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अब सुनना नहीं सिर्फ बोलना जानते हैं केजरीवाल

कहा जाता है कि अमानतुल्लाह बढ़े हुए मनोबल के पीछे भी अरविंद केजरीवाल का अपरोक्ष समर्थन है.

FP Staff

आम आदमी पार्टी की 5वीं राष्ट्रीय परिषद की बैठक पार्टी के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. पार्टी की भावी रणनीति इस बैठक में तय होनी है. देशभर से पार्टी के अहम नेता आए हैं. सामान्य तौर पर किसी भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ऐसी बैठकें बहुत महत्वपूर्ण होती है. बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सभी शीर्ष नेता मौजूद रहते हैं. यहां तक कि पीएम मोदी पूरे समय इस बैठक में मौजूद रहते हैं लेकिन आम आदमी पार्टी की बैठक में गुरुवार का नजारा इस मामले में बिल्कुल अगल रहा.

दिल्ली के सीएम और पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का भाषण शाम साढ़े चार बजे तय हुआ था. अरविंद केजरीवाल बस अपने भाषण से थोड़ी ही देर पहले बैठक में पहुंचे. पार्टी की इस अहम बैठक में ये उम्मीद की जा रही थी कि अरविंद केजरीवाल पूरे समय इसमें मौजूद रहेंगे. लेकिन शायद सीएम बनने के बाद अब केजरीवाल के पास पार्टी के दूसरे नेताओं को सुनने का समय नहीं बचा है. प्रचंड बहुमत ने उन्हें यह एहसास करा दिया है कि वो पार्टी की सर्वसत्ता हैं.


क्यों बिगड़ी बात?

ऐसी खबरें आ रही हैं कि बैठक में देशभर से आए सदस्यों के बीच केजरीवाल के इस रवैये को लेकर बातचीत जारी है. शायद नेताओं को ये भरोसा नहीं हो पा रहा है कि जो नेता महज दो साल पहले तक उनके बीच रहा करता था आज पार्टी की वार्षिक अहम बैठक में उसे सिर्फ खुद के भाषण के लिए आने की फुर्सत मिली.

बैठक के दौरान एक दूसरी दिलचस्प घटना ये घटी कि मनीष सिसोदिया जब बोल रहे थे तो लोगों के बीच से कुमार विश्वास को लेकर कुछ हूटिंग हुई. बैठक से पहले कुमार के वक्ताओं की सूची में नाम न होने का का मामला तूल तो पकड़ ही चुका है.

श्रोता चाहते थे कि विश्वास बोलें 

बैठक में भी लोगों ने इसके लिए कुछ बोला तो मनीष सिसोदिया ने लोगों से पूछ लिया कि कितने लोग चाहते हैं कि कुमार विश्वास बोलें? तकरीबन 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कुमार विश्वास को मंच से बोलना चाहिए. उस वक्त कुमार मंच से नीचे कुर्सियों पर बैठे हुए थे. मनीष सिसोदिया ने कुमार विश्वास से कहा कि आप आइए और बोलिए तो कुमार ने जवाब दिया आप बोलिए मुझे जब बोलना होगा तब बोलूंगा.

बैठक के दौरान भी ये कुमार विश्वास को किनारे किए जाने की तल्खी साफ दिखाई दे रही थी. दबी जुबान में ये बात लोगों के बीच चल रही है कि अमानतुल्लाह की वजह से पार्टी के एक पुराने नेता क्यों किनारे किया जा रहा है. शाम के वक्त नजारा और भी दिलचस्प हुआ जब दिल्ली के विधायक अमानतुल्लाह के समर्थकों ने कुमार विश्वास की गाड़ी का घेराव किया.

भारतीय राजनीति शीत युद्धों के लिए जानी जाती है. आम आदमी पार्टी में भले ही ऊपरी तौर पर सबकुछ ठीक दिखाने की कोशिश हो रही हो लेकिन अंदरखाने की कलह राष्ट्रीय परिषद की बैठक में साफ दिखाई दे रही है. कहा जाता है कि अमानतुल्लाह बढ़े हुए मनोबल के पीछे भी अरविंद केजरीवाल का अपरोक्ष समर्थन है.