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गुजरात में गोहत्या पर आजीवन कारावास ध्रुवीकरण का नया दांव

गोहत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे को एक बार फिर से उठाकर पार्टी अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रही है

Amitesh

गुजरात में इस साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं. लेकिन, बीजेपी ने अभी से ही चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं. चुनाव नवंबर में होना है, उसके पहले से ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गुजरात दौरे में बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें भी कर रहे हैं. चुनाव से पहले संगठन को चुस्त-दूरुस्त किया जा रहा है.

संगठन चुस्त करने के अलावा उन मुद्दों को भी गरमाया जा रहा है जिसके दम पर बीजेपी चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण कर सके. बीजेपी का गढ़ गुजरात पहले से ही संवेदनशील रहा है. अब गोहत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे को एक बार फिर से उठाकर पार्टी अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रही है.


पहले से ही सख्त कानून को क्यों किया गया और सख्त?

गुजरात में पहले से ही गोहत्या के खिलाफ कड़ा कानून है. लेकिन, इसे अब और सख्त किया जा रहा है. 2011 में गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते इस कानून को कड़ा कर दिया गया था जिसमें अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान था.

लेकिन, अब विजय रुपानी सरकार ने इसमें और सख्त संशोधन कर गोहत्या से जुड़े मामले में आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान कर दिया है. अब गोमांस के साथ पकड़े जाने पर 1 से 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगेगा जबकि, 7 से 10 साल तक की सजा हो सकती है. गाय और गोवंश की हत्या के मामले में आजीवन कारावस की सजा हो सकती है.

गुजरात की बीजेपी सरकार की तरफ से ये नया कानून उस वक्त लागू करने की तैयारी हो रही है जब पहले से ही देश में बूचड़खानों पर प्रतिबंध को लेकर बहस चल रही है.

यूपी में योगी राज आने के साथ ही प्रदेश के भीतर अवैध बूचड़खानों को बंद कराने का सिलसिला लगातार शुरू हो गया है. बीजेपी की तरफ से इस बात का वादा भी किया गया था कि सरकार बनने के साथ ही यूपी के भीतर अवैध बूचड़खानों पर कारवाई की जाएगी. अब योगी सरकार उसी एजेंडे पर अमल करती दिख रही है.

यूपी की तर्ज पर बीजेपी शासित दूसरे राज्यों में भी अवैध बूचड़खानों के खिलाफ सख्त कारवाई शुरु हो गई है. लेकिन, गुजरात में गोहत्या से जुड़े कानून की सख्ती को लेकर विपक्ष की तरफ से सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब पहले से ही सख्त कानून था तो आजीवन कारावास की सजा के सख्त कानून की जरूरत क्या थी.

हिंदुत्व की सफल प्रयोगशाला है गुजरात 

लेकिन, इन सबसे बेपरवाह बीजेपी अपने हिसाब से मुद्दे तलाश रही है. गुजरात पहले से ही बीजेपी और संघ परिवार के लिए हिंदुत्व की प्रयोगशाला के तौर पर देखा जाता रहा है. लिहाजा बीजेपी की तरफ से भी किसी न किसी बहाने हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को उठाया जाता रहा है.

प्रदेश में बीजेपी का लगातार जनाधार बरकरार रखना इस बात का सबूत है कि पार्टी प्रदेश में किस हद तक मजबूत है.

मोदी-शाह की बीजेपी की जोड़ी भी गुजरात से आती है, जहां पार्टी की जीत उनके लिए नाक का सवाल है. लिहाजा पार्टी विकास के गुजरात मॉडल से लेकर हिंदुत्व के गुजरात मॉडल तक को उठाने से नहीं चूक रही.

कानून के साइड इफेक्ट्स से बेपरवाह बीजेपी 

लेकिन, इन सख्त कानून के साइड इफेक्ट्स भी हैं जिस पर बार-बार सवाल खड़े होते रहे हैं. सख्त कानून को लेकर सरकार की तरफ से तो कारवाई तो जायज है लेकिन, जब कुछ स्वयंभू गोरक्षक कानून को हाथ में लेकर मनमानी करते हैं तो फिर मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं.

गुजरात के ही उना की घटना इस बात का गवाह है, जब कुछ फर्जी गोरक्षकों ने दलित समुदाय के लोगों की पिटाई कर दी थी. शक था कि गो हत्या के बाद गाय के चमड़े को उतारा जा रहा है. लेकिन, बाद में जांच के बाद इस घटना में किसी तरह की कोई सत्यता नहीं थी.

गुजरात में उना में तथाकथित गोरक्षकों की तरफ से की गई बर्बर कारवाई पर जब सवाल खड़े हुए थे तो संसद से लेकर सड़क तक बीजेपी आलाकमान को जवाब देना पड़ा था. अब और भी सख्त कानून लागू हो रहा है.

ऐसे में इस कानून के साइड इफेक्टस को लेकर सवाल तो जरूर खड़े होंगे. मन में शंकाएं भी होगी. लेकिन, इन सबकी किसे परवाह. यूपी में कुछ इसी तरह की रणनीति कारगर रही. अब गुजरात में भुनाने की तैयारी हो रही है.