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जम्मू-कश्मीर की राजनीति: बड़ी उथलपुथल लेकर आ सकता है तीसरा मोर्चा

खबर है कि पीडीपी के ऐसे तमाम विधायक, जो अभी पार्टी से जुड़े हैं, वे भी राज्य में अगले चुनावों तक अलग हो सकते हैं. ऐसा होना नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुकाबले पीडीपी के लिए ज्यादा बड़ी समस्या बनेगा

Sameer Yasir

बीजेपी-पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद जम्मू-कश्मीर में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट थी. माना जा रहा था कि तीसरा मोर्चा बीजेपी की मदद कर सकता है, जिससे दो रीजनल पार्टियों की मदद के बगैर सरकार बन सके. लेकिन अब यह संभव नहीं दिख रहा. अब बीजेपी के बजाय तीसरे मोर्चे के पक्ष में संभावनाएं जा रही हैं.

मंगलवार को पीडीपी के संस्थापक सदस्यों में एक मुजफ्फर हुसैन बेग ने पार्टी को झटका दिया. उन्होंने बीजेपी के सहयोगी सज्जाद गनी लोन के पक्ष में आकर राज्य की मुश्किलों में फंसी राजनीति के भीतर नए चैप्टर की शुरुआत करने के संकेत दिए.


आखिर कौन हैं ये बेग?

72 साल के बेग राजनीति के धुरंधर हैं. उन्होंने यह कहकर लोगों को चौंका दिया कि वे तीसरा मोर्चा जॉइन करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते यह जम्मू-कश्मीर में राजनीति का ताकतवर मोर्चा बन सके. उत्तरी कश्मीर से सांसद बेग को पीडीपी के तत्कालीन प्रमुख स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद ने हाशिए पर डाल दिया था.  स्वर्गीय मुफ्ती ने यह कदम बेटी महबूबा मुफ्ती के कहने पर उठाया था. यह बात पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार के वक्त की है.

जम्मू-कश्मीर के उप मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री रह चुके बेग ने कहा, ‘पीपुल्स कॉन्फ्रेंस मेरे लिए घर जैसी है. मेरे लिए सज्जाद लोन बेटे की तरह है. अगर सज्जाद को लगता है कि तीसरा मोर्चा बनना चाहिए, तो इस बात पर विचार की जरूरत है. सज्जाद को प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि लोग कुछ नए की तलाश में हैं.’

कौन है BJP का आदमी?

लोन को कश्मीर में बीजेपी का आदमी कहा जाता है. वह घाटी के राजनीतिक कैनवास पर नई तस्वीर बना रहे हैं. उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस से अलग हुए युवा नेता जुनैद मट्टू के जरिए श्रीनगर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (SMC) में शासन कर रही है. SMC में ताकतवर होना पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के लिए घाटी के दिल यानी श्रीनगर में प्रवेश को दिखाता है.

अगर सब कुछ सही तरीके से शक्ल अख्तियार करता है, तो तीसरा मोर्चा घाटी के तीन इलाकों में चुनावी विभाजन के बीच उनकी पार्टी को और मजबूती देगा. विश्लेषकों का मानना है कि इससे गैर पारंपरिक पार्टियों यानी नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से अलग मुख्यमंत्री मिल सकता है. इसके लिए बीजेपी का साथ मिल सकता है. बशर्ते बीजेपी अगले इलेक्शन के बाद भी जम्मू क्षेत्र में अपनी ताकत बरकरार रखे. इस वक्त बीजेपी ही जम्मू म्यूनिसिपल काउंसिल में शासन कर रही है.

आखिर कौन हैं लोन?

51 साल के लोन हंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. उन्हें सोशल मीडिया पर लगातार निशाने पर लिया जाता है. इसकी वजह उनका बीजेपी के साथ होना है. वो अचानक मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनकर उभरे हैं. बीजेपी महासचिव राम माधव के साथ उनके मजबूत रिश्ते हैं. इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी उनके रिश्ते अच्छे होना उनके लिए मौके बेहतर करता है.

