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अलवर हत्या मामला: तस्कर भी हुए तो क्या गौ-रक्षक उसे मार देंगे!

मामले को ऐसे पेश किया जा रहा है मानों अगर वो गौ तस्कर थे तो उनकी हत्या की ज्यादा परवाह करने की जरूरत नहीं है

Akshaya Mishra

निगरानी किसी भी रूप में और किसी भी बहाने से स्वीकार करने लायक नहीं है बस बात खत्म. इसको माफ करने का मतलब जनहित के मुखौटे के पीछे अपराध में लिप्त लोगों या समूहों को मौखिक या स्पष्ट सहायता प्रदान करना है.

इसका ये भी मतलब है कि राज्य प्रशासन ऐसे शरारती तत्वों के लिए जगह बना रहा है जो कानून व्यवस्था और प्रशासन की जरा भी परवाह नहीं करते हैं.


इसलिए जब राजस्थान और केंद्र सरकार एक ऐसी घटना को लेकर भ्रमित हो रही है जिसमे गौ-निगरानी वालों के हाथों एक व्यक्ति की हत्या हुई है तो ये चिंता की बात हो जाती है.

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने विपक्ष के आरोप पर जवाब देते हुए राज्यसभा में कहा, 'जैसा बताया जा रहा है ऐसी कोई घटना नहीं हुई है....' विपक्ष का आरोप था कि राजस्थान के अलवर जिले में गौ-निगरानी वालों के हाथों पहलू खान नामक एक डेरी मालिक की हत्या हुई है.'

उन्होंने कहा, 'प्रदेश सरकार ने इस घटना पर मीडिया की रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया है. इस बीच राज्य सरकार ने कहा कि जो बताया जा रहा है और जो हुआ है दोनों अलग-अलग बातें हैं.

मीडिया में रिपोर्ट की गई घटना का संक्षिप्त विवरण यहां दिया गया है. पहलू और उसके चार साथियों ने जयपुर मेले में गाय खरीदीं और शनिवार को हरियाणा वापस जाने के समय गौ-संरक्षकों के एक गिरोह ने अलवर में बेहरर के पास उन्हें पकड़ लिया.

गाय दूध के लिए खरीदी गईं थीं...इस बात को जाहिर करने वाले दस्तावेजों के दिखाने पर भी उनको पीटा गया. बाद में पहलू घावों को सह नहीं पाया और चल बसा. इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया जिससे कई हलकों में शिकायत की आवाजें आने लगीं.

पहलू खां को अलवर में बीच सड़क में गौरक्षकों ने बुरी तरह से पीटा था्

अलग-अलग कहानियां

अब जो बात सीधे तौर पर सामने आई वो एक हत्या की कहानी कहती है और इसके दो रूप हैं- एक मीडिया का और एक सरकार के दो ढांचों का. राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने दोनों पक्षों पर दोष जड़ दिया है.

उनकी सरकार ने संतुलन का एक खूबसूरत प्रदर्शन किया और जैसा वे फरमाते हैं उन्होंने दोनों पक्षों को कटघरे में खड़ा किया है. पहलू और उसके साथियों के खिलाफ गायों की तस्करी का मामला और हमलावरों के खिलाफ गाय ले जाने वालों को पीटने का मामला दर्ज किया गया है.

राज्यसभा के उपसभापति पी.जे. कुरियन ने आज कहा कि इस घटना की दो अलग-अलग कहानियां सामने आ रही हैं. उन्होंने सरकार से सारे मामले की जांच करके सदन को सूचित करने को कहा है.

गौर से देखें तो आपको दो अलग-अलग मुद्दे दिखाई देंगे जो राजस्थान सरकार के दृष्टिकोण में नजर आएगा. एक मनुष्य हत्याकांड है और दूसरा मवेशियों की तस्करी है – और इन दोनो में से ही कोई सबूत अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है.

हत्या के मामले को कम करके इसको पीटने के मामले में तब्दील करके जो संदेश जा रहा है वो साफ तौर पर ये है कि अगर यह गाय तस्करी का मामला है तब इसके विरोध में एक आदमी की हत्या करना इतना बड़ा अपराध नहीं है.

अगर पुलिस की जांच ये पता करने में कामयाब हो जाये कि 'पहलू' और उसके साथी वास्तव में मवेशियों की तस्करी में लगे थे तब तो हमले को नैतिक रूप से उचित माना जाएगा.

रात में निगरानी करता हुआ गौ-रक्षकों का दल

हत्या का लाइसेंस

एक तरह से इस का मतलब इन निगरानी समूहों को हत्या का लाइसेंस देना है. जब तक उनके पास किसी पर हमला करने की कोई वजह है वो बड़ी आजादी से हमला कर सकते हैं. अगर इसमें हत्या करना और हाथ-पैर काटना भी शामिल है तो वो भी चलेगा.

अपराधियों पर सरकार की नजर रहेगी. राज्य सरकार से इस मामले में सबसे अच्छी प्रतिक्रिया यही हो सकती है कि वो इस हत्या और तस्करी के पहलुओं को अलग-अलग तरीके से देखे.

ऐसे मामलों पर मिला-जुला रुख रख कर ये भावी ताकतें एक डरावना संदेश दे रही हैं. सरकार ने कानून की रखवाली का काम इन निगरानी समूहों को आउटसोर्स कर दिया है और ये निगरानी कार्यकर्ता फटाफट वाले न्यायाधीश बन कर फैसला दे देते हैं और फैसले को तुरंत ही लागू भी कर देते हैं और बाद में सिर्फ अपनी खानापूर्ति की खातिर पुलिस भी पधार जाती है.

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इस बात में कोई शक नहीं है कि ये लोकतंत्र के साथ एक मजाक है जहां संस्थानों को व्यक्ति की रक्षा के लिए निष्पक्ष रूप से हस्तक्षेप करना होता है.

लेकिन, ऐसे निगरानीवाद के प्रति सहानुभूति रखने वालों को सावधान रहना चाहिए. इन समूहों के कई सदस्य अपराधी हैं. मुस्लिमों जैसे आसान लक्ष्य को निपटाने के बाद आखिरकार वे उन लोगों के ही खिलाफ खड़े हो जाएंगे जो आज गुप्त रूप से उनका समर्थन कर रहे हैं.

इसकी वजह ढूंढना आसान नहीं होगा. यह भारतीय संस्कृति की रक्षा या कुछ उस तरह की ही बात हो सकती है. इस तरह के समूहों की आलोचना के बारे में सरकार को अपना नजरिया साफ रखना चाहिए. सरकार के सतर्क बयान बता देते हैं कि वो डरी हुई है.