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बिहार: नीतीश कुमार से नाराज शरद यादव बनाएंगे नई पार्टी?

शरद यादव जेडीयू में लगातार हो रही अपनी अनदेखी से नाखुश हैं.

Amitesh

जनता दल यू के वरिष्ठ नेता शरद यादव अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार से आजकल खफा-खफा से हैं. शरद यादव नीतीश कुमार की अनदेखी से नाराज हैं.

शरद यादव का खफा होना लाजिमी है क्योंकि वो पार्टी के सबसे उम्रदराज नेता हैं, संसदीय दल के नेता भी हैं, जेपी आंदोलन से लेकर अब तक हर जगह संघर्ष करते रहे हैं, विपक्षी दलों को एकजुट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बड़ा मोर्चा बनाने में लगे हैं. विपक्षी कुनबे की आवाज बनकर वो संसद से सड़क तक उतरते रहे हैं.


लेकिन, उनकी अपनी पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने जब उनको ठेंगा दिखा दिया तो शरद क्या करते. इस सबसे शरद यादव आग बबूला हो गए हैं. उनकी नाराजगी का आलम यह है कि सार्वजनिक तौर पर भी वो अपनी नाखुशी का इजहार कर चुके हैं. उनका दर्द इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि विपक्षी कुनबे में उनकी पूछ खूब हो रही थी, लेकिन, खुद की पार्टी में उनका कोई पूछवैया नहीं दिख रहा.

बिहार में काफी मशक्कत के बाद लालू-नीतीश को साथ लाने का श्रेय शरद यादव खुद लेते रहे हैं. दोनों को एक कर महागठबंधन की सरकार भी बन गई लेकिन, पहले उनका जेडीयू अध्यक्ष के पद से पत्ता साफ हो गया. और अब नीतीश कुमार के लालू को छोड़ कर मोदी के साथ जाने के फैसले के वक्त भी उनकी अनदेखी कर दी गई.

इस सबसे दुखी शरद यादव अब अपने अंतरात्मा की आवाज सुनने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि शायद इस बार उनकी अंतरात्मा की आवाज उन्हें उस मुकाम पर लेकर जाएगी जहां वो अब तक जा नहीं पा रहे थे. पार्टी के दबाव में वो अब तक कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे. लेकिन, शायद अब उनके ऊपर कोई दबाव नहीं दिख रहा क्योंकि पार्टी ने भी उन्हें अब अपने फैसले लेने के लिए आजाद कर दिया है.

नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना लेने से शरद यादव नाखुश हैं

जेडीयू में शरद यादव को नहीं मिल रहा तवज्जो

जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह के बयान से यह साफ भी हो जा रहा है. संजय सिंह ने कहा कि 'शरद जी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन, उन्होंने राहें बदल ली हैं, अब उन्हें तय करना है कि आगे उन्हें क्या करना है. शरद जी इसके लिए स्वतंत्र हैं.'

जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता की तरफ से दिए बयान से साफ है कि जेडीयू शरद यादव को कितनी तवज्जो देने के मूड में है. इसका संकेत बीते सोमवार को हुई नीतीश कुमार की प्रेस कांफ्रेंस में मिल गया था जब नीतीश ने साफ कर दिया कि बिहार में महागठबंधन से नाता तोड़ने का फैसला राज्य इकाई का था. चूंकि जेडीयू का वजूद बिहार में ही है जहां उसे मान्यता मिली है, लिहाजा बिहार इकाई ही बिहार में गठबंधन पर फैसला ले सकती है. नीतीश कुमार के बयान का मतलब था कि शरद यादव या किसी दूसरे नेता से नहीं पूछने की वजह कुछ और नहीं थी.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दोहराया था कि एनडीए में शामिल होने का फैसला 19 अगस्त को होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लिया जाएगा, क्योंकि ये राष्ट्रीय स्तर का मामला है. नीतीश कुमार के इस बयान के बाद से ही शरद यादव तिलमिला गए हैं.

शरद यादव ने महागठबंधन टूटने पर सार्वजनिक तौर पर अपनी नाखुशी का इजहार किया है. पार्टी से नाराज चल रहे सांसद वीरेंद्र कुमार और अली अनवर के साथ उनकी मुलाकात भी हो चुकी है. इसके अलावा शरद यादव जेडीयू के यादव और मुस्लिम सांसदों को भी अपने साथ लाने की तैयारी कर रहे हैं.

शरद यादव अपनी पार्टी जेडीयू में खुद को तवोज्जो नहीं दिए जाने से नाराज हैं (फोटो: पीटीआई)

शरद यादव जल्द ले सकते हैं बड़ा फैसला

शरद की कोशिश है कि पार्टी के भीतर विद्रोह कर वह फिर से एक नायक के तौर पर उभरें. शरद यादव के करीबी विजय वर्मा की मानें तो वो जल्द ही इस बारे में कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं.

शरद यादव को दोस्ती का ऑफर लालू यादव की तरफ से भी है. लालू चाहते हैं कि शरद नीतीश का साथ छोड़ उनके साथ आ जाएं. लेकिन, कभी लालू से दो-दो हाथ करने वाले शरद शायद लालू की पार्टी में जाने के बजाए खुद की अलग पार्टी बनाकर महागठबंधन का हिस्सा बन जाएं.

लेकिन, शरद यादव ऐसा करते हैं तो उनके लिए लड़ाई इतनी आसान नहीं होगी. शरद यादव का बिहार में लालू और नीतीश की तरह अपना कोई आधार नहीं है. कभी वो लालू के सहारे तो कभी नीतीश के सहारे संसद पहुंचते रहे हैं. लेकिन, लालू के साथ जाने की बजाए उनकी कोशिश अपनी पार्टी बनाकर लालू के साथ गठबंधन कर नीतीश और मोदी को चुनौती दे सकने की है. ऐसा कर वो विपक्ष की तरफ से चलाई जा रही मोदी विरोधी मुहिम में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की जुगत में हैं.

लालू यादव ने बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में शरद यादव की तरफ 'दोस्ती' का हाथ बढ़ाया है

दरअसल बिहार की करवट लेती सियासत एक और करवट लेने की तैयारी में है. लालू और कांग्रेस के साथ शरद यादव के जाने की सूरत में एनडीए की सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी लालू से हाथ मिला सकती है.

लालू का उपेंद्र कुशवाहा को साधने की तैयारी

उपेंद्र कुशवाहा के साथ नीतीश की अदावत का ही नतीजा है कि आरएलएसपी का एक विधायक नीतीश सरकार में मंत्री बनते-बनते रह गया. ऐसे में लालू की कोशिश होगी कि शरद यादव के साथ-साथ उपेंद्र कुशवाहा को अपने पाले में लाकर यादव, मुस्लिम के साथ-साथ कुशवाहा को भी साध सकें.

जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले शरद यादव कोई नया रास्ता चुन लें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. शरद के पार्टी से बाहर जाने से नीतीश ज्यादा परेशान नहीं होंगे क्योंकि तब पार्टी पर पूरी तरह से उनका आधिपत्य हो जाएगा. वैसे भी बिना कास्ट बेस और बिना मास बेस के शरद यादव की नीतीश के लिए क्या अहमियत है ?