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70 पार उम्र लेकिन चुनाव मैदान में ताल ठोंकने के लिए तैयार हैं नेताजी

लेकिन सवाल ये भी है कि अगर किसी सीनियर लीडर का टिकट काटा जाए तो कहीं वो बागी न हो जाए

FP Staff

उम्र है सत्तर की लेकिन चाहत है टिकट की. राजनीति और सत्ता में जवानी से लेकर बुढ़ापा तक देख चुके नेताओं को इस बार भी विधानसभा चुनाव को लेकर टिकट की आस है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बुजुर्ग हो चुके नेताओं को वानप्रस्थ नहीं बल्कि चुनाव पथ चाहिए. ये नेता 75 पार की उम्र के बावजूद चुनावी दंगल में उतरने के लिए ताल ठोंकने को तैयार है.

88 साल के वयोवृद्ध नेता हैं बाबूलाल गौर जो कि भोपाल में गोविंदपुरा विधानसभा सीट से रिकॉर्ड जीतते आए हैं. गोविंदपुरा विधानसभा की सीट बाबूलाल गौर के नाम से इस कदर जुड़ चुकी है कि इस सीट से उनकी बहू तक उनके नाम पर चुनाव जीत चुकी हैं. गोविंदपुरा की सीट से बाबूलाल गौर ने पहला चुनाव बतौर निर्दलीय साल 1974 में लड़ा था लेकिन अब वो इस सीट से बीजेपी के विधायक हैं. 88 साल की उम्र में भी बाबूलाल गौर राजनीति से रिटायर होने के लिए तैयार नहीं हैं और उन्हें भरोसा है कि पार्टी जीतने की वजह से टिकट जरूर देगी.


बाबूलाल गौर ने लगातार दस बार रिकॉर्ड चुनाव जीतकर गोविंदपुरा सीट पर इतिहास रचा है. इसके बावजूद उनके टिकट पर पार्टी आलाकमान को सोचना पड़ रहा है क्योंकि मामला उम्र का है.

वहीं उम्र के फेर में फंसे होशंगाबाद सीट से विधायक और पूर्व केंद्रीय मंत्री सरताज सिंह भी टिकट चाहते हैं. खासबात ये है कि सरताज सिंह की ज्यादा उम्र होने की वजह से ही उनसे मंत्री पद छीन लिया गया था. इसके बावजूद सरताज सिंह को 78 साल की उम्र में टिकट मिलने की आस है. सरताज सिंह पांच बार होशंगाबाद की सीट से सांसद रहे हैं और केंद्र में वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहे हैं.

मध्यप्रदेश की राजनीति के ये दो बड़े नाम उम्र की वजह से सियासत के क्षितिज में अस्तांचल का सूरज माने जा सकते हैं. लेकिन इन्ही की तरह रामकृष्ण कुसुमरिया, कुसुम सिंह महदेले, रुस्तम सिंह, जयंत मलैया, रमाकांत तिवारी और कैलाश चावला जैसे नेता भी हैं जो 70 की उम्र पार कर चुके हैं लेकिन उन्हें भी टिकट का भरोसा है.

बड़ा सवाल ये है कि लोकसभा टिकट के संभावित उम्मीदवारों की उम्र भी सत्तर पार कर चुकी है. ऐसे में बीजेपी की कोशिश यही रहेगी कि वो युवाओं को मौका देने के बहाने इन लोगों को आराम करने का आदेश सुना दे. लेकिन सवाल ये भी है कि  सीनियर लीडर टिकट कटने पर बागी न हो जाए क्योंकि उसकी बगावत सहन करने की ताकत फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी में नहीं है क्योंकि पंद्रह साल बाद मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है.

हालांकि  बीजेपी  हर बार ही बागी या फिर असंतुष्टों से निपटती आई है लेकिन इस बार सत्ता में रहने के बावजूद बीजेपी रिस्क उठाने की हालत में नहीं है.  बीजेपी के लिए मुश्किल ये है कि इस बार एक सीट से टिकट के कई दावेदार हैं. अब सवाल उठता है कि कितने नामों को वो लोकसभा का टिकट दिखाकर फिलहाल शांत करा पाती है.

कांग्रेस भी इसी दौर से गुज़र रही है. कांग्रेस भी चाहती है कि 65 साल से उम्र के ऊपर के नेता इस बार युवाओं की खातिर टिकटों की कुर्बानी दे दें. लेकिन ऐसा  इतनी आसानी से संभव नहीं है. मध्यप्रदेश में वैसे भी कांग्रेस में सीनियर लीडर के चलते टिकटों के बंटवारे को लेकर खींचतान बढ़ती जा रही है. दिग्विजय सिंह के समर्थकों और कमलनाथ-ज्योतिरादित्य की पसंद के उम्मीदवारों के दबाव के बीच कांग्रेस आलाकमान को नाम फाइनल करने हैं. माना जा रहा है कि इसी वजह से ही उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने में वक्त लग रहा है.