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लोकसभा चुनाव 2019: BJP ही नहीं बल्कि SP-BSP गठबंधन से कांग्रेस को भी चुनौती

वर्ष 2019 की बीजेपी अब एक दशक पहले वाली पार्टी नहीं है. लिहाजा आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन के अलावा बीजेपी की चुनौती से भी निपटना होगा

Ranjib

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन कर भारतीय जनता पार्टी के सामने जैसी कठिन चुनौती पेश की है, उससे कोई कमतर चुनौती गठबंधन से बाहर रखी गई कांग्रेस के लिए नहीं है. एसपी और बीएसपी ने 80 सीटों में सिर्फ दो सीटें- अमेठी और रायबरेली ही कांग्रेस के लिए छोड़ी है. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस क्या करेगी. क्या वह बयानों के जरिए एसपी-बीएसपी के खिलाफ मोर्चा खोलकर खुद को बीजेपी और गठबंधन के बराबर तीसरे कोण के रूप में खड़ा करेगी या गठबंधन के साथ किसी अलिखित समझौते के तहत सीटवार फ्रेंडली फाइट यानी दोस्ताना मुकाबला की रणनीति पर अमल करेगी.

एसपी और बीएसपी ने गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखने के पीछे तर्क दिया है कि कांग्रेस का वोट उन्हें ट्रांसफर नहीं होता. 1996 में बीएसपी ने कांग्रेस के साथ विधानसभा का चुनाव लड़ा था पर कामयाबी नहीं मिली थी. वहीं एसपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाया था लेकिन उसका कोई लाभ उसे भी नहीं मिला. लिहाजा लोकसभा चुनाव के लिए हुए गठबंधन से यूपी की दोनों पार्टियों ने कांग्रेस को अलग कर दिया.


यूपी का यह घटनाक्रम कांग्रेस के लिए इसलिए भी दिक्कत भरा है क्योंकि केंद्र की राजनीति में बीजेपी के मुकाबिल राष्ट्रीय पार्टी वही है. ऐसे में उसके लिए यूपी में बने एसपी-बीएसपी के गठबंधन के खिलाफ खुलकर ताल ठोकने से परहेज करना होगा क्योंकि चुनाव नतीजों के बाद किसी पाले को बहुमत नहीं मिला तो सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को यूपी के इस गठबंधन का साथ लेना ही होगा या गैर बीजेपी-गैर काग्रेस सरकार की सूरत में साथ देना होगा क्योंकि उसका लक्ष्य बीजेपी को रोकना होगा.

अगले एक-दो दिन में यूपी को लेकर कांग्रेस की रणनीति साफ हो जाएगी लेकिन इतना तय है कि प्रदेश में वोटरों का जो भी तबका बीजेपी की हार देखना चाहता है उसकी स्वाभाविक पसंद एसपी-बीएसपी गठबंधन होगी क्योंकि इसकी ताकत ज्यादा है. वोटरों के इस तबके में यूपी में करीब 19 फीसदी मुस्लिमों के बड़े हिस्से के भी शामिल होने के आसार हैं. पिछड़ों और दलितों के गैर-बीजेपी वोटों का बड़ा हिस्सा भी गठबंधन के साथ जाने का अनुमान है.

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वाकई ऐसा ही हुआ तो कांग्रेस अमेठी और रायबरेली में गठबंधन के समथर्न से और कुछ चुनिंदा सीटों पर प्रत्याशियों की निजी ताकत के बूते ही मुकाबले में रहती लग रही है. बाकी सीटों पर शायद उसे वोटरों के उस तबके का ही साथ मिल पाएगा जो बीजेपी के खिलाफ तो वोट करेंगे लेकिन गठबंधन से भी उन्हें परहेज होगा. इन वोटों से कांग्रेस को मिलने वाले वाटों की संख्या तो बढ़ेगी लेकिन वह जीत की गारंटी भी होगी, इसमें संदेह है.

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लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने यूपी में सबसे अच्छा परिणाम 2009 में दिया था. जब उसने 22 सीटों पर जीत हासिल की थी. वह चुनाव यूपीए-1 की सरकार के पांच साल पूरा होने के बाद का था और किसानों की कर्ज माफी का ऐलान कर कांग्रेस ने यूपी में ग्रामीण वोटरों के बड़े तबके का साथ पाया था. यूपी कांग्रेस के कई नेता हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में हाल में मिली जीत के हवाले के साथ 2009 के नतीजों की याद दिलाते हुए प्रदेश मे अपनी पार्टी के लिए बेहतर स्थिति का दावा कर रहे हैं लेकिन याद रखना जरूरी है कि 2009 में यूपी में तब बीजेपी कमजोर थी.

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2019 की बीजेपी एक दशक पहले वाली नहीं है. लिहाजा अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन के अलावा बीजेपी की चुनौती से भी निपटना होगा. यूपी कांग्रेस के कई नेता सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने के पैरोकार हैं. इसके पीछे उनका तर्क यह कि चुनाव का माहौल मतदान तक पहुंचने में कई सीटों पर साफ हो जाएगा कि विपक्ष से गठबंधन या कांग्रेस में से कौन प्रत्याशी बीजेपी को हरा रहा है. वैसे में दोस्ताना मुकाबले के जरिए वोट ट्रांसफर कर बीजेपी को अधिकतर सीटों पर हराया जा सकता है.