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योगी जी जनता के लिए तेज लाउडस्पीकर परेशानी ही हैं, चाहे ईद हो या जन्माष्टमी

यूपी के सीएम इस बात को समझें कि आम जनता को शोर से दिक्कत है, किसी धर्म विशेष से नहीं

Vivek Anand

कृष्णजन्माष्टमी के रोज आधी रात को मैं सोने की कोशिश कर रहा था. लेकिन बाहर से आ रही तेज आवाज में ये किसी भी तरह से मुमकिन नहीं हो पा रहा था. जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा के प्रेम में पगे लोग उल्लासित होकर बड़ी ही बेदर्द आवाज निकाल रहे थे.

दिल में उतरने वाला संगीत थोड़ा तेज भी हो तो चल जाता है लेकिन यहां तो सुर और ताल का एकदूसरे के साथ कोई संबंध ही नहीं रह गया था. भक्तगण फिल्मी गानों पर भजनों की पैरोडी बड़े ही भौंडे तरीके से गा रहे थे.


सुनकर अफसोस भी हो रहा था कि अपनी बांसुरी की सुरीली धुन से करोड़ों दिलों को झंकृत कर देने वाले कृष्ण अपने भक्तों के इस कर्कण ध्वनि को सुनकर उनके दिल पर क्या बीत रही होगी.

फर्जी सेकुलर क्या होता है?

मैं नास्तिक नहीं हूं. बचपन से ही आदत रही है, जहां मंदिर दिख जाए सिर अपनेआप झुक जाता है. हनुमानजी और साईं भगवान में कोई फर्क नहीं देखता. हालांकि इन दिनों भगवान के मैनेजरो ने दोनों में फर्क दिखाने की बहुत कोशिश की है.

खैर! बाहर के शोर शराबे से उकताकर मैं सोचने लग गया कि ऐसे में अगर कोई अपने दिल की बात फेसबुक-ट्विटर पर शेयर कर ही देता है तो क्या बुरा करता है. फिर ख्याल आया कि आज के माहौल में ऐसी सोच को किसी के साथ शेयर करना भी फर्जी सेकुलर होने का तमगा दिला जाएगा. जो वर्तमान दौर में किसी गाली से कम नहीं रह गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

तो आज के माहौल में अगर मैं कृष्णजन्माष्टमी की आधी रात के शोर शराबे पर अपनी झल्लाहट व्यक्त करने वाली अपनी दिल की बात कहीं करना चाहूं तो मुझे ये कहना होगा- कि चूंकि मस्जिदों की अजान की तेज आवाज भी लोगों के नींद में खलल पैदा करती है, उसी तरह से कृष्णजन्माष्टमी पर फिल्मी गानो वाली भौंडी परौडी की कानफोड़ू आवाज भी ठीक नहीं है.

अगर मैं ये कहना चाहूं कि कृष्णजन्माष्टमी पर आधी रात को होने वाले शोर शराबे बंद होने चाहिए तो मुझे कहना होगा- कि मस्जिदों के लाउडस्पीकर्स से आने वाली कर्कश आवाज पर पाबंदी लगानी चाहिए और उसी तरह से कृष्णजन्माष्टमी पर भजनों के हो हल्ले को भी बैन किया जा सकता है.

आज की राजनीति ने इसे वक्ती जरूरत बना दिया है कि अगर आप मंदिर से संबंधित किसी बात पर विरोध प्रकट करते हैं तो पहले मस्जिद का विरोध करके उसके बाद मंदिर पर आना होगा. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी यही कह रहे हैं. एक राज्य का सीएम.

देश को सबसे ज्यादा प्रखर और विचारवान राजनेता देने वाले प्रदेश के सीएम कहते हैं कि अगर हम ईद पर मुसलमानों को सड़कों पर नमाज अदा करने से नहीं रोक सकते तो फिर पुलिस थानों में जन्माष्टमी मनाने से रोकने का भी हमें अधिकार नहीं है.

भक्तों पर ही अत्याचार

राजनीति ने धर्म के आधार पर नागरिकों के अधिकारों को बिल्कुल बराबरी से बंटवारा किया है. इस पर कोई आपत्ति नहीं जाहिर कर सकता साहब. क्योंकि हिसाब बिल्कुल बराबर-बराबर है.

देखिए कि कितनी साफ विचारधारा है कि चूंकि हम ईद पर सड़कों पर होने वाली नमाज को नहीं रोक सकते इसलिए जन्माष्टमी मनाने से कैसे रोक दें. चूंकि हम मस्जिदों से आने वाली लाउडस्पीकर की तेज आवाज को बंद नहीं कर सकते तो कांवड़ियों में बजने वाले डीजे के फूहड़ गानों पर कैसे रोक लगा दें. इस धर्मनिरपेक्ष बंटवारे का कोई जवाब नहीं हो सकता.

इसलिए अगर मेरे जैसे कुछ मूढ़ व्यक्तियों को ये लगता है कि कृष्णजन्माष्टमी के पावन मौके पर कुछ बेसुरे भक्त हम पर अत्याचार कर रहे हैं तो ऐसे लोग ये जान लें कि इसे सह लेने में भी भलाई है. क्योंकि धर्मनिरपेक्ष आधार पर बंटवारा तो हो चुका है. और वो ऐसे ही चलता रहेगा. विरोध करना है तो पहले मुस्लिम रीति रिवाजों का कीजिए उसके बाद आप हिंदू धर्म के बारे में कुछ बोलने के हकदार हो सकते हैं.

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ संन्याषी हैं, वैरागी हैं. जैसा कल थे वैसे ही आज हैं. सत्ता के शिखर पर पहुंचकर भी अपने उसी आवरण में रहते हैं. वही आचार, वही विचार. जिस फॉर्मूले के साथ वो धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समझाते हैं उसका कोई तोड़ नहीं है. योगी आदित्यनाथ एक पत्रकारिता संस्थान के छात्रों को धर्मनिरपेक्षता का अर्थ समझा रहे थे.

उन्होंने कांवड़ यात्रा का जीवंत उदाहरण देते हुए कहा कि ‘मैंने प्रशासन से कहा..सभी प्रदेशों के जो अधिकारी आए थे..मैंने कहा कि मेरे सामने एक आदेश पारित करिए. कि माईक हर जगह के लिए प्रतिबंधित होनी चाहिए. हर जगह बैन करो और ये तय करिए कि किसी भी धर्मस्थल में उसकी चारदीवारी के बाहर उसकी आवाज आनी ही नहीं चाहिए..क्या इसको लागू कर पाएंगे? अगर लागू नहीं कर सकते हैं तो फिर इसको भी हम लागू नहीं होने देंगे. यात्रा चलेगी.’

धर्मनिरपेक्षता की जिस पतली लकीर पर हम चल रहे हैं वो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है. एक राज्य के सीएम अपने इस बयान के जरिए ये भी कह जाते हैं कि उनका शासन प्रशासन कुछ मजबूरियों में किस कदर बंधा है. अगर सीएम खुद मान लें कि उनके अधिकारी एक सरकारी प्रतिबंध को एक वर्ग विशेष पर लागू नहीं कर सकते इसलिए ऐसे प्रतिबंध को किसी दूसरे समुदाय पर भी लागू नहीं किया जा सकता है.

तो कहीं न कहीं वो ये भी कह रहे होते हैं कि धर्म के मामले में फैसले लेने में सरकारें कितना हिचकती हैं और इसी आधार पर राजनीति करने वालों से कैसे कैसे बयान दिलवा जाती है.