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पीएम का राष्ट्र के नाम संदेश: फस्ले खिजां में लुत्फे बहारां के दावे

यह दौर वाकई फस्ले खिजां का है, लेकिन मोदी ने चमन की बातें कुछ अदा से की हैं कि लोगों को यह लुत्फे बहारां का भ्रम करा दे

Mridul Vaibhav

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी के 50 दिन बीतने के बाद नए साल की शुरुआत होने से ठीक पहले जब राष्ट्र के नाम संदेश दे रहे थे तो मैं जहां बैठा था, वहां मुझे तालियों की आवाजें सुनाई दीं. अभी कुछ देर पहले लोग अपनी परेशानियों का जिक्र कर रहे थे और जैसे ही उन्होंने नरेंद्र मोदी का भाषण सुनना शुरू किया, वे ही लोग छोटी-छोटी छूट की बात सुनकर तालियां बजाने लगे.

भाषण जब खत्म हो गया तो सबने एक-दूसरे से जो सवाल पूछने शुरू किए तो उनके पीछे एक हूक भी दिखाई दी. पिछले पचास दिन तक इन लाेगों ने जो दिक्कतें देखी थीं, उनमें से बहुत से प्रश्नों के उत्तर इस राष्ट्र के नाम संदेश में नदारद थे. लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण से जो लोग बेहद प्रसन्न हैं, उनमें एक विजय माल्या भी हैं, जो ट्वीट करके कह रहे हैं कि इस देश को मोदी जी का विजन ही आगे ले जा सकता है और सुधार सकता है.


कुछ ही दिन पहले तक एक वह भी समय था, जब मोदी जी की आवाज भर सुनकर लोगों की आंखों में चमक आ जाती थी और लोग उत्साह से भर उठते थे, लेकिन अब न तो चेहरे वैसे रौशन हैं और न ही उन्हें देखकर जिस्म वैसी जुंबिश भरते हैं. कुछ लोग कह रहे थे कि यह भाषण राष्ट्र के नाम संबोधन जैसा नहीं, बल्कि चुनाव की घोषणा से पहले के भाषणों जैसा है.

सबसे रोचक टिप्पणी उस बुजुर्ग की थी, जो कह रही थी कि काईंया दुकानदार अपना रुख बदलकर अचानक ज्यादा तौलने लगे तो समझो कि वह वाकई किसी बात से या तो दबा हुआ है या फिर आशंकित है. कहां तो आजादी से बाद तक के एक-एक पैसे को निकलवा लेने, सोने-चांदी के गहने तक की सीमा बांध देने और बेनामी जमीनों के ठंडे बस्ते में रखे कानून को निकलवाने की बातें और कहां अचानक हाउसिंग, इंडस्ट्रियल और घर मरम्मत के कर्जों पर ब्याज दरों में छूट का एलान.

आप भले डिमोनेटाइजेशन पर रिपोर्ट कार्ड का अनुमान लगा रहे हों, लेकिन आप जरा उस कार्टून को याद करिए जो वाट्स ऐप पर 31 दिसंबर की दोपहर बाद से वायरल होने लगा, जिसमें दिखाया गया था कि मोदी जी टीवी पर प्रकट होते ही “दो हजार” शब्द भर बोलते हैं और एक मालदार आदमी सोफों से लुढ़कता दिखाई देता है.

लाेगों में एक चर्चा यह भी थी कि मोदी जी 31 दिसंबर को देश के नाम संदेश में शायद दो हजार रुपए का नया नोट भी बदल दें, क्योंकि ज्यादातर काले धन वालों ने सबसे ज्यादा दो हजार के नोट अपने यहां रख लिए हैं और अब मोदी जी उन पर मारकाट मचाएंगे.

आप अगर उसी वक्त विजय माल्या का ट्वीट भी देखें तो उसमें उन्होंने प्रधानमंत्री का लगभग उपहास सा उड़ाते हुए कहा कि पीएम ने कुछ और बैन तो नहीं कर दिया, कर दिया तो कर दिया, लेकिन मुझे क्या फर्क पड़ता है. मैं तो भारत में हूं नहीं.

आप कुछ भी कहें, राजनीतिक विश्लेषक कोई भी विश्लेषण करें और विपक्षी दलों के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर कैसी प्रतिक्रिया दें, नरेंद्र मोदी ने अपना संबोधन बेहद सावधानी से, बेहद कुशलता से, सजग और सचेतन ढंग से और अपने ऊपर उठ रहे सवालों को बड़ी निपुणता से परे करते हुए डिजाइन किया था.

ऐसा लग रहा है, देश में प्रतिपक्ष नाम की चीज ही नहीं है. देश के एक बेहद संजीदा और सजग नेता रहे हैं शरद यादव. यादव किसी टीवी चैनल के रिपोर्टर से कह रहे थे कि वे पहली जनवरी को सुबह जब अखबार छप कर आएंगे तो पढ़कर प्रधानमंत्री के भाषण पर कुछ कहेंगे.

देश के प्रमुख दल कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी, जो माेदी पर पिछले कई दिन से लगातार सवाल उठा रहे थे, वे पूरे परिदृश्य से ही नदारद थे. कमोबेश यही हालत वामदलों की है. ऐसा लग रहा है कि फुटबाॅल का मैच चल रहा है और गेंद अकेले नरेंद्र मोदी ही जहां चाहे वहां ले जा रहे हैं. न उनकी टीम के खिलाड़ी कहीं दिख रहे हैं आैर न प्रतिद्वंद्वी टीम के.

प्रधानमंत्री आम आदमी के अंदर से लेकर पूरे समाज और व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार खत्म करने की बात तो करते हैं, लेकिन ईमानदारी से सफेद धन खर्च करके नैतिक मूल्यों के साथ अपना चुनाव लड़ने का कोई संकल्प नहीं दुहराते. वे राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार से बाहर लाने के लिए “होलिएर दैन दाऊ” का जुमला भर बोलते हैं, लेकिन उनके लिए कोई कानून नहीं बनाते.

वे जयप्रकाश नारायण, दीनदयाल उपाध्याय, राममनोहर लोहिया, के. कामराज, लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम तो लेते हैं, चंपारण आंदोलन की बात तो करते हैं, बार-बार गांधी का नाम तो पुकारते हैं, लेकिन इन सब लोगों ने अपने जीवन में जिस नैतिक पथ के लिए संघर्ष किया, उसे एक विरासत के रूप में अपनाने का साहस नहीं दिखाते.

कुल मिलाकर यह दौर वाकई फस्ले खिजां का है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने चमन की बातें कुछ अदा से की हैं कि लोगों को यह लुत्फे बहारां का भ्रम करा दे तो हैरानी नहीं. यह दिल-शिकनी में दिलदारी का एहसास करा देने का कमाल है.