पीपल्स कॉन्फ्रेंस के लीडर सज्जाद लोन

बेग की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद लोन ने तुरंत ही प्रतिक्रिया दी. उम्मीद जताई कि कानूनविद और पीडीपी के मजबूत स्तंभ का साथ उन्हें मिलेगा.

लोन ने ट्विटर के जरिए कहा, ‘मैं मुजफ्फर बेग साहब के बयान से बेहद खुश और उनका शुक्रगुजार हूं. उनके जैसे कद, अनुभव और समझ वाले शख्स का आना तीसरे मोर्चे के उभरने में निर्णायक साबित हो सकता है. मेरे बचपन में वो मेरे लिए पसंदीदा अंकल थे. मुझे उन्होंने बहुत सिर चढ़ाकर रखा था.

बेग एक समय पूर्व अलगाववादी नेता अब्दुल गनी लोन के करीबी थे. लोन की 21 मई 2002 के दिन श्रीनगर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उस रोज मीरवाइज उमर फारूक के पिता मीरवाइज मोहम्मद फारूक की पुण्यतिथि थी. अगर बेग पीपुल्स कॉन्फ्रेंस से जुड़ते हैं, तो लोन उत्तरी कश्मीर में उस राजनीतिक ब्लॉक को पुनर्जीवित कर सकते हैं, जिसे अब्दुल गनी ने 1978 में बसाया था. उस वक्त गनी ने ताकतवर शिया मौलवी इफ्तिखार हुसैन अंसारी के साथ मिलकर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस शुरू की थी.

कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है. पीडीपी में उस वक्त एक तरह की राजनीतिक सुनामी आई थी, जब उसके पांच विधायकों और एक एमएलसी ने पार्टी से बगावत कर दी थी. इनमें मौलवी अंसारी के बेटे इमरान अंसारी और इमरान के अंकल आबिद अंसारी शामिल थे. इमरान और लोन बहुत अच्छे दोस्त हैं. इमरान बड़े बिजनेसमैन हैं, जिनका उत्तरी कश्मीर की कम से कम चार विधानसभा सीटों के शिया वोटर्स पर खासा असर है. इन जगहों पर शिया वोटर्स की अच्छी खासी तादाद है.

PDP को जोर का झटका!

ऐसी भी रिपोर्ट्स हैं कि पीडीपी के ऐसे तमाम विधायक, जो अभी पार्टी से जुड़े हैं, वे भी राज्य में अगले चुनावों तक अलग हो सकते हैं. ऐसा होना नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुकाबले पीडीपी के लिए ज्यादा बड़ी समस्या बनेगा. राज्य में जब भी अगले चुनाव होते हैं, तब पीडीपी को लेकर वोटर्स की नाराजगी उभर कर सामने आ सकती है.

पिछले चुनाव के बाद पार्टी ने रणनीतिक बदलाव करते हुए बीजेपी से गठबंधन किया था. इससे उसे अपने गढ़ में भारी नुकसान होगा. दक्षिण कश्मीर में ऐसे ही घूमने से अंदाजा हो जाता है कि पार्टी के साथ क्या होने वाला है. यहां पर मंगलवार को हुए पंचायत चुनाव में 1.1 फीसद वोटिंग हुई है.

इस वक्त पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के पास जम्मू-कश्मीर की 87 में महज दो सीटें हैं. अगले चुनाव के संभावित दृश्य को देखिए. अगर लोन हंदवाड़ से, उनके दूसरे विधायक बशीर अहमद कुपवाड़ा से सीट बरकरार रखते हैं. बेग बारामूला से, इमरान रजा अंसारी पट्टन से, मोहम्मद अब्बास वानी गुलमर्ग से, इंजीनियर रशीद लंगेट से जीतते हैं और बाकी चार सदस्य एंटी इनकंबेंसी के चलते राजनीतिक राजशाही के खिलाफ चुनाव जीतते हैं, तो पीपुल्स कॉन्फ्रेंस उत्तरी कश्मीर में बड़े हिस्से के साथ चुनाव के बाद उभर कर आ सकती है.