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PU छात्रसंघ चुनाव से निकली 'चिंगारी' कहीं BJP और JDU के लिए 'शोला' न बन जाए

युवाओं के बीच राजनीतिक जमीन बनाने में छात्रसंघ का चुनाव फलदायक मौसम समझा जाता है. पीयू छात्रसंघ चुनाव के इतिहास में पहली बार एक कैलेंडर ईयर में दूसरी बार चुनाव हुआ

Kanhaiya Bhelari

पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव ने बीजेपी और जेडी(यू) को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है. दोनो मित्रों की ओर से एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. रहस्य की बात यह है कि अगली कतार के नेता इस वाक-युद्ध से ‘दूरी’ बनाए हुए हैं और शांत करने के लिए पहल भी नहीं कर रहे हैं. आपसी लड़ाई के घर्षण से निकल रही चिंगारी चुनावी साल में कहीं शोला न बन जाए.

ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में दोनों राजनीतिक दल के दर्जन भर नेता और प्रवक्ता एक दूसरे के खिलाफ कई प्रकार के गंभीर आरोप एक दूसरे के खिलाफ लगाने में कोताही नहीं कर रहे हैं. दोनों एक दूसरे के लिए ठीक वैसे ही सियासी दुश्मन हैं जैसे जून 2013 से लेकर जुलाई 2017 के कालखंड में हुआ करते थे. जेडी(यू) कोटे के एक मंत्री ने बताया कि ‘हमलोग पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का वेट कर रहे हैं. इसके बाद बीजपी के हिसाब किताब करेंगे.’


छात्र संगठानों का समर्थन भी एबीवीपी को मिल रहा है

आकार लेते ‘दुश्मनी’ का तत्कालिक कारण है पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव. अध्यक्ष पद पर करारी हार के अलावा चुनाव में खराब पदर्शन से बौखलाई बीजेपी और इसकी छात्र विंग एबीवीपी नेताओं ने अपरोक्ष रूप से सीएम नीतीश कुमार तथा परोक्ष तौर पर पीयू प्रशासन पर चुनाव में धांधली का खुलेआम आरोप लगाया है और जांच की मांग उठाई है. जांच की मांग को लेकर एबीवीपी का प्रतिनिधिमंडल आज कुलाधिपति महामहिम लालजी टंडन से राजभवन में मुलाकत करके उनको ज्ञापन सौंपा है.

बातचीत में प्रतिनिधिमंडल के नेता ने कहा कि ‘हमने कुलाधिपति महोदय को धांधली के बारे में विस्तार से बताया. हम अपेक्षा रखते हैं कि वो कुलपति को निर्देश दें कि 9 सूत्री मांग पत्र को गंभीरता से लेते हुए उसमें उठाए गए सवालों का जल्द जवाब दें.

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‘एबीवीपी के नेताओं का कहना है कि कुलपति बताएं कि मतदान में शामिल छात्र, छपाए गए मतपत्र, मतदान में प्रयुक्त मतपत्र, रद मतपत्र की संख्या, मतदान के नियम में अचानक परिवर्तन किस आधार पर किया गया? महिला कॉलेज में मतदान करने वाली छात्राओं के हस्ताक्षर पुस्तिका की जांच की जाए. कांउटिंग हाल में प्रतिनिधियों के प्रवेश पर रोक क्यों लगी? मतदान प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की घोषणा को अमल में क्यों नहीं लाया गया? एबीवीपी ने धमकी दी है कि अगर उनके द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब समय पर नहीं मिला तो वे आंदोलन करने को बाध्य हो जाएंगे. इस मुद्दे पर कांग्रेस, आरजेडी और वामपंथी विचारधारा के छात्र संगठानों का समर्थन भी एबीवीपी को मिल रहा है. इन संगठनों के नेताओं ने प्रेस सम्मेलन करके धांधली का आरोप लगाया और जांच की मांग की है.

बीजेपी के वरीय महासचिव राजेंद्र सिंह ने एबीवीपी की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि ‘पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में छात्र जेडी(यू) के प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए किसी के इशारे पर आचार संहिता का उलंघन किया गया है.’ फोन पर हुई बातचीत में सिंह ने कुलपति से सवालिया लहजे में पूछा कि ‘जब आचार संहिता लागू थी तब कुलपति ने प्रशांत किशोर को अपने घर बुलाकर क्यों बात की? अगर किशोर बिना बुलाए उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होनें मिलने से इनकार क्यों नहीं किया? कुलपति को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए?’

प्रशांत किशोर के साथ बिहार के सीएम नीतीश कुमार

प्रशांत किशोर ने अपने टास्क को पूरा करने के लिए सबसे पहले पीयू को चुना

दूसरी तरफ जेडी(यू) के प्रधान प्रवक्ता और पूर्व एमएलसी संजय सिंह का कहना है कि ‘अगर हम धांधली कराते तो पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ की सारी सीट जीत जाते. एबीवीपी या फिर दूसरे छात्र संगठनों के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ते. चुनाव बिल्कुल साफ हुआ है.’ संजय सिंह के अनुसार एबीवीपी के नेतागण ये जानकर परेशान हैं कि जेडी(यू) नीतीश कुमार के नेतृत्व में धीरे-धीरे शहरी क्षेत्रों में भी मजूबत हो रहा है.

दरअसल जेडी(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर के ऊपर जिम्मेवारी सौंपी है कि वो युवाओं के बीच काम करें. फ्रेस चेहरों को पार्टी में लाएं. जाहिर तौर पर यूनिवर्सिटी में नए चेहरों का जन्म होता है. इसलिए प्रशांत किशोर ने अपने टास्क को पूरा करने के लिए सबसे पहले पीयू को चुना क्योंकि यहां चुनाव हो रहा है.

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युवाओं के बीच राजनीतिक जमीन बनाने में छात्रसंघ का चुनाव फलदायक मौसम समझा जाता है. पीयू छात्रसंघ चुनाव के इतिहास में पहली बार एक कैलेंडर ईयर में दूसरी बार चुनाव हुआ है. इससे पहले फरवरी में चुनाव हुआ था. प्रशांत किशोर को साबित करना था कि वाकई वो एक सफल राजनीतिक रणनीतिकार हैं. छात्रसंघ चुनाव का परिणाम ने साबित भी कर दिया कि ‘पीके ईज अनबिटेबल.’

एबीवीपी कुनबे से निकले बागी सदस्य 

एबीवीपी के साथ ही आएसएस और बीजेपी के कई नेता पीयू डिफिट को क्यों नहीं डाईजेस्ट कर पा रहे हैं? इसका मूल कारण है कि पीयू का चुनावी इतिहास में प्रारम्भ काल से ही भगवा परचम लहराता रहा है. जेपी मूवमेंट के दौर मे एबीवीपी के सुशील कुमार मोदी महासचिव थे. 1974 के छात्रसंघ चुनाव में लालू यादव अध्यक्ष पद का चुनाव एबीवीपी के सहयोग से ही जीते थे. लंबे अंतराल के बाद 2012 में चुनाव हुआ तो भी अध्यक्ष पद पर एबीवीपी ने कब्जा किया. फरवरी 2018 के चुनाव में अध्यक्ष पद छोड़कर बाकी पर एबीवीपी ने बाजी मारी थी. अध्यक्ष दिव्यांश भारद्वाज भी एबीवीपी कुनबे से निकले बागी सदस्य थे.

जेडी(यू) नेतृत्व को पता था कि झंडा बुलंद करने के क्रम में उनकी भिड़ंत एबीवीपी से होगी. प्रशांत किशोर ने इस विषय पर नीतीश कुमार से बातचीत की और सिगनल मिलने के बाद कार्यवाई शुरू कर दी. पहली बार जेडी(यू) इतनी तादात में पीयू छात्रसंघ के चुनाव में जीत दर्ज की है. इसके पहले 2012 में हुए छात्रसंघ चुनाव में सचिव पद पर छात्र जेडी(यू) की अनुप्रिया ने जीता था.

बहारहाल, राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा है कि सीएम नीतीश कुमार ने बीजेपी नेतृत्व से प्रपोज किया है कि पटना साहेब या पाटलिपुत्र लोकसभा सीट में कोई एक सीट उनको दी जाए. लेकिन बीजेपी की तरफ से कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पीयू छात्रसंघ की दमदार और धमाकेदार जीत नीतीश कुमार के दावे को मजबूत करने का काम करेगी और बीजेपी के भीतर वैसे लोगों की बोलती बंद करने में सहायक होगी जो कहते हैं कि जेडी(यू) का पटना में कोई जनाधार नहीं है.