार की ओर से मोर्चा संभालना कई संकेत देता है.
स्वीकारोक्ति में आक्रामकता
आमतौर पर मोदी किसी भी मौके पर, चाहे वह उनके मन की बात हो या फिर लाल किले से दिए जाने वाला भाषण, अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करने से नहीं चूकते. लेकिन बुधवार को कंपनी सचिवों के संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह में जब प्रधानमंत्री ने बोलना शुरू किया, तो उन्होंने अपनी उपलब्धियां नहीं गिनाईं. उलटा, उन्होंने भाजपा के असंतुष्ट नेताओं और विपक्ष के आरोपों को स्वीकार किया, लेकिन अपने खास अंदाज में. प्रधानमंत्री की स्वीकारोक्ति में हार की निराशा नहीं, बल्कि वही आक्रामकता थी, जिसके लिए उन्हें जाना जाता है.
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मोदी ने देश की जीडीपी दर के 5.7 प्रतिशत पर आने को अर्थव्यवस्था के लिए एक बुरा दौर माना, लेकिन साथ ही पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को यह याद दिलाना भी नहीं भूले कि यूपीए के अंतिम 6 साल के कार्यकाल में 8 तिमाहियों में जीडीपी की वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत से नीचे आई. मोदी ने कहा, 'हमने ऐसी तिमाहियां भी देखी हैं, जब वृद्धि दर 0.2 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत तक रही.'
जीएसटी और नोटबंदी का किया जबरदस्त बचाव
लेकिन अपनी बात कहते हुए नरेंद्र मोदी के दिमाग में इस बात के लिए होने वाली उनकी आलोचना भी ध्यान में थी, जिसमें उन पर विरोधियों को नजरअंदाज करने और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से सलाह-मशविरा न करने के आरोप लगते हैं. इसलिए वह आलोचनाओं को स्वीकार करते हुए यह कहना नहीं भूले कि वह अपनी कठोरतम आलोचनाओं को भी स्वीकार करते हैं. लेकिन मोदी की स्वीकारोक्ति को 2019 के आम चुनावों से पहले उनकी हताशा मानना बहुत बड़ी भूल होगी. मोदी ने न केवल जीडीपी की वृद्धि दर में आई कमी का बचाव किया, बल्कि महंगाई दर से लेकर चालू खाता घाटे और वित्तीय घाटे के आंकड़ों पर भी जमकर बोले.
मोदी ने कहा कि यूपीए के दौर में महंगाई दर 10 प्रतिशत थी, जो भाजपा की सरकार ने 2.5 प्रतिशत तक लाने में सफलता हासिल की, चालू खाता घाटा 4 प्रतिशत से घटकर 1 प्रतिशत तक आ गया और वित्तीय घाटा भी 4.5 प्रतिशत से घटकर 3.5 प्रतिशत पर आ गया. साफ है कि मोदी ने देश के मध्य वर्ग और अपनी पार्टी के पारंपरिक समर्थकों को इस आशंका से उबारने की पूरी कोशिश की कि अर्थव्यवस्था की कमान उनके हाथ से निकल रही है. उलटा, वृद्धि दर में आई कमी को काले धन के खिलाफ अपनी जंग से जोड़ते हुए, उन्होंने देश को यह आश्वस्त करने की भी कोशिश की कि विमुद्रीकरण और जीएसटी भले ही छोटी अवधि में बाधा लग रहे हों, लेकिन लंबी अवधि में इनका लाभ ही होने वाला है.
फर्जी कंपनियों के आंकड़ों का सहारा
काले धन के खिलाफ लड़ाई में अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को साबित करने के लिए मोदी ने एक बार फिर फर्जी कंपनियों के आंकड़े का सहारा लिया. जिस नोटबंदी को स्वामी, सिन्हा और विपक्ष घोटाला बता रहे हैं, उसके असर को स्थापित करने के लिए मोदी ने बताया कि नोटबंदी के अभियान से 3 लाख ऐसी फर्जी कंपनियों का पर्दाफाश हुआ, जिनके जरिए काले धन को सफेद किया जा रहा था. लेकिन सरकार इनमें से 2.1 लाख कंपनियों को पहले ही बंद कर चुकी है और बाकी को अगले कुछ समय में बंद कर दिया जाएगा. मोदी ने कहा कि 2022 तक देश में एक भी फर्जी कंपनी नहीं रहेगी. यह दरअसल मोदी का देश को एक आश्वासन था कि नोटबंदी को अनावश्यक या निरर्थक नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसके जरिए उन्होंने काले धन की बुनियाद पर एक गहरा आघात किया है.
कुछ इसी तरह का संदेश प्रधानमंत्री ने जीएसटी के मुद्दे पर भी देने की कोशिश की. जीएसटी को लेकर सरकार की लगातार मुखर हो रही आलोचनाओं को खारिज करने के बजाए उनके प्रति सकारात्मक रवैया अपनाने का संकेत देते हुए मोदी ने कहा कि उन्होंने जीएसटी काउंसिल को कारोबारियों की समस्याओं को खत्म करने के लिए नियमों में जरूरी बदलाव करने के निर्देश दिए हैं. और साथ ही उन्होंने कारोबारी जगत को यह भी आश्वस्त करने की कोशिश की जीएसटी और अन्य बदलावों से देश विकास की नई राह पर तेज गति से आगे बढ़ेगा.
रिजर्व बैंक के अगली तिमाहियों में 7.7 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर रहने के अनुमान का हवाला देते हुए मोदी ने कई और आंकड़े भी पेश किए. जहां उन्होंने ईपीएफओ खातों में करीब 1.5 करोड़ की बढ़ोतरी होने को रोजगार बढ़ने के सबूत के तौर पर पेश किया, वहीं गाड़ियों की बिक्री बढ़ने, हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ने और टेलीफोन ग्राहकों की संख्या बढ़ने को अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी के संकेत के तौर पर पेश किया.
कुल मिलाकर बुधवार को नरेंद्र मोदी ने जिस आक्रामकता के साथ अपनी सरकार की आर्थिक नीतियों का बचाव किया, वह अगले लोकसभा चुनाव के लिए उनकी रणनीति का भी संकेत देता है. मोदी ने साफ कर दिया है कि वह 2004 में भाजपा द्वारा अपनाए गए 'इंडिया शाइनिंग' अभियान की गलती को दोहराने नहीं जा रहे, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि विपक्ष को वह आसानी से उनकी एनडीए सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मौका देने वाले हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )