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जवाहरलाल नेहरू का लोकसभा चुनाव क्षेत्र फूलपुर एक बार फिर चर्चा में आएगा

यहां होने वाले उप-चुनाव में बीएसपी अध्यक्ष मायावती के चुनाव लड़ने की संभावना जताई जा रही है

Surendra Kishore

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का चर्चित चुनाव क्षेत्र फूलपुर एक बार फिर चर्चा में आएगा. वहां जल्द ही उप-चुनाव होने वाला है. यदि मायावती वहां से इस बार उप-चुनाव लड़ेंगी तब तो उस क्षेत्र की देशव्यापी चर्चा स्वाभाविक है. ऐसे भी फूलपुर के साथ प्रथम प्रधानमंत्री का नाम जुड़ गया है. दिवंगत नेहरू वहां से तीन बार सांसद चुने गए थे.

1962 में तो नेहरू के खिलाफ डॉ. राम मनोहर लोहिया ने उम्मीदवार बन कर उस क्षेत्र के चुनाव को काफी रोचक और चर्चित बना दिया था. इस बार के उप-चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के वहां से चुनाव लड़ने की संभावना जाहिर की जा रही है. उन्होंने हाल ही में राज्यसभा की अपनी सीट छोड़ दी है.


क्या मायावती गठबंधन की उम्मीदवार बनेंगी ? याद रहे कि गैर एनडीए दल इस कोशिश में हैं कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) मिलकर महागठबंधन बनाएं. यदि ऐसा हो गया तो फूलपुर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए दिशा भी दे सकता है. वैसे ऐसा कोई महागठबंधन बनना आसान नहीं है. हालांकि असंभव भी नहीं. पर एक बात तय है कि मुलायम सिंह यादव के किसी गठबंधन का हिस्सा बनने की उम्मीद नहीं है.

फूलपुर में 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य विजयी हुए थे. मौर्य अब उत्तर प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री हैं. इसी तरह गोरखपुर लोकसभा सीट पर भी उप-चुनाव होगा. वहां से योगी आदित्यनाथ जीते थे. वह मुख्यमंत्री हैं. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के 5 विधानसभा क्षेत्रों में भी उपचुनाव होने वाले हैं.

उप-चुनाव में महागठबंधन के लिए कोई विशेष उम्मीद नहीं

फूलपुर लोकसभा चुनाव क्षेत्र से 2009 में बीएसपी के कपिल मुनी चुनाव जीत गए थे. यानी बीएसपी के लिए वह कोई नया क्षेत्र नहीं है. हालांकि 2014 के फूलपुर के चुनाव नतीजे प्रस्तावित महागठबंधन के लिए कोई विशेष उम्मीद नहीं जगाते.

पिछले चुनाव में फूलपुर में कांग्रेस, बीएसपी और एसपी को मिले मतों का कुल जोड़ भी बीजेपी को मिले मतों से कम था. मौर्य को 5 लाख 3 हजार वोट मिले थे जबकि, इन तीनों दलों के मतों का जोड़ चार लाख 16 हजार था. खैर जो हो, उप-चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही यह पता चल सकेगा कि कैसा गठबंधन बनता है और मतदाताओं का झुकाव किधर रहता है.

वैसे इस चुनाव क्षेत्र के पुराने महत्व को देखते हुए इसके चुनावी इतिहास पर एक नजर डालना दिलचस्प होगा. इस लोकसभा क्षेत्र में उप-चुनाव मिलाकर अब तक करीब डेढ़ दर्जन बार चुनाव हो चुके हैं. पर जवाहरलाल नेहरू का चुनाव क्षेत्र होने के बावजूद सिर्फ छह बार ही कांग्रेस को चुनावी सफलता मिल सकी है. 1952 और 1957 के चुनावों में कोई राजनीतिक उत्तेजना नहीं थी. पर जब 1962 में समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया नेहरू के खिलाफ फूलपुर में उम्मीदवार बने तो दूसरे देशों में भी वह चुनाव चर्चित हुआ.

यूपी का फूलपुर क्षेत्र जवाहर लाल नेहरू का चर्चित लोकसभा सीट रहा है

डॉ. लोहिया पहले समाजवादी युवक रजनीकांत वर्मा को फूलपुर से उम्मीदवार बनाना चाहते थे. पर अनेक लोगों की मांग पर खुद डॉ. लोहिया उम्मीदवार बन गए. नेहरू को हराना तो मुश्किल था पर डॉ. लोहिया को पांच में से दो विधानसभा क्षेत्रों में नेहरू से अधिक वोट मिले. यही बड़ी बात है.

चुनाव नतीजे आने के बाद डॉ. लोहिया ने कहा था कि ‘नेहरू को मैं हरा तो नहीं सका, पर यथास्थितिवाद की चट्टान में दरार जरूर कर डाला. ’याद रहे कि पांच विधान सभा क्षेत्रों को मिलाकर फूलपुर लोकसभा क्षेत्र बना है. उससे पहले 1957 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने गौवध को मुद्दा बना कर नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ा था. तब जनसंघ ने भी शिवाधार पांडेय को खड़ा किया था. पर नेहरू की चुनावी सेहत पर उसका कोई असर नहीं पड़ा.

तब नेहरू देश के हृदय सम्राट् कहे जाते थे

नेहरू के 1964 में निधन के बाद हुए उप-चुनाव में विजय लक्ष्मी पंडित फूलपुर से विजयी हुईं. विजय लक्ष्मी पंडित जवाहर लाल की बहन थीं. 1967 के चुनाव में भी विजय लक्ष्मी पंडित विजयी हुईं. पर अपनी भतीजी यानी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मतभेद के कारण कार्यकाल के बीच में ही लोकसभा की सदस्यता से उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उप-चुनाव हुआ, जिसमें दिग्गज कांग्रेसी केशव देव मालवीय और समाजवादी युवा नेता जनेश्वर मिश्र के बीच चुनावी मुकाबला हुआ.

‘छोटे लोहिया’ के नाम से चर्चित जनेश्वर जीत गए. 1971 में फूलपुर से विश्वनाथ प्रताप सिंह जीते. पर 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर कमला बहुगुणा विजयी हुईं. कमला जी हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी थीं. बाद के चुनावों में कोई खास बात नहीं रही. इस बार यदि मायावती पूरे प्रतिपक्ष की ओर से उम्मीदवार बनीं तो खास बात जरूर होगी. साथ ही उस चुनाव नतीजे से आगे की राजनीति भी प्रभावित हो सकती है.