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खूंटी पर टंगा लोकतंत्र, अधिकार के नाम पर हो-हल्ला

कहानी के दुखद अंत की तरह विधानसभा के सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ रहे हैं.

Shivaji Rai

संसद की कहानी विधानसभाओं में भी दोहराई जाने लगी है. विधानसभा में भी हो-हल्‍ला, हंगामा और फिर बहिष्‍कार रोजमर्रा की कहानी हो गई है. कहानी के दुखद अंत की तरह विधानसभा के सत्र भी हंगामें की भेंट चढ़ रहे हैं. पिछले 11 जुलाई से यूपी विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है.कई अहम मुद्दों पर विधानसभा में चर्चा होनी है. कई अहम बिल पास होने हैं. लेकिन विपक्षी विधायकों के बहिर्गमन के चलते अभी तक के परिणाम ढाक के तीन पात जैसे ही हैं.

विपक्ष ने पिछले गुरुवार को विधानसभा में एक नया इतिहास ही रच दिया. समूचा विपक्ष सरकार पर सदन में न बोलने देने का आरोप लगाकर  सदन की पूरी कार्यवाही से खुद को अलग कर गया और नतीजा यह हुआ कि बिना विपक्ष के ही सरकार ने सदन में सारी कार्यवाही पूरी की.साथ ही कई विभागों का बजट भी पारित किया.


दरअसल बजट पर चर्चा के दौरान अपने संबोधन में सीएम योगी ने विपक्ष पर टिप्पणी की थी. योगी आदित्यनाथ की तल्ख टिप्पणी से नाराज विपक्ष ने सदन के बहिष्कार का मूड बना लिया. विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने विपक्ष की नाराजगी दूर करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें विपक्ष का कोई नेता शामिल नहीं हुआ. संसदीय कार्यमंत्री ने भी फोन पर नेता प्रतिपक्ष से बात करने की कोशिश की पर कोई नतीजा नहीं निकला.

गुरुवार को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी के साथ समूचा विपक्ष यह कहते हुए सदन से बाहर हो गया कि 'जब हम सदन में कोई बात कह नहीं सकते तो सदन में रहने का कोई मतलब नहीं है...'

लोकतंत्र में विरोध और बहिर्गमन कभी नकारात्मकता के प्रतीक नहीं रहे लेकिन बजट और अहम प्रस्तावों के दौरान बिना बड़ी वजह सदन की कार्यवाही से खुद को अलग रखना अगंभीरता को दर्शाता है. विपक्ष की गैरमौजूदगी में ही कृषि, लोक निर्माण विभाग, औद्योगिक विकास खादी ग्रामोद्योग सहित कई विभागों के बजट पारित करा लिये गए और विपक्ष की तरफ से एक कटौती प्रस्ताव भी नहीं रखा गया.

विधान सभा में आये दिन क्रिकेट के मैदान जैसा नजारा देखने को मिल रहा है. पिछले दिनों राज्यपाल राम नाईक को समवेत दोनों सदनों को दिए गये अभिभाषण को पढ़कर सुनाना था. अभिभाषण के दौरान राज्यपाल पर कागज फेंके गए. इतना हंगामा हुआ कि कोई अभिभाषण को सुन तक नहीं पाया. ऐसा नहीं कि इसकी शुरुआत आजकल हुई है.

बात उत्तर प्रदेश विधानसभा की भी करें तो हंगामा और बहिष्कार को लेकर इसका भी इतिहास पुराना है. उत्तर प्रदेश की 13वीं विधानसभा देश के प्रजातांत्रिक इतिहास के कुछ ऐसे कारनामों की गवाह रही है जिन्हें शायद लोग भुलाना ही पसंद करेंगे. दौर ऐसा भी रहा कि विधायकों ने शक्तिप्रदर्शन शब्द को शाब्दिक तौर पर ले लिया और विधानसभा में ही विधायकों के बीच जम कर लात-घूंसे और माइक चले. जनता ने इस शर्मनाक घटना को टीवी पर देखा.

समय-समय पर इस तरह के बहिष्कार की आलोचना भी हुई. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने चिंता जताते हुए कहा कि ‘इससे जनता में हमारी छवि धूमिल होती है’. राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने व्यवधान पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सभी पक्षों से आत्मविश्लेषण का आहवान किया. पीएम मोदी ने भी कहा कि लोकसभा और विधानसभा में बेवजह बहिष्कार की प्रथा बंद होनी चाहिए. सभी को चर्चा में भाग लेना चाहिए ताकि समस्याओं का समाधान निकल सके..लेकिन नतीजा शून्य रहा.

कई मंचों पर यह तक बात उठी कि अनावश्यक वॉकआउट करने वाले सदस्यों का डेली अलाउंस बंद होना चाहिए. सदन से वॉकआउट की कोई बड़ी वजह होनी चाहिए. हर छोटी बात पर वॉकआउट तर्कसंगत नहीं है. डेली अलाउंस और सदन की कार्यवाही में खर्च हो रहे पैसे को दरकिनार भी कर दिया जाय तो भी इसे किसी भी सन्दर्भ से स्वस्थ परम्परा नहीं कहा जा सकता है. लिहाजा लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और विपक्ष के अधिकार के नाम की आड़ में फैल रही इस बीमारी का इलाज जरुरी है.