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राहुल की गलतबयानी के चलते उनसे मिलने से हिचकेंगे दूसरे देशों के नेता

राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर जिस तरह भाषण दिया वो किसी सी-ग्रेड बॉलीवुड फिल्म से ज्यादा कुछ नहीं था, यानी उनके भाषण में तथ्य के बिना सारे मसाले थे. उन्होंने राफेल सौदे और डोकलाम जैसे गंभीर मुद्दों पर बिना किसी तथ्य के टिप्पणी की.

FP Staff

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी शुक्रवार को लोकसभा में एक और अहम टेस्ट में नाकाम रहे. उन्होंने ठीक ही स्वीकार किया कि उन्हें 'पप्पू' कहा जाता है. लाखों भारतीयों ने शुक्रवार को अपनी टीवी स्क्रीन पर देखा कि 'पप्पू फेल हो गया'. कांग्रेस को अगर मैदान पर टिके रहना है तो उन्हें अपने नेतृत्व में बदलाव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.

राहुल गांधी ने जिस तरह अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण दिया वो किसी सी-ग्रेड बॉलीवुड फिल्म से ज्यादा कुछ नहीं था, यानी उनके भाषण में तथ्य के बिना सारे मसाले थे. उन्होंने राफेल सौदे और डोकलाम जैसे गंभीर मुद्दों पर बिना किसी तथ्य के टिप्पणी की.


राहुल के भाषण के कुछ ही घंटे बाद फ्रांस की सरकार ने आधिकारिक तौर पर उनके तथ्यों को नकार दिया. भाषण के दौरान राहुल ने ये बताने की कोशिश की कि उन्हें फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के दावे के विपरीत बताया था कि दोनों देशों के बीच ऐसा कोई समझौता नहीं है. लोकसभा में गलत तथ्य रख कर उन्होंने खुद अपनी पार्टी को शर्मिंदा कर दिया.

शर्मींदगी से बचने के लिए राहुल ने फ्रांसीसी सरकार के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा "अगर वे इससे इनकार करना चाहते हैं तो कर सकते हैं. वो (फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन) ने मेरे सामने ये बातें कही. मैं वहां था, आनंद शर्मा और डॉ मनमोहन सिंह भी वहां थे.''

आनंद शर्मा और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अब इस मुद्दे पर सफाई देनी होगी. अब भविष्य में राहुल गांधी के अजीबो-गरीब बयान के चलते कोई भी विदेशी गणमान्य व्यक्ति उनसे बातचीत करने से कतराएंगे.

डोकलाम मुद्दे पर मोदी सरकार की कूटनीति की सराहना की गई है. दुनिया भर में ये हर वेबसाइट पर मौजूद है, कोई भी इसे देख सकता है, लेकिन इस बारे में या तो राहुल गांधी को कोई जानकारी नहीं थी या फिर उनकी रिसर्च टीम ने गलत वेबसाइटों की रिपोर्ट उन्हें दे दी. लिहाजा उन्हें हंसी का पात्र बनना पड़ा.

राहुल ने राजनीतिक बहस में भारतीय सेना को घसीटने की कोशिश की. जिस तरह से उन्होंने सेना का मजाक उड़ाया इससे साफ ज़ाहिर होता है कि उन्हें इस बात की समझ नहीं है कि कैसे देश के पवित्र संस्थानों का सम्मान किया जाता है. उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक को 'जुमला' स्ट्राइक कह कर मज़ाक उड़ाया.

लोगों का ध्यान खींचने के लिए राहुल ने अपने भाषण में बार-बार इस 'जुमला' स्ट्राइक का इस्तेमाल किया. इससे पहले किसी नेता ने संसद में इस तरह भारतीय सेना का मज़ाक नहीं उड़ाया था.

असल में लोकतंत्र के पवित्र संस्थान में मज़ाक उड़ाना उनके भाषण का मुख्य आधार था. उन्होंने संसदीय बहस के सभी मानदंडों का साफ तौर पर उल्लंघन किया. राहुल ने प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के खिलाफ बिना किसी दस्तावेज और सबूतों के आरोप लगा दिए. उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष और उनके बेटे के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगा दिए. जबकि वे सदन में मौजूद नहीं थे. लिहाजा लोकसभा अध्यक्ष को उनकी कुछ टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाना पड़ा.

राहुल ने बेरोजगारी के आंकड़े भी गलत पेश किए. इसके बाद उनकी सबसे बड़ी हरकत का ज़िक्र करना जरूरी है. प्रधानमंत्री को गले लगाना और फिर अपने सहयोगी को आंख मारना.

'गले लगाना और 'आंख मारना' उनकी ये दो हरकतें लंबे समय तक कांग्रेस को परेशान करेंगी. इससे ये साफ होता है कि गांधी परिवार के राजकुमार संसद का इस्तेमाल अपने अभिनय के लिए कर रहे थे और वो खुद क्या बोल रहे थे इसके बारे में वो गंभीर नहीं थे.

कल तक राहुल 'हगप्लोमेसी' (Hugplomacy) यानी गले लगाना के सबसे मुखर आलोचक थे. इस शब्द का ईज़ाद खुद राहुल की टीम ने किया है. इस शब्द से वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते थे. दरअसल मोदी विदेशी राज्यों के प्रमुखों को गले लगाने के लिए जाने जाते हैं. भाषण के अंत में खुद राहुल ने प्रधानमंत्री को गले लगा लिया.

भाषण के बाद जिस तरह से उन्होंने अपने सहयोगी को आंख मारी, उससे साफ हो गया कि वो न तो अपने भाषण और न ही संसद में अपने कामों को लेकर गंभीर थे.

हालांकि एक बात की क्रेडिट राहुल को जरूर मिलनी चाहिए. उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि वो एक 'पप्पू' है, लेकिन उन्होंने ये गलत कहा कि मोदी या बीजेपी उनसे नफरत करते हैं. उन्हें ये जानकर खुश होना चाहिए कि कोई भी उनसे नफरत नहीं करता है. उन्हें सिर्फ इस बात की चिंता होनी चाहिए कि कोई भी उसे गंभीरता से नहीं लेता है और अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण के बाद उसने ये सुनिश्चित किया है ऐसा करने कि किसी को हिम्मत भी नहीं करनी चाहिए.

(न्यूज़18 के लिए अरुण आनंद/लेखक इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के सीईओ हैं. इसके साथ ही इन्होंने 'नो अबाउट आरएसएस' नाम की किताब भी लिखी है. लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं)