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वाराणसी में पीएम मोदी: अच्‍छे दिन की उम्‍मीद में काशी की नगरवधुएं

पीएम मोदी के प्रवास स्‍थान डीएलडब्‍ल्‍यू से महज 400 मीटर की दूरी पर वाराणसी का शिवदासपुर रेडलाइट एरिया है

Shivaji Rai

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दो दिन के दौरे पर हैं. इस दौरान वह अपने संसदीय क्षेत्र पर सौगातों की बारिश करने वाले हैं. पीएम मोदी वाराणसी में 18 बड़ी परियोजनाओं का लोकार्पण और दस बड़ी परियोजनाओं का शिलान्‍यास करेंगे. इन परियोजनाओं के जरिए पूर्वांचल के विकास को नई गति मिलेगी. पर वाराणसी की परिधि क्षेत्र में ही एक इलाका ऐसा है जहां 'सबका साथ-सबका विकास' के नारे तो सुनाई देते हैं पर मूलभूत सुविधाएं भी यहां से मीलों दूर हैं.

पीएम मोदी के प्रवास स्‍थान डीएलडब्‍ल्‍यू से महज 400 मीटर की दूरी पर वाराणसी का शिवदासपुर रेडलाइट एरिया है. जहां करीब 3000 वेश्‍याएं रहती हैं. इस इलाके में रहने वाली वेश्‍याओं की परेशानी और कठिनाइयों को जानने के लिए किसी तरह के मगजमारी की जरूरत नहीं पड़ती. इन गलियों में कदम रखते ही इसकी विभिषका का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है. गंदगी से पटी, उबड़-खाबड़ सड़कें, खुली-बजबजाती नालियां, ओवरफ्लो करता सीवर और चारो ओर बिखरा मलबा इसकी आम सूरत है.


वेश्याओं की देशव्‍यापी दुर्दशा का प्रतीक

इन सबके बीच रेडलाइट एरिया की गलियों में घुसते ही घर से बाहर निकले रंग पुते चेहरों का झुंड दोपहर के ढलान से ही दिखने लगता है. शहर के बीचोंबीच घनी आबादी वाले इस इलाके की गलियां पहली बार आने वाले हर आदमी को चौंकाती हैं. ऐसा लगता है जैसे आप किसी ऐसे जगह पर आ गए हैं, जहां बंगाल, नेपाल, असम, नॉर्थ ईस्‍ट और शहर बनारस एक जगह सिकुड़ गया हो. यह एकता का प्रतीक हो ना हो, पर वेश्‍याओं की देशव्‍यापी दुर्दशा को जरूर दर्शाता है.

एक वक्‍त था जब बनारस की तवायफों के पांवों में बंधे घुंघरुओं में हुकुमतों को भी झुकाने की ताकत हुआ करती थी. पर न वह दौर रहा, न उनमें वह ताकत रही, अब तो हुकुमत की बेरूखी उनके जीवन पर बन आई है. चुनावी माहौल में इन गलियों में भी सियासी सरगर्मी रहती है. दलगत नारे गूंजते रहते हैं. उम्‍मीदें जगाई जाती हैं, आश्‍वासन दिए जाते हैं. पर फिर सभी ढाक के तीन पात साबित होते हैं. सामान्‍य वक्‍त पर नेता और जनप्रतिनिधि इन गलियों में जाने से कतराते हैं. शासन-प्रशासन के अधिकारी भी इन गली-मुहल्‍लों से दूरी ही बनाए रखते हैं. कभी कोई जाता भी है तो महज औपचारिकता निभाने तक ही रहता है.

मशहूर कथाकार काशीनाथ सिंह अपने व्‍यंग्‍य भरे अंदाज में कहते हैं कि 'वेश्या' शब्द रात के अंधेरे में भले ही प्यार के सागर में हिलोरे मारता है पर दिन के उजाले में अपशब्द बन जाता है. यह सांस्‍कृतिक और धार्मिक राजधानी वाराणसी का ऐसा भू-भाग है जहां दिन के उजाले में शायद ही कोई जाना चाहता हो.

