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पाकिस्तान ने मोदी को समझने में भूल कर दी

नरम संदेश के पीछे की सख्ती को पाकिस्तानी हुक्मरान समझ नहीं पाए.

Amitesh

'जंग बहुत कर ली, ना जमीन मिली ना जन्नत…'

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 महीने पहले रायविंड पैलेस में यह बात कही थी.


पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके भाई शाबाज शरीफ उस वक्त इसका मतलब नहीं समझ सके थे.

शरीफ बंधुओं ने मोदी के इन अल्फाजों को महज उर्दू शायरी समझ कर नजरअंदाज कर दिया था.

लेकिन, 11 महीने बाद शरीफ के कानों में यह शायरी गूंज रही होगी.

भारत के नेताओं को पाकिस्तान अभी तक हल्के में लेता रहा है. शायद मोदी की शायरी को हल्के में लेकर इस बार पाकिस्तान ने गलती कर दी.

 मोदी को जानने वाले यह समझते हैं कि उनकी बातें सिर्फ खुश करने भर के लिए नहीं होतीं.

मोदी  के शायराना और मजाकिया लहजे में भी गंभीरता होती है. पाकिस्तान यह समझ नहीं सका. 

पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी मोदी चुप हैं. यह चुप्पी इस बात का इशारा है कि मोदी सधे अंदाज में काम कर रहे हैं.  उनका ध्यान टारगेट पर है.

किसी को नहीं थी भनक

यहां तक कि सर्जिकल स्ट्राइक से पहले जिनसे (आला मंत्री तक) उन्होंने मुलाकात की उनको भी इसकी भनक नहीं थी.

कोझीकोड में मोदी का भाषण देश की जनता को एक संदेश था. साथ ही इसमें दुनिया के लिए भी एक मेसेज छिपा था.

 रैली में मोदी ने पाकिस्तान को गरीबी और निरक्षरता के खिलाफ हजार साल तक लड़ने के लिए ललकारा

पार्टी कार्यकर्ताओं से देश के मुसलमानों को अपनाने की अपील भी की. मोदी समझते हैं कि युद्ध के माहौल में देश के हिंदु-मुसलमानों के रिश्तों में सावधानी बरतने की जरूरत है.

यही वजह है कि सजगता और सावधानी से मोदी ने घरेलू और रणनीतिक मोर्चे पर सधी चाल चली है.

26 जुलाई 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट के वक्त भी कुछ ऐसा ही माहौल था. इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों के सीरियल ब्लास्ट में 60 लोग मारे गए थे.

पुलिस कमिश्नर की सलाह को दरकिनार कर मोदी ने घटने की जगह का दौरा किया. अस्पताल जाकर हालात का जायजा भी लिया.

कहा नहीं, करके दिखाया 

इसके बावजूद मुख्यमंत्री मोदी ने कुछ बोला नहीं बल्कि करके दिखाया. खुफिया ब्यूरो के साथ मिलकर गुजरात पुलिस ने देश भर में कार्रवाई की.

इस गुप्त कार्रवाई का खुलासा तब हुआ जब यूपी की उस वक्त की मुख्यमंत्री मायावती ने आजमगढ़ से पकडे़ आतंकियों को गुजरात पुलिस को नहीं सौंपा.

मोदी के करीबी उनके काम करने के तरीके से वाकिफ हैं. पठानकोट हमले के बाद से ही मोदी ने सख्त रुख अपना लिया है।

उन्होंने विदेश मंत्रालय को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बेनकाब करने की खुली छूट दे रखी थी.

दूसरी तरफ, भारतीय खुफिया एजेंसियों और गृह-मंत्रालय की आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तानी जांच टीम को भारत आने दिया गया.

यहां तक कि इस टीम ने पठानकोट तक का दौरा किया. लेकिन, पाकिस्तान ने भारत के इस नजरिए को पहले की तरह ही हल्के में ले लिया.

पठानकोट हमले के बाद जब उड़ी हमला हुआ तो भारत का नजरिया अलग रहा. भारत ने इस बार सावधानी से अपनी रणनीति को अंजाम दिया.

मोदी ने ट्वीट के जरिए देश की जनता को भरोसा दिलाया कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.

इस बार पाकिस्तान से जांच में किसी तरह की मदद की बात सामने नहीं आई. मोदी के दिमाग में कोई उलझन नहीं थी.

गृह मंत्री राजनाथ सिंह को आंतरिक सुरक्षा और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की जिम्मेदारी दी गई.

असल कमान प्रधानमंत्री ने अपने हाथों में रखी थी. पाकिस्तान की इस नापाक हरकत का कैसे जवाब दिया जाए इस पर फोकस किया गया.

25 दिसंबर 2015 को रायविंड पैलेस में मोदी का संदेश इस बात का इशारा था कि पाकिस्तान को लेकर उनका नजरिया क्या है.

लेकिन, दुर्भाग्यवश शरीफ बंधु और पाकिस्तान के हुक्मरान इस नरम संदेश के पीछे की सख्ती को भांप नहीं पाए.