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'पश्चिम बंगाल में TMC ने की पंचायत चुनाव में लोकतंत्र की हत्या'

सीपीएम, सीपीआई, फारवर्ड ब्लॉक और सीपीआई-एमएल के नेताओं ने संवाददाताओं को बताया कि राज्य चुनाव आयोग और स्थानीय पुलिस पूरी तरह से राज्य सरकार की कठपुतली बनकर काम कर रहे हैं

Bhasha

वामदलों ने पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा को सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा प्रायोजित बताते हुए इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया.

सीपीएम, सीपीआई, फारवर्ड ब्लॉक और सीपीआई-एमएल के नेताओं ने संवाददाताओं को बताया कि राज्य चुनाव आयोग और स्थानीय पुलिस पूरी तरह से राज्य सरकार की कठपुतली बनकर काम कर रहे हैं. परिणामस्वरूप टीएमसी कार्यकर्ता विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को नामांकन ही नहीं करने दे रहे हैं.


सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि यह सिर्फ वाम दलों की ही शिकायत नहीं है, बल्कि कांग्रेस और बीजेपी को भी राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी. वहीं चुनाव में हिस्सा ले रहे राज्य के सभी 17 वाम दलों ने राज्य निर्वाचन आयोग के समक्ष शुक्रवार को विशाल धरना प्रदर्शन भी किया है.

अब तक 200 लोग हिंसा में घायल

येचुरी ने कहा कि चुनावी हिंसा में पांच अप्रैल तक 200 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं. उम्मीदवारों को नामांकन नहीं करने देने के आरोप के कारण चुनाव आयोग ने नामांकन की अंतिम तिथि को 9 अप्रैल से एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया है. उन्होंने इस अवधि को और अधिक बढ़ाने की मांग की जिससे नामांकन नहीं कर पाए उम्मीदवारों को इसके लिए अतिरिक्त समय मिल सके.

सीपीआई नेता डी राजा ने पंचायत चुनाव को लोकतांत्रिक प्रणाली का मूल आधार बताते हुए कहा कि स्थानीय निकाय स्तर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाना लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है. उन्होंने कहा कि राज्य में टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा अन्य दलों के उम्मीदवारों को नामांकन नहीं करने की बाकायदा उद्घोषणा कर खुली चेतावनी दी जा रही है.

पश्चिम बंगाल के दौरे से लौटी सीपीआई एमएल की कविता कृष्णन ने कहा कि राज्य में सभी वामदलों के दफ्तरों पर हमले कर आतंक का माहौल बनाया गया है. बीजेपी द्वारा केंद्रीय सुरक्षा बलों की निगरानी में चुनाव कराने की मांग के सवाल पर वाम नेताओं ने कहा ‘हमारी मांग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने की है, यह जिम्मेदारी किसी भी सुरक्षा एजेंसी के पास क्यों न हो. वैसे केंद्रीय बलों की निगरानी में स्थानीय चुनाव कराना लोकतंत्र के लिए बेहतर संकेत नहीं है.’