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बीजपी नेता मीडिया को 'मसाला' देने से कैसे बचें क्योंकि 'जुबां पे लागा नमक सियासत का'

पीएम मोदी ने पार्टी के नेताओं से 'मन की बात' नसीहत के साथ की और गैर जिम्मेदाराना बयानों से बचने को कहा लेकिन

Kinshuk Praval

पीएम मोदी ने बीजेपी नेताओं को गैर जिम्मेदाराना बयान देने से बचने की नसीहत दी है. उन्होंने कहा कि किसी समाज विज्ञानी या फिर विद्वान  की तरह किसी भी मामले में बयान देने से नेता मीडिया को ‘मसाला’ देने का काम कर रहे हैं. जिसके बाद इससे होने वाले विवाद को लेकर मीडिया को जिम्मेदार ठहराना बेतुका है.

मोदी ये जानते हैं कि न्यूज चैनलों में बाइट देने की होड़ में नेता सुर्खियों के लिए जुबान को हथियार बनाने से गुरेज नहीं करते हैं. जाहिर तौर पर राजनीति में विवादित बयान देने वालों की कमी नहीं है. विवादित बयानों के सिलसिले पार्टी दर पार्टी जारी रहते हैं. एक विवाद किसी तरह शांत होता है तो दूसरा गैरजिम्मेदाराना बयान आग में घी का काम कर जाता है. हर पार्टी में जुबां के जांबाज़ और बयान बहादुर मौजूद हैं.


समाजवादी पार्टी में आजम खान किसी भी मौके पर चूकते नहीं हैं. वो पीएम मोदी पर हमला करने में हर सीमा लांघ जाते हैं. कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने की कीमत चुका रहे हैं. एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी राजनीतिक पहचान ही मोदी-विरोध के तौर पर स्थापित की है और वो पीएम मोदी के खिलाफ विवादित बयान देने का ही काम करते हैं.

इसी तरह के बयान बहादुर बीजेपी में भी हैं जो किसी संवेदनशील मसले पर अपने शब्दों पर लगाम नहीं रख पाते हैं जिससे बाद में पार्टी की किरकिरी होती है. मीडिया के लिए ऐसे ही नेताओं का बयान इस वजह से 'मसाला' है क्योंकि सत्ता में मौजूद पार्टी के एक-एक बयान पर मीडिया की पैनी नजर होती है. तभी पीएम मोदी का साफ कहना है कि गैरजिम्मेदाराना बयान से पार्टी की छवि खराब होती है. कई बार नेता मीडिया के सामने ऐसे बयान दे जाते हैं जिसके ‘मसाले’ से विवादों का तूफान खड़ा हो जाता है.

पीएम मोदी ने साफ कर दिया कि जिन लोगों को मुद्दों पर बोलने की जिम्मेदारी दी गई है वो ही लोग बोलेंगे जबकि बाकी लोग टीवी के सामने खड़े होकर हर मुद्दे पर देश को राह दिखाने का काम नहीं करें. मोदी का ये संदेश उन नेताओं के लिए सीधा इशारा है जो जुबानी जंग में किसी भी हद तक उतर जाते हैं. बीजेपी नेता गिरिराज सिंह, योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज और साध्वी निरंजन ज्योति जैसे कई नेता अपने बयानों से कई दफे मीडिया को मसाला दे चुके हैं.

जम्मू-कश्मीर के कठुआ रेपकांड के बाद केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार का बयान विवादास्पद बन चुका है. जब एक तरफ पूरे देश में कठुआ रेपकांड को लेकर एक भावनात्मक उबाल देखने को मिला तो उस धारा के ठीक उलट संतोष गंगवार ने ये कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि ‘इतने बड़े देश में एक दो घटनाएं हो जाएं तो बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए.' गंगवार का ये बयान सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करने के लिए विपक्ष को दिया बड़ा मौका है.

इसी तरह यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी ये कह कर विवाद खड़ा कर दिया था कि वो हिंदू हैं और ईद नहीं मनाते हैं. जबकि मुख्यमंत्री किसी विशेष धर्म या समुदाय का नहीं होता है और उसे राजधर्म का पालन करना पड़ता है. लेकिन योगी का ये बयान न सिर्फ मीडिया बल्कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को भी मसाला दे गया. एक तरफ मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा बुलंद कर रही है तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ अभी भी अपने कट्टर हिंदुत्व के आवरण से बाहर नहीं निकल सके हैं जिससे अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का माहौल पनप सकता है.

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी कई दफे विवादित बयान दे चुके हैं. गिरिराज सिंह के बयान बहुत तेजी से विवादों का रूप लेते हैं. एक बार उन्होंने ये कह कर तूफान खड़ा कर दिया था कि सभी मोदी विरोधियों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए.

इससे पहले उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पर भी नस्लीय टिप्पणी की थी. हालांकि गिरिराज के बयानों को अब मीडिया भी उतनी तवज्जो नहीं देता है लेकिन ऐसे गैर जिम्मेदाराना बयान पार्टी की छवि को खराब करने का काम करते हैं.