यहां की हवा में भूखमरी, शोषण-प्रताड़ना, संसाधनों की बेतहाशा लूट साफ दिखती है. वाराणसी में दिनों दिन व्यावसायिकता का कलेवर चढ़ रहा है. केंद्र और राज्‍य सरकार की विशेष दृष्टि होने से सुधार और विकास भी दिख रहा है. पर शिवदासपुर रेडलाइट एरिया की ना दशा सुधरी और ना ही यहां की वेश्‍याओं के पुर्नवास को लेकर कोई गंभीर प्रयास हुआ.

कुछ समाजसेवी संस्‍थाएं सुधार और पुनर्वास को लेकर आगे तो आईं. लेकिन वास्‍तविक समाधान की बजाए वेश्‍याओं की आजीविका ही छिनी गई है.

एक्जिट पॉइंट नहीं

शिवदासपुर रेडलाइट एरिया में रहने वाली सेक्‍स वर्कर की बेटी किरन कहती हैं कि, मैं भी इस मुल्क और इस वाराणसी की सचाई हूं. इसी रेड लाइट एरिया की पली-बढ़ी हूं. धंधा नहीं करती, पढ़ती हूं. कुछ नया करना चाहती हूं, अफसर बनकर देश की सेवा करना चाहती हूं. रेडलाइट के दूसरे भाई बहनों को भी घिनौने दलदल से बाहर निकालना चाहती हूं. पर सरकार मदद करे और इलाके का विकास करे तभी संभव है.

किरन के मुताबिक रेडलाइट एरिया में रहने वाली ज्‍यादातर लड़कियां जिस्मफरोशी के धंधे में नहीं उतरना चाहती हैं. सलेकिन दूसरा विकल्‍प नहीं होने से अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा है. दरअसल इनकी जिंदगी ऐसी हो गई है कि जिसमें एंट्री पॉइंट तो है, लेकिन फिलहाल एक्जिट पॉइंट नहीं.

सेक्‍स वर्कर शाहिदा खातून कहती हैं कि सत्‍ता में बदलाव होते बहुत देखा पर हमारी जिंदगी में कुछ नहीं बदला. वजह का जिक्र करते हुए कहती हैं कि इलाके में रहने वाली अधिकांश सेक्‍स वर्कर का मतदाता सूची में नाम नहीं है. इसलिए जनप्रतिनिधि भी इस इलाके के विकास को लेकर रुचि नहीं दिखाते.

शाहिदा कहती हैं कि पीएम मोदी के आदेश पर कुछ समाजसेवी संस्‍थाओं ने कुछ सेक्‍स वर्कर्स के बैंक खाते तो खुलवाए पर आज उन खातों में धन नदारद है. धरातल पर देखें तो सेक्‍स वर्कर्स को ना तो मूलभूत सुविधाएं प्राप्त हैं और ना ही उनकी नागरिक भूमिका सक्रिय रूप से बन पायी है. दर्जनों सेक्‍स वर्कर एड्स से पीड़ित हैं, जिनका उपचार भी एक चुनौती है.

शाहिदा पीएम मोदी में भरोसा जताते हुए कहती हैं कि हमें भी रोजगार चाहिए, हम भी वह सुविधाएं और मौका चाहिए जो सबको मिल रहा है.

कहा जाता है कि काशी वक्त को संवेदना में पिरोती है. यथार्थ को ढोती है. संस्कृति, परंपरा और परिवेश से जनमानस को रूबरू कराती है. इन सेक्‍स वर्कर्स को भी उम्‍मीद है कि पीएम हमारे स्याह यथार्थ पर भी नजर डालेंगे. हमारी भी मन की बात सुनेंगे.

फिलहाल बेशुमार दर्द से भरे चेहरे ऐसी दुनिया का आभास कराते हैं, जिनको अगर दो लफ्जों में समेटना चाहो तो वो है 'व्यवस्था की लाचारी.'