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पीएम मोदी ने दिखाया कि बिहार में विकास पैदा होगा

अपने 5 घंटे के बिहार प्रवास के दौरान एक बात पीएम मोदी ने स्पष्ट कर दी कि अब बिहार में विकास की गंगा बहेगी

Kanhaiya Bhelari

पीएम नरेंद्र मोदी ने भले ही पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा न देकर कई लोगों को निराश किया हो, लेकिन अपने 5 घंटे के बिहार प्रवास के दौरान एक बात उन्होंने स्पष्ट कर दी कि अब बिहार में विकास की गंगा बहेगी.

पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में बोलते हुए पीएम ने मंच से घोषणा किया कि ‘बिहार में सरस्वती तो पहले से ही हैं अब केंद्र सरकार उनकी बहन लक्ष्मी को भी उनके साथ में खड़ा कर देगी.’ उनके कहने का साफ मतलब था कि राज्य में हुनर और स्कील की कमी नहीं है. इसे विकास की पटरी पर लाने के लिए धन की जरूरत है जिसे दिल खोलकर दिया जाएगा.


पटना से 100 किलोमीटर दूर मोकामा में हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं का शिलान्यास करके नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद राज्य में लक्ष्मी की बरसात होने वाली है. सूत्र बता रहे हैं कि पीएम और सीएम जितनी देर तक एक साथ मंच और चॉपर में रहे, दोनों के बीच केवल विकास के मुद्दे पर ही बातचीत होती रही.

पीएम मोदी और सीएम नीतीश की कमेस्ट्री

जेडीयू के प्रवक्ता और एमएलसी नीरज कुमार ने गर्मजोशी के साथ बताया कि ‘मोकामा में पीएम का भाषण सुनने के बाद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बिहार में विकास पैदा होगा.’

उन्होंने आगे कहा कि 'अभी तक विकास शब्द को लेकर हमलोग भी कटाक्ष किया करते थे पर पहली बार एहसास हुआ कि बिहार में विकास को लेकर पीएम कितने गंभीर हैं. तभी तो एक साथ आठ बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत उन्होंने कर दी.’

एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मंच शेयर किया था. दोनों के शारीरिक हाव-भाव को देखने से लगता नहीं था कि ये कभी राजनीतिक दुश्मन रहे हों.

एक केंद्रीय मंत्री ने इस लेखक को बताया कि ‘दोनों ऐसे घुलमिलकर और कान में कान सटाकर बात कर रहे थे जैसे दो घनिष्ठ मित्र सालों बिछड़ने के बाद मिलने पर करते हैं.’ बगावती मानसिकता के ये मंत्री दोनों के मिलन कमेस्ट्री का चश्मदीद गवाह बनकर कुछ परेशान दिख रहे हैं.

नि:संदेह दोनों की दोस्ती का धमाकेदार तरीके से रिन्यूल हो गया है. एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि 2013 के पहले वाले मोड में दोनों नेता चले गए है. नीतीश कुमार जबतक केंद्र के अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को अपने काम से प्रभावित करते रहे. ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात में किए जा रहे विकास के कार्यों का नीतीश कुमार भी प्रशंसा करते रहते थे.

नीतीश ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दफन कर दिया

जगजाहिर है कि चुनाव में अकलियत का वोट हासिल करने के लिए नीतीश कुमार गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी से दूरी बनाए रखते थे. 2005 और 2010 विधानसभा चुनावों में उन्हें इसका आंशिक रूप से फायदा भी हुआ. नीतीश कुमार के मन में ये कसक हमेशा रहती है कि हमने अकलियत के लिए बहुत कुछ किया पर उस हिसाब से उस वर्ग का समर्थन उन्हें नहीं मिला. कुछ ठोस लाभ नहीं देने के बावजूद भी लालू प्रसाद यादव हमेशा उस वर्ग का हीरो बने रहे और वोट लेने में उन पर भारी रहे.

बदलते राजनीतिक परिस्थिति में नीतीश कुमार ने तय कर लिया कि अब हमको वोट के लिए नहीं बल्कि बिहार के विकास और गुड गवर्नेंस के लिए शासन करना है. इसी सोच को आत्मसात करने के बाद उन्होंने एक झटके में विकास के दुश्मन लालू प्रसाद से तौबा करके विकास के दोस्त नरेंद्र मोदी से 5 साल बाद हाथ मिला लिया.

नीतीश कुमार अब बिना संकोच के साथ कहते हैं कि ‘मैंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बिहार के विकास के लिए हमेशा के लिए दफन कर दिया.’

सही भी है. ऐसी इच्छाशक्ति बहुत कम नेताओं में देखने को मिलती है. देशभर में मिल रहे समर्थन से ऐसा लग रहा था कि 2019 चुनाव तक नीतीश कुमार विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के रूप में उभर सकते हैं. बहुसंख्यक उनके पाला बदलने के निर्णय की तारीफ करता है. भले ही देश-दुनिया की एक खास विचारधारा के लोग उनकी आलोचना करते रहें.

दर्जा कोई खैरात नहीं

तब के सहयोगी की कार्य संस्कृति को देखकर नीतीश कुमार काफी क्षुब्ध और परेशान रहते थे. कहते हैं मौका-बेमौका मित्रों से पूछते रहते थे कि क्या बिहार को तड़पता छोड़कर पीएम का सपना देखना उचित है? जनता ने हमें इसीलिए मैंडेट दिया है?

कहते हैं अंत में अंतरआत्मा की आवाज पर निर्णय लिया कि पहले घर के देवता की पूजा करेंगे और जब समय मिलेगा तो मंदिर की परिक्रमा के बारे में सोचा जाएगा.

बहरहाल, पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी की दर्जा नहीं देने से ‘बुद्धिजीवी’ नाराज हैं. आरोप लगा रहे हैं कि पीएम को विकास से कुछ लेना देना नहीं है. नीतीश कुमार को औकात बता दिया, बुड़बक बना दिया वगैरह-वगैरह. इस लेखक से बहुत लोगों ने पीएम द्वारा की गई घोषणा की स्वागत की है.

एक रिटायर शिक्षक का मानना है कि पीएम ने बिलकुल सही काम किया है. उनके हिसाब से पटना यूनिवर्सिटी में अराजकता का बोलबाला है. न छात्र पढ़ना चाहते हैं और न ही शिक्षकों को पढ़ाने आता है. एक पूर्व कुलपति भी पीयू को केंद्रीय विवि बनाने के पक्षधर नहीं हैं. बिलकुल ठीक तरीका है कि पहले प्रतिस्पर्धा में शामिल होकर काबिल हाने का प्रमाण दीजिए और फिर तगमा के लिए मांग कीजिए जैसे देश भर में स्मार्ट सिटी के लिए किया गया हैं.

गौरवशाली अतीत होना गौरव की बात है. पर नीतिगत फैसला वर्तमान के परफारमेंस में लेना चाहिए. दर्जा कोई खैरात नहीं है. पीयू के वर्तमान शैक्षणिक माहौल को वहां के अंग्रेजी के एक शिक्षक की छुट्टी के आवेदन, जो उसने कुछ साल पहले प्रिंसिपल को लिखा था, से परखा जा सकता है. उन्होंने लिखा था ‘आई एम फीलिंग हेडेक इन माइ स्टॉमेक, प्लीज ग्रांट मी होलीडे फॉर फोर डेज.’