दरअसल नेताओं की बदजुबानी पार्टी को बैकफुट पर धकेलने का ही काम करती है. बीजेपी के नेताओं के गैरजिम्मेदाराना बयान विपक्ष को हल्ला-बोल का मौका देने का काम करते हैं. जिस वजह से विवादित बयान कभी बड़ा मुद्दा बनते हैं तो कभी उनकी वजह से संसद में हंगामा भी होता है.

केंद्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजना ज्योति ने भी अपने बयानों से विवाद की लपटें तैयार की थी. दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से प्रचार करते हुए उन्होंने कहा था कि 'आपको तय करना है कि दिल्ली में सरकार रामजादों की बनेगी या ...रामजादों की. यह आपका फैसला है.'

वहीं बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया था. उन्होंने नेपाल में आए भूकंप के लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था. साक्षी महाराज ने कहा था कि राहुल बिना शुद्धिकरण के ही केदारनाथ मंदिर दर्शन के लिए पहुंच गए जिस वजह से नेपाल में भूकंप आ गया.

साक्षी महाराज पर उग्र हिंदुत्व को भड़का कर सांप्रदायिकता को बढ़ाने का आरोप लगता रहा है. एक बार उन्होंने  हिंदुत्व की रक्षा के लिए हिंदू महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने की नसीहत भी दी थी.

इसी तरह बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने रेप की घटनाओं पर विदेशी सोच को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि रेप इंडिया में होते हैं भारत में नहीं. ऐसे बयान जाहिर तौर पर विवादों की पृष्ठभूमि ही तैयार करते आए हैं. जिसके बाद बैकफुट पर गई पार्टी को बयानों से पल्ला झाड़ना पड़ता है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एक साल का वक्त बाकी रह गया है. पीएम मोदी नहीं चाहते हैं कि नेताओं का कोई भी गैर जिम्मेदाराना बयान जनता की भावनाओं को आहत करने और पार्टी के विश्वास को घटाने का काम करे.

दरअसल चौबीस घंटों के न्यूज कवरेज में पूरे देश में किसी भी तरह के विवादास्पद बयान को आम जनता तक पहुंचने में देर नहीं लगती है. किसी भी नेता के गैरजिम्मेदाराना बयान के बाद पार्टी से ही मीडिया सवाल भी पूछता है. हालांकि कई दफे नेता अपने दिए गए बयान से मुकर जाते हैं और विवादों के लिए मीडिया को ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं तो कई दफे मीडिया पर ही बयान को तोड़मरोड़कर पेश करने का आरोप भी मढ़ दिया जाता है.

मोदी अपने नेताओं को भी बखूबी समझते हैं तो मीडिया को भी. तभी उन्होंने सतर्कता बरतते हुए अपने नेताओं से कहा कि वो बयानों के लिए मीडिया को दोष न दें. उन्होंने कहा कि हम अपनी गलतियों से मीडिया को ‘मसाला’ दे रहे हैं और किसी समाज विज्ञानी या विद्वान की तरह हर समस्या का विश्लेषण करना ठीक नहीं है.

मोदी चाहते हैं कि एक तरफ उनकी पार्टी के नेता अपने बयानों में संयम बरतें तो दूसरी तरफ विकास का संकल्प भी लें. तभी उन्होंने नमो ऐप के जरिए पार्टी के बढ़ते जनाधार का भी जिक्र किया. उन्होंने ये बताया कि किस तरह आज बीजेपी में ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय से सबसे अधिक निर्वाचित सांसद हैं और पार्टी की पहुंच देश के कोने कोने तक हो सकी है.

बीजेपी का बढ़ा हुआ जनाधार ही उसकी पूंजी है और मोदी नहीं चाहते कि उस पूंजी पर किसी एक गलती की वजह से आंच आए. तभी उन्होंने पार्टी के नेताओं से सोशल मीडिया के जरिए लोगों से जुड़ने की अपील भी की. साथ ही उन्होंने सांसदों और विधायकों को गांव का विकास करने के लिए अन्ना हजारे के गांव से सीख लेने की भी अपील की. मोदी चाहते हैं कि सांसद और विधायक अपने इलाके में किसानों के विकास में हुए कामों का प्रचार करें.

मोदी ये जानते हैं कि देश भर में बीजेपी को मिले जनसमर्थन से बीजेपी पर जनता की जिम्मेदारियां बढ़ी हैं और ऐसे में गैरजिम्मेदाराना बयाना बेहद घातक साबित हो सकते हैं. तभी सत्ता में आने के चार साल बाद पीएम मोदी को अपने नेताओं के विवादित बयानों को लेकर चुप्पी तोड़नी पड़ी. उन्होंने नमो ऐप के जरिए बीजेपी के सभी नेताओ, सासंदों-विधायकों से ‘मन की बात’ नसीहत के साथ कह डाली. पीएम मोदी की नसीहत उन सभी नेताओं के लिए तजुर्बे से कम नहीं है और ये तजुर्बा साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुत काम आएगा. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि पीएम मोदी की नसीहत के बाद पार्टी के कुछ बयान बहादुर अपनी जुबान पर लगाम कैसे लगा सकेंगे क्योंकि उनकी जुबान पर नमक राजनीति का जो लगा है.