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राज्यसभा में समय की बर्बादी पर जदयू सांसद का विपक्ष पर हमला

हरिवंश ने फर्स्टपोस्ट के जरिए उच्च सदन में विपक्ष के व्यवहार को देश के जनता से जुड़े मुद्दों के साथ धोखा बताया.

FP Staff

जदयू सासंद हरिवंश ने राज्यसभा में होने वाले हंगामे के लिए विपक्ष को आड़े हाथों लिया है. हरिवंश ने फर्स्टपोस्ट के जरिए उच्च सदन में विपक्ष के व्यवहार को देश के जनता से जुड़े मुद्दों के साथ धोखा बताया.

उन्होंने अपने लेख में कहा कि राज्यसभा के गलियारे में वो पूर्व सभापतियों डॉ.एस राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन और आर.वेंकटरमण जैसे महान नेताओं की तस्वीरें देखते हैं. यहां उच्च सदन के सदस्य रहे अटल बिहारी वाजपेयी और चंद्रशेखर जैसे वक्ता भी रहे.


इन सदस्यों की बहसें जानकारी और ज्ञान से भरपूर होती थी. हरिवंश ने लिखा है कि कैसे संसद की वैचारिक बहसों ने हजारों लोगों को देश के लिए सपने देखने और उन मूल्यों के लिए खड़े होने को प्रेरित किया.

खासकर चालू सत्र के दौरान जिस तरह से राज्यसभा का वक्त बर्बाद किया गया वह भी जनता के पैसे की बर्बादी है. हरिवंश लिखते हैं कि,’ एक दिसंबर (शीतकालीन सत्र का 15वां दिन) तक सदन में कोई काम नहीं हुआ है. सिर्फ पहले दिन राज्यसभा में नोटबंदी पर अच्छी बहस हुई थी. उसके बाद नियमित अवरोध, अव्यवस्था और तेज आवाज में नारेबाजी के कारण सदन पूरी तरह शोरशराबे की नजर हो गया है. लगातार हंगामे और शोरशराबे के कारण सदन की कार्यवाही रोक दी जाती है और दुख की बात है कि लगातार ऐसा हो रहा है. मैं खुद से पूछता हूं कि जनता, राज्यों और राष्ट्र की वास्तविक शिकायतों से निपटने के लिए क्या हमारे पास यही इकलौता रास्ता बचा है?’

राज्यसभा का महत्व

हरिवंश ने अपने लेख में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हवाले से भारतीय लोकतंत्र में राज्यसभा के महत्व को बताया है. उन्होंने पूर्व सभापति कृष्णकांत की किताब ‘इमरजेंस ऑफ सेकंड चैंबर इन इंडिया’ का भी उल्लेख किया.

जनता दल यूनाईटेड से राज्य सभा सदस्य हरिवंश पुराने पत्रकार हैं.

इस किताब में कृष्णकांत ने लिखा है, ‘'राज्यों की परिषद (राज्यसभा) में बहुमत-अल्पमत दलीय समीकरण लोकसभा के मुकाबले कहीं धीमी गति से बदलते हैं. ऐसे भी अवसर हो सकते हैं जब दोनों सदनों में बहुमत रखने वाली पार्टी चुनाव के दौरान निचले सदन में अल्पमत में आ जाए, लेकिन राज्यसभा में वह बहुमत में बनी रहे. कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यह स्थिति ठीक नहीं है क्योंकि यह जनादेश के सिद्धांत मुताबिक नहीं है. यह सिद्धांत एक निश्चिति समय पर जीतने वाले बहुमत को उस जनादेश के अनुसार कानून बनाने का बेरोकटोक अधिकार देता है. इस तरह ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी का बहुमत होना नियम के विरुद्ध प्रावधान है. इसका यह भी खतरा है कि ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी अपने बहुमत का इस्तेमाल उस समय की सरकार को परेशान करने के लिए कर सकती है.'

अपने लेख में हरिवंश ने बताया कि पहले हमारे नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि गतिरोधों के दौरान राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता आमराय बनाने में मदद करेंगे. राज्यसभा से उम्मीद की गई थी कि यहां महत्वपूर्ण मुद्दों पर गरिमामयी बहस होंगी. ऐसे कानून जो जल्दबाजी में बनाए जाते हैं, उनमें विलंब बोगा. ऐसा होने से कानून के लागू होने पर हर पहलू पर चर्चा हो सकेगी. लेकिन आज इसका उलट हो रहा है.

हरिवंश ने फर्स्टपोस्ट में उपसभापति पीजे कुरियन की तारीफी करते हुए कहा कि वो सदस्यों से शांतिपूर्ण चर्चा का आग्रह करते हैं. लेकिन नारेबाजी और अफरातफरी का महौल खत्म नहीं होता.

हरिवंश ने देश के लिए जरुरी मुद्दों पर चर्चा न किए जाने से दुखी हैं. उनका मानना है जनता और देश के लिए जुड़े मसलों पर बात होनी चाहिए. राज्यसभा की व्यवस्था जिस विचार के साथ बनाई गई थी, उसे पालन नहीं हो रहा है.