view all

नोटबंदी पर आर-पार के मूड में सरकार, जारी रहेगी तकरार

संसद में नोटबंदी को लेकर विपक्ष बहस से ज्यादा हंगामा करने के मूड में दिख रहा है.

Amitesh

वोटों की फसल सबको काटनी है. किसी को नोटबंदी के नाम पर तो किसी को नोटबंदी के साइड इफेक्टस पर मरहम लगाकर. कोई किसी से पीछे रहे भी तो क्यों. सच में समाधान कम सियासत चमकाने की सोच ज्यादा दिख रही है.

सियासी फायदे का जतन है हंगामा


संसद से लेकर सड़क तक संग्राम लोगों के लिए है या अपने सियासी फायदे के लिए ये सवाल तो उठना लाजिमी है. अगर परेशानी लोगों के लिए होती तो शायद सदन में चर्चा हो जाती. लेकिन, अपने फायदे की बात है तो फिर चर्चा क्यों, फायदा तो हंगामा कर बढ़त बनाने में है.

कोई किसी से कम नहीं है. सब अपने-अपने तरीके से वोटबंदी में सब जुटे हैं. देश के सबसे बड़े सूबे में चुनाव होना है तो तकलीफें कुछ ज्यादा ही दिख रही हैं. आम जनता का हमदर्द बनने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता.

लोकतंत्र के मंदिर की तरफ सबकी नजरें हैं, शायद लाइन में खड़े लोगों को राहत मिल जाए. लेकिन, इस मंदिर में  सब आपस में उलझे हुए हैं. कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता. बीजेपी हो या विपक्ष सबकी कोशिश है आक्रामक दिखने की.  

बीजेपी भी अटैक के मूड में

बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी करते हुए सदन में रक्षात्मक के बजाए आक्रामक रूख रखने का फरमान जारी कर दिया है.

इसकी एक बानगी शुक्रवार को सदन के भीतर देखने को मिली जब बीजेपी सदस्यों ने भी सदन के भीतर हंगामा शुरू कर दिया. उनके निशाने पर हैं राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद.

बीजेपी का कहना है कि, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने नोटबंदी के बाद बैंको और एटीएम की कतारों में लगे लोगों की मौत की तुलना उरी हमले के शहीदों से कर दी थी. आजाद को अपने बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए.

बीजेपी की तरफ से यह मुद्दा लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में उठाया गया.

सूचना और प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने पूछा, आजाद बताएं कि उनका बयान निजी बयान है या कांग्रेस पार्टी की लाइन है ?"

इस पर कांग्रेस की तरफ से आजाद का बचाव किया जा रहा है. राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने आजाद का बचाव करते हुए कहा, "आजाद ने बैंकों में खड़े लोगों की तुलना उरी हमले के शहीद से नहीं की है."

पीएम के जवाब से कम कुछ भी मंजूर नहीं

कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों की तरफ से प्रधानमंत्री से नोटबंदी पर बयान की मांग की जा रही है. विपक्ष की तरफ से लोकसभा में नियम 56 की तरफ से चर्चा की मांग की गई है जिसमें सरकार को घेरा जा सके. लेकिन, सरकार नियम 193 के तहत चर्चा चाहती है जिसमें केवल चर्चा हो, वोटिंग नहीं.

सरकार की तरफ से साफ कर दिया गया है कि प्रधानमंत्री इस मसले पर चर्चा में भाग नहीं लेंगे. प्रधानमंत्री जरूरत पड़ने पर ही बहस में हस्तक्षेप करते हैं. वेंकैया नायडू ने कांग्रेस पर वार करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू के बयान की याद दिलाई है. नायडू ने कहा नेहरू ने कहा था कि सवाल का जवाब संबंधित मंत्री देंगे.  

सरकार का कहना है कि पब्लिक ओपिनियन कांग्रेस के खिलाफ है. कांग्रेस ने अपने रूख में यू-टर्न लेकर अब जेपीसी और पीएम के बयान की मांग कर रही है. लेकिन, जवाब पीएम नहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली देंगे.

व्यापक बहस चाहती है सरकार

सूत्र बताते हैं कि, सरकार चाहती है कि नोटबंदी पर चर्चा हो तो ना केवल लोगों को होने वाली परेशानी तक सीमित रखा जाए, बल्कि, इसका दायरा बड़ा किया जाए जिसमें पिछले 70 साल के इतिहास को खंगाल कर कांग्रेस को घेरा जाए.

दरअसल सरकार की रणनीति है कि कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को इस मसले पर घेरा जाए कि अबतक के अपने कार्यकाल में आपने कुछ भी नहीं किया. इसलिए सरकार इस पर लंबी और व्यापक बहस चाहती है.

सूत्रों के मुताबिक, सरकार की रणनीति में सदन के भीतर यह दिखाना है कि कैसे इस बड़े और साहसिक फैसले से जाली नोटों का कारोबार और तस्करी करने वालों की कमर टूट गई है. साथ ही आतंकवाद और नक्सलवाद पर भी गहरी चोट पहुंची है. गृह-मंत्री राजनाथ सिह अगले हफ्ते इस बाबत संसद में बयान देने वाले हैं.

लेकिन, विपक्ष संतुष्ट नहीं है, उसे जवाब चाहिए पीएम से जिनके फैसले से आम लोग परेशान हैं. फिलहाल सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति के आसार कम ही दिख रहे हैं.