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मांझी के दबाव के बाद NDA से कुशवाहा हो सकते हैं अलग

अगर 2015 विधानसभा चुनाव की बात करें तो मांझी अकेले ऐसा चेहरा हैं, जो 'हम' से जीत दर्ज करने में सफल रहे थे

Alok Kumar

राजस्थान में हुए उपचुनाव के रिजल्ट का असर बिहार की राजनीति पर भी दिखने लगा है. बिहार में विधानसभा चुनाव 2020 में होने हैं, लेकिन अभी से ही एनडीए के सभी सहयोगी दल बीजेपी पर अधिक से अधिक सीटों के लिए दबाव बनाने लगी है.

केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) हो या फिर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) जैसे छोटे दल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ आने के बाद से ही गठबंधन में अपनी जगह को लेकर सतर्क हो गए हैं.


मांझी चाहते हैं 50 सीटें

अब राजस्थान जैसे एक बड़े राज्य में बीजेपी को कमजोर होता देख जीतन राम मांझी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बिहार के 243 सदस्यीय विधानसभा में 50 सीटों पर अपना दावा ठोक दिया है. न्यूज 18 से बात करते हुए मांझी ने कहा, 'हमारी पार्टी बिहार में कम से कम 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. इससे कम में हम अपने समर्थकों के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे.' इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह राज्य में दो उपमुख्यमंत्री पद के पक्षधर हैं, जिनमें एक दलित और एक मुसलमान हो.

अगर 2015 विधानसभा चुनाव की बात करें तो मांझी अकेले ऐसा चेहरा हैं, जो 'हम' से जीत दर्ज करने में सफल रहे थे. मांझी ने हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद उनकी तारीफ की थी और बाद में उन्हें महागठबंधन में शामिल होने का उन्हें न्यौता मिला. इसके बाद एनडीए खेमा ने दलित नेता के प्रति अपनी आस्था दिखाई और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी बुलेट प्रूफ गाड़ी उन्हें भेंट कर दी.

नीतीश-कुशवाहा की पुरानी तकरार

मांझी के अलावा एनडीए के दूसरे सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा भी गठबंधन में मजबूत सीट शेयरिंग को लेकर दावेदारी ठोक रहे हैं. सत्ताधारी जेडीयू के साथ मनमुटाव उस समय देखने को मिला जब उन्होंने बिहार सरकार की शिक्षा नीति के खिलाफ मानव श्रृंखला का आयोजन किया. इसके बाद दोनों ही पार्टी के नेताओं के बीच जुबानी वार-पलटवार भी देखने को मिला. मामला यहां तक पहुंच गया कि हाल ही में रोलासपा में शामिल हुए नागमणि ने अलग होने की धमकी दे दी थी.

कुशवाहा और नीतीश कुमार के बीच तकरार भी पुरानी है, लेकिन जेडीयू का एनडीए में वापसी के बाद ऐसा लगने लगा था कि सब ठीक हो गया है. इसके बावजूद कि नीतीश कैबिनेट में रालोसपा के एक भी विधायक को जगह नहीं मिली. लेकिन अब ऐसे लगने लगा है कि कुशवाहा और उनकी पार्टी के नेता यह जताने लगे हैं कि उनके बिना बिहार में किसी की भी सरकार नहीं बन सकती है. रालोसपा के नेता उपेंद्र कुशवाहा को बिहार के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने लगे हैं.

गौरतलब है कि उपेंद्र कुशवाहा सहित लोकसभा में रालोसपा के तीन सांसद हैं, जिनमें सीतामढ़ी से राम कुमार शर्मा और जहानाबाद से अरुण कुमार शामिल हैं. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कुशवाहा एनडीए के पक्ष में कोयरी जाति का वोट एनडीए के पक्ष में लाने में असफल हुए थे, जो कि महागठबंधन के पक्ष में चला गया.

NDA संग बने रहने पर कुशवाहा का चुप्पी

नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी के बाद ऐसा लगने लगा है कि रालोसपा की इच्छा के मुतिबाक उसे सीट नहीं दी जाएगी. जब उपेंद्र कुशवाहा से अगले लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इसके बारे में कुछ भी अभी कहना अभी बुद्धिमानी नहीं होगी.

बिहार के 40 में से 31 लोकसभा सीट पर अभी एनडीए का कब्जा है, इसमें 2014 में अकेले चुनाव लड़ने वाले जेडीयू की सीटें शामिल नहीं है. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जेडीयू के साथ भी सीट बंटवारा करना पड़ेगा. ऐसे में मांझी और कुशवाहा जैसे सहयोगियों को नजरअंदाज करना जोखिम भरा कदम हो सकता है.

इधर राजद लगातार आनंद मोहन और पप्पू यादव जैसे क्षत्रपों को आक्रमक तरीके से अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है और साथ ही जेडीयू से नाराज़ चल रहे खेमे (जिसका नेतृत्व शरद यादव कर रहे हैं) के साथ संभावित गठबंधन एनडीए के छोटे हिस्सेदारों के लिए अपनी दावेदारी पेश करने के लिए एक प्लेटफॉर्म बन सकती है.

आरएलएसपी के सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही कुशवाहा एनडीए से अपना नाता तोड़ लेंगे. लेकिन बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, कुशवाहा चाहते हैं कि बीजेपी उसे एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाए, जिससे वह सहानुभूति वोट पा सकें. लेकिन बीजेपी और जेडीयू कुशवाहा को कोई भी मौका देने के मूड में नहीं है.

नीतीश कुमार के करीबी नेता के मुताबिक, 'जेडीयू और बीजेपी का नेतृत्व कुशवाहा के इस चाल से भलीभांति वाकिफ है. कुशवाहा को भी पता है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में रालोसपा को सिर्फ एक ही सीट पर लड़ने का मौका मिलेगा. उनके पास एनडीए छोड़ने के अलावा कोई भी रास्ता नहीं बचा है, लेकिन इसके साथ ही वह अपना मंत्री पद भी नहीं छोड़ना चाहते हैं. इसलिए लोकसभा चुनाव से दो या तीन महीना पहले कुशवाहा एनडीए छोड़ सकते हैं.'