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'बेफिक्रे' नेता और बेबस जनता

मौजूदा सत्र के केवल 3 दिन बाकी और नेता मस्त - जनता त्रस्त

Amitesh

नोटबंदी को एक महीना हो गया है. लेकिन अपना पैसा निकालने की कतार में कमी नहीं आई है. परेशानियां का एक महीना एटीएम और बैंक की खाक छानने में गुजर गया लेकिन राहत की 'वैन' दिखाई नहीं दे रही है. प्रधानमंत्री ने 50 दिनों का वक्त मांगा है लेकिन एक महीने में ही जनता त्रस्त हो गई है. इसके बावजूद जनता धीरज से काम ले रही है और हालात सुधरने की आस लगाए बैठी है.

लेकिन जनता के नुमाइंदे शायद अभी भी सब्र का इम्तिहान लेने में लगे हैं. अगर ऐसा न होता तो नेता नोटबंदी पर जनता की परेशानी पर चर्चा के बजाए इस कदर हंगामे में न उलझ गए होते कि सदन ही ठप पड़ जाए. यह हाल तब है जब राष्ट्रपति ने भी सदन की कार्यवाही न चलने पर अपनी नाराजगी जताई है.


मौजूदा सत्र के केवल 3 दिन बाकी 

अगले हफ्ते तक संसद का सत्र चलने वाला है. लेकिन सोमवार और मंगलवार को अवकाश के चलते सदन की कार्यवाही बुधवार 14 दिसंबर को ही शुरु हो पाएगी. यानी लगातार चार दिन की छुट्टी और उसके बाद 16 दिसंबर को शीतकालीन सत्र खत्म हो रहा है. ऐसे में मौजूदा सत्र में महज तीन दिन का ही वक्त बचा है.

सरकार और विपक्ष के एक-दूसरे पर वार के चलते न सरकार और न ही विपक्ष किसी गंभीर चर्चा की तरफ बढ़ते दिख रहे हैं. एक-दूसरे पर सदन न चलने देने का आरोप मढ़ने में लगे हैं.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पूरे सत्र में कमान अपने हाथों में ले रखी है.राहुल को लगता है इस बार नोटबंदी पर जनता की दुखती रग को पकड़कर वो अपने-आप को मजबूत कर सकते हैं. राहुल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बड़ा हमला किया है. राहुल ने कहा, 'जब वो संसद में बोलेंगे तो भूचाल आ जाएगा.'

राहुल ने आरोप लगाया कि मैं गरीबों के दिल की बात कहना चाहता हूं, लेकिन, सदन में उन्हें बोलने से रोका जा रहा है. आखिरकार सरकार चर्चा से घबरा क्यों रही है.

लेकिन, दूसरी तरफ सरकार की तरफ से भी पलटवार किया जा रहा है. संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने सदन की कार्यवाही न चलने देने के लिए कांग्रेस. टीएमसी समेत विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया है. सरकार का आरोप है कि जनता के पैसे की बर्बादी के लिए विपक्ष जिम्मेदार है.

बहस की आस हुई बेकार 

सुबह जब विपक्षी दलों के नेता लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मिले थे तो ऐसे कयास लगाए गए कि अब सदन में चर्चा हो पाएगी. दरअसल गतिरोध खत्म होने की उम्मीद इसलिए जगी थी क्योंकि विपक्ष ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया था. विपक्ष को लग रहा था कि सदन के भीतर चर्चा नहीं होने से उसे अपनी बात कहने का मौका नहीं मिल पा रहा है. बाहर विपक्ष को लेकर गलत संदेश जा रहा है जिससे उसका नुकसान हो रहा है. जबकि प्रधानमंत्री मोदी सदन के बाहर अलग-अलग फोरम से अपनी बात रख कर विपक्ष पर निशाना साधे जा रहे हैं और विपक्ष के हाथ से पीएम को घेरने का मौका हाथ से निकलता जा रहा है.

रणनीति में हुआ बदलाव 

तकरीबन 3 सप्ताह के हंगामे के बाद सरकार ने अपनी रणनीति में बदलाव किया. सरकार ने तेवर कड़े करते हुए सदन नहीं चलने देने के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा दिया. अब सरकार विपक्ष से माफी की मांग कर रही है.दरअसल सरकार के रणनीतिकारों को इस बात का अंदेशा है कि विपक्ष लोकसभा के भीतर भी वही रणनीति अपना सकता है जो कि राज्यसभा में रही. इसलिए सरकार अब इस पूरे मामले में विपक्ष से इस बात का भरोसा चाहती है कि अगर चर्चा शुरू हुई तो चर्चा पूरी करनी होगी और प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को भी अपनी बात रखने का मौका मिले.

बुधवार को हो सकेगी बहस ?

अगर चर्चा हुई तो प्रधानमंत्री बुधवार को सदन में नोटबंदी पर अपनी बात रख सकते हैं. संसद के शीतकालीन सत्र के आगाज के वक्त से ही जिस बात का अंदेशा लग रहा था. अब वह सच साबित होता दिख रहा है. नोटबंदी पर हंगामे ने शीतकालीन सत्र को पूरी तरह ठप कर दिया है. लोग कतारों में खड़े परेशान हैं, लेकिन, उनकी परेशानी की किसे सुध. सब अपनी-अपनी डफली बजाने में लगे हैं. जनता त्रस्त, नेता मस्त.....