पटना हाईकोर्ट ने नीतीश कुमार की सरकार को बड़ी राहत दी है. हाईकोर्ट ने जेडीयू के बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार के गठन को चुनौती देने वाली दो जनहित याचिकाएं खारिज कर दी हैं.
सोमवार को चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस ए के उपाध्याय की खंडपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद जनहित याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दी कि विधानसभा में बहुत परीक्षण के बाद कोर्ट के दखल देने की जरूरत नहीं है. आरजेडी के विधायकों सरोज यादव और चंदन वर्मा ने एक याचिका और समाजवादी पार्टी (एसपी) के सदस्य जितेंद्र कुमार ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में अलग से एक याचिका दायर की थी.
हाईकोर्ट ने बीते शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए टाल दी थी. बिहार की नवगठित नीतीश सरकार ने बीते शुक्रवार को सदन में विश्वासमत हासिल कर लिया था.
दोनों जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उसे खारिज करने से पहले खंडपीठ इस निर्णय पर पहुंचा कि विधानसभा में बहुमत परीक्षण के बाद अदालत के दखल की आवश्यकता नहीं है.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने मामले की सुनवाई के दौरान दलील पेश किया कि सरकार बनाने के लिए सबसे बडे दल (आरजेडी) को मौका नहीं देकर गवर्नर ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अवहेलना की है. ऐसे में नई सरकार द्वारा पद और गोपनीयता की शपथ लिये जाने को रद्द किया जाना चाहिए.
मामले में बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर ने सरकार का पक्ष रखा. जबकि वाई वी गिरी ने राज्यपाल के अधिवक्ता और एसडी संजय ने केंद्र सरकार के वकील के तौर पर प्रतिनिधित्व किया.
गिरी ने दलील पेश करते हुए कहा कि एक बार विधानसभा में बहुमत साबित हो जाता है तो फिर कुछ भी नहीं बचता. उन्होंने कहा कि नई सरकार ने 131 विधायकों के समर्थन की सूची सौंपी थी जिसे उसने सदन में भी साबित कर दिया.
हाईकोर्ट के इस निर्णय का बिहार सरकार में हिस्सेदार और एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी ने स्वागत किया